पानी डूब जाएगा
पानी डूब जाएगा
वक़्त के साथ
ज़माने की आग में
आरज़ूओं, तमन्नाओं का लुक़मा बन कर
प्यास की आग में
पानी डूब जाएगा
पानी डूब जाएगा
किसानो की दुआओं को सुनकर
रोती पीटती
उनकी आहों पुकार की थपेड़े से
आसमान की तरफ तकती
उनकी सूखी निगाहों की खुश्की में
पानी डूब जाएगा
पानी डूब जाएगा
सूखी फ़सलों की प्यासी जड़ों को
माँ की सूखी छाती से
चिपके बच्चे की
हारी होंटो की प्यास बुझाने में
कभी आबाद रही
आज की वीरान पड़ी
ज़मीन की दरार में
पानी डूब जाएगा
पानी डूब जाएगा
घंटो लगी क़तार में
ख़ाली बर्तनों की
प्यासी नज़रों को भरने में
कहीं पानी छूने को
तरसती होंटो को नम करने में
और फिर कहीं
साए में बैठे
ज़बान निकालती
परिंदों, दरिंदों की प्यास बुझाने में
पानी डूब जाएगा
पानी डूब जाएगा
ख़ुश्क होंटो से
अपनी दर्द भरी दास्ताँ सुनाती
सूखी पड़ी
नदियों नालों झीलों को भरने में
पहाड़ों में भूली पड़ी
आबशारों के नग़मों गीतों को
गिरते उठते तान को
याद दिलाने में
पानी डूब जाएगा
–असरारुल हक जीलानी
यह कविता, असरार की किताब’ पानी डूब जायेगा किताब से लिया गया है.