एक समुदाय जो एक समय पुलिस से खदेडा जाता था, जिनका गाँव वाले तक बहिष्कार करते थे, आज के समय में क्यूँ जिला कलेक्टर उन्हें ही फोन करके कोरोना महामारी के वक़्त, मदद पहुँचाने को कह रहे हैं? कौन है ये २० युवा, जो अपने समुदाय के बच्चे को पढ़ाते हुए, खुद की पढाई भी कर रहे और आज लगभग पूरे जिले में राशन बाँट रहे, वो भी ५ किलो नहीं, २५ किलो ?
इस इंटरव्यू से आप भारत की मौजूदा बदहाल अर्थ वयवस्था को ठीक करने के बहुत उपाय निकाल सकते हैं. और कई सवालों के जवाब हैं इनमें जैसे कि : प्रजातंत्र क्या है, समानता क्या होती है, अगर कोई सरकार की निति नहीं काम कर रही है तो क्या करना चाहिए, एक संस्था कैसे चलाना चाहिए, युवाओं को कैसे बागडोर थमाना चाहिए ?
अगर आई.सी.डी.एस. के राशन से भी पूरा पोषण नहीं मिलता तो क्या करना चाहिए, किसी का दारू छुड़ाना हो या बैंड बजाना हो, यहाँ तक की भाई साहब पलायन रोकना हो, तो क्या करें?
ये इंटरव्यू प्रशांत रक्षित का है, जो पुरुलिया, पश्चिम बंगाल में रहते हैं, और सबर समाज के साथ ३७ साल से काम कर रहे हैं.
आप सबर समुदाय के इतिहास के बारे में कुछ बता सकते हैं ?
इस समुदाय का नाम है, खेड़िया सबर. फोरेस्ट कम्युनिटी है, जो डी.एन.टी में पड़ता है. 1871 का जो क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट है, उसके अंदर डाला गया था. ब्रिटिश ने हबिचुअल ओफ्फेंडर, जो चोरी डकैती करता है, उसे बोर्न क्रिमिनल बोलकर्क कर एक्ट डाला था. १९५२ में जब यह एक्ट अमेंडमेंट किया तब से यह डिनोटिफाइड ट्राइब्स हुआ.
यह कम्युनिटी फॉरेस्ट द्वेलर्स है. उस टाइम पहले बिहार में थे. बिहार में ये लोग छोटा नागपुर जंगल एरिया में थे और इधर से उधर जंगल में जाते थे, तो इस कारण से किसी का जमीन नहीं था. फॉरेस्ट में रहते थे और जितना भी फॉरेस्ट जंगल में रहने वाले हैं, आप भारत में देखिएगा पूरे वर्ल्ड में देखिएगा कि छोटे-छोटे ग्रुप में रहता है. वह खाने का और जो भी समान है, वह जंगल से निकालते, तो उस एरिया में रहते हैं, हंटिंग करता है, वहां का पदार्थ बेचता है. तो जब यह डिफोरेस्टेशन शुरू हुआ तो इनके लिए दिक्कत हो गया.
यह डिफोरेस्टेशन कब से शुरू हुआ?
१९५६ में जब नेहरू जी ने फॉरेस्ट को नेशनलइज किया तब. पहले तो फॉरेस्ट था प्राइवेट प्रॉपर्टी. जमींदार लोग का था. तो बोले नेशनलआइस होगा. नेशनलइज जब कर लिया, सारे मैक्सिमम जो बड़ा अच्छा अच्छा पेड़ जो था, कट गया. उसी समय तो इंडिया का सबसे ज्यादा डिफोरेस्टेशन हुआ.
यह तो उल्टा हो गया कि उन्होंने नेशनलइज किया और वह तो प्रोटेक्शन के लिए किया था न ?
लेकिन चार साल का टाइम मिल गया तो. आज डिक्लेअर किया १९५६ में, और हुआ १९६० में. चार साल काफी टाइम है, जंगल को काट लेने के लिए और किसी का कोई हिस्ट्री उस समय का नहीं कि फाइन हुआ है या केस हुआ है, ऐसा कुछ रिकॉर्ड में नहीं है. तो सबर के लिए दिक्कत हुआ कि चार साल बाद फॉरेस्ट डिपार्टमेंट आकर बोल रहा है कि तुम यहां से निकल जाओ, यह हमारा गवर्नमेंट का प्रॉपर्टी है. तो आप जानते हैं कि फिर क्या हुआ, पेड़ हो गया स्टेट गवर्नमेंट का और लैंड गवर्नमेंट ऑफ इंडिया का ?
तो पेड़ राज सरकार बिहार का और जमीन केंद्र सरकार का ?
इसीलिए तो ज्यादा डिफॉरेस्टेशन हुआ. आप भारत का हिस्ट्री देखिए डिफोरेस्टेशन हुआ है, नेशनलाइजेशन होने के बाद. तीन बार, चार बार हुआ है टोटल ऐसा.
और कब हुआ था ?
१९०६ में फॉरेस्ट एक्ट हुआ था. उस समय फॉरेस्ट डिपार्टमेंट शुरू हुआ. उस समय यह ब्रिटिश ने किया था. फॉरेस्ट को अपने बिजनेस में लगाने के लिए. तो ब्रिटिश को तो जो भी अपना सम्राट चलाने के लिए चाहिए, वह कानूनी ढंग से करता था. तो जब फॉरेस्ट डिपार्टमेंट सबर को निकाल रहा है जंगल से, तो ये लोग अपने राइट के लिए अपना एक संस्था अपने समूह तैयार किया, जिसका नाम है पश्चिम बंगाल खेडिया समाज कल्याण समिति.
उस समय तो ये बिहार में था तो उसका नाम पश्चिम बंगाल कैसे हो गया ?
यह ऑर्गेनाइजेशन १९६८ में बना था और फिर ५६ का फर्स्ट नवंबर ये पश्चिम बंगाल में आया था. बैकग्राउंड ये है जो हमारा फाउंडर है, गोपी बल्लभ सिंह, यह राज परिवार से था. यह जंगल उनके परिवार का ही पर्सनल प्रॉपर्टी था इस कारण से उनका परिवार का ट्राइबलों के साथ रिलेशन भी था.
जंगल तो उस टाइम बिज़नेस होता था. जंगल में से पत्ता, लाख बनता था, बिकता था. तो सब लोग उनको आकर बोलता था कि हम लोग को निकाल दे रहे, हम लोग कहां जाएंगे? फॉरेस्ट डिपार्टमेंट और दूसरा एक स्टिग्मा है, चोर डकैत का. कहीं पर चोरी होता है, डकैती होता है, तो हम लोग को पकड़ के ले जाते हैं, विदाउट एनी इंक्वायरी. तो एक चोर डकैत का स्टिग्मा और दूसरा यह फॉरेस्ट राइट्स पर, यह ऑर्गेनाइजेशन खड़ा हुआ.
उस समय भी राजा परिवार था, ६८ में . कैसे लोग जुड़े इसमें ?
हां ये आर्गेनाइजेशन खड़ा हुआ पहले तो सब एक दूसरे को ही नहीं पहचानते थे. तो इनको पहले परिचय होने के लिए तो हम लोग का एक डाल परब बोलते हैं, एक छोटा मेला जैसा, इकट्ठा होने के लिए इसको हम लोग शुरू किया.
कौन सा, दल हुआ कि खाने वाला दाल हुआ?
पेड़ का डाल वाला, डाल. तो उसमें हम महुआ डाल, शाल डाल लगाकर, गाना बजाना के साथ, साथ में चर्चा होता था कि हम लोग क्या करेंगे, कहां जाएंगे? हमारा आईडेंटिटी क्या है? हम लोग अगर इकट्ठा नहीं हुए, हम एक-दो बोलेंगे तो फॉरेस्ट डिपार्टमेंट नहीं सुनेंगे. हम लोग जब एक हो जाएंगे, अपना एक संगठन खड़ा होगा तो तभी कुछ कर पाएंगे. यह चर्चा होता था और दूसरा जहां पर भी फॉरेस्टलैंड है, जहां पेड़ नहीं है लेकिन फॉरेस्ट है उसको तुम यह करो खेती बनाओ, अपना श्रम से.
यह दिमाग में इसलिए आया था कि छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट जो था हम लोग जब बिहार में थे जो. छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट में एक था भूमि पर कि कोई प्रजा अपना परिश्रम करके किसी जमीन को खेती लायक कर लेगा तो उसको गवर्नमेंट नहीं हटाए, तो उस पर फिर उसका मालिकाना हक हो जाएगा. तो हम लोग बोला कि आप तो बंगाल में अभी आया है पहले तो हम वहीं बिहार में था. तो हम कहां जाएंगे? आज तुम बोला कि हम बंगाल में है, कल बिहार में. तो उसको उस एक्ट को हम लोगों ने काम में लगाया, संगठन ने. कहीं भी फॉरेस्ट डिपार्टमेंट जाते थे तो दस गांव का आदमी जाकर खड़ा होते थे और बोलते थे.
फॉरेस्ट डिपार्टमेंट छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट अभी वैलिड है?
उस समय भी नहीं था. हम लोग जब बंगाल में आ गया तो उस समय भी वह एक्ट लागू नहीं था.
तो अभी भी बिहार में है वह लागू?
अभी तो वह झारखंड हो गया. तो हम लोग उनको बता रहे थे कि दस साल पहले तो हम लोग बंगाल में नहीं था तो फिर हम लोगों ने उसी एक्ट को लागू करने के लिए बोला. हम लोग को कैसे हटा दोगे? उस टाइम अच्छा कलेक्टर था. फिर हमारे फाउंडर का साथ की दो-तीन लोग था वह कलेक्टर को जाकर बोला कि कम से कम सबर को मत हटाइए. हम लोग के हाथ में फिर भी पेपर नहीं था. हम लोग को हाथ में पेपर मिला है २००६ में, जब फॉरेस्ट फॉरेस्ट राइट एक्ट तैयार हुआ.
तब जाकर 50 साल बाद आपको पेपर मिला है ?
ये फॉरेस्ट राइट का आप आंदोलन तो सारा इंडिया में देखेगा, तो हर जगह ऐसा है.
यह आंदोलन, संस्था ४०-५० साल कैसे चला? उस समय से लोग अभी भी हैं?
फाउंडर में से केवल एक ही जिंदा है. अभी ना उसका उम्र ९० है, थोड़ा बहुत पैदल चल लेता है अभी. थर्ड जनरेशन यह ऑर्गेनाइजेशन चला रहा है. फाउंडर लोग एक भी जिन्दा नहीं है. हम लोग जब अप्लाई भी कर रहा था, अकेले फॉरेस्ट राइट्स के थ्रू जमीन लेने के लिए, तब भी फॉरेस्ट डिपार्टमेंट बोल रहा है नहीं तुम को जमीन कैसे देंगे? उनका तो एक अलग है. जमीन घट जाएगा, फॉरेस्ट का हर साल जो बजट बनाते हैं फॉरेस्ट का ऊपर एलॉटमेंट करता है, वह घट जाएगा. इसलिए वो देना नहीं चाहते थे. लेकिन हम लोगों को हटा नहीं पाया, हम लोग उधर बैठ गया. सारे पेपर नहीं मिला कुछ-कुछ मिला है और इसी में हम लोग जमीन पर खेती बाड़ी चालू कर दिया और धीरे-धीरे किसी के नाम से इंदिरा आवास मिला, मिज़ो भूमि मिज़ो वास से, तीसरा एक और है गीतांजलि आवास योजना, से मकान बना. यह दोनों स्टेट गवर्नमेंट का है. मैक्सिमम लोग को मिला हर ब्लाक में.
अच्छा वहां पर कितना ब्लॉक है?
पुरुलिया जिला में बीस ठो ब्लॉक है. लेकिन सबर रहता है, आठ ब्लॉक में.
और करीब इनकी जनसंख्या कितनी है?
१२००० होगा इनका जनसंख्या, २४६४ परिवार. आज सबर आठ ब्लॉक में, १६४ गांव में रहते हैं. इनका टोला होता है, हेमलेट होता है. छोटे-छोटे टोला होता है, दो परिवार का भी एक टोला होता है. यह लोग आइसोलेटेड रहता है. मेंस्ट्रीम के बाहर. गाँव से दूर रहते हैं.
यह खुद से बाहर रहना पसंद करते हैं कि गांव वाले घुसने नहीं देते हैं?
इसका दो कारण है एक तो पहले से ही वह जंगल में रहता का था, गांव वालों के साथ कैसे रहेगा? सदियों से सबर फॉरेस्टलैंड में रहा है और दूसरा है कि जो कस्टम्स भी है, मेनस्ट्रीम का जो कस्टम है वो मिलता जुलता नहीं है. यह दोनों भी कारण है कि इन्फीरियरिटी काम्प्लेक्स के कारण भी सबर मिलता नहीं है और गांव वालों का सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स के कारण भी. तो वह लोग भी इनको बसने नहीं दिया और ये लोग भी नहीं गया.
कस्टम में क्या-क्या अलग है?
सारे इंडिया भर में हमारे ट्राइबल लोग का जनरल कास्ट के कस्टम से अलग है. नेचर का पूजा पाठ करते हैं, पहाड़ हुआ,नदी, जंगल, वज्र हुआ. वज्र ? लाइटनिंग जो होता है, बिजली.
बहुत जगह घुमंतू जाति को देखा है कि वह लोग सूअर भी खाते हैं.
सबर तो सारा चीज खाते हैं. उसके पास कुछ रोक नहीं है. सांप, सूअर, गाय, बकरी, मछली सब, सब कुछ खाते हैं. उसके पास कोई बंधन नहीं है, खाने को लेकर तो.
यह खाने के कारण लोग भी उनसे दूर रहते हैं क्योंकि से तो फिर हिंदू मुस्लिम दोनों दूर रहेंगे ?
हां वह भी एक कारण है खाने का कारण भी है.
यह एस.टी स्टेटस में आते हैं? हाँ लेकिन उनको अपने आप को हिंदू धर्म में बोलना पड़ता है ?
कागज में आजकल लिखना पड़ता है क्योंकि गवर्नमेंट का तीन चार आप्शन ही होता है. हिंदू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध. हिंदू छोड़कर तो ट्राइबल नहीं लिख सकता है, यह भी एक पॉलिटिक्स है, मेंस्ट्रीम का. यह एक पॉलिटिक्स है कि धर्म हिंदू होगा लेकिन कभी हिंदू कस्टम्स में वह मिला ही नहीं है, सब अलग है. अभी मिक्स हो गया, अभी अलग करना मुश्किल है. बंगाल में नया साल होता है १४ अप्रैल को, सबर का न्यू ईयर १४ जनवरी होता है.
मैं बिहार से हूँ. अपने लिए तो दोनों सक्रांति है. एक में सत्तू खाते हैं, दुसरे में दही चुडा.
यह लोग मुर्गा खाते हैं चावल के साथ. उसका पिठ्ठा बनाकर खाते हैं. हम लोग बेसन भर देते हैं सत्तू भर देते हैं. ये लोग चिकन भर देते हैं. ये तो चिकन मोमो टाइप हो गया. लेकिन पहले वह चिकन को पूजा करेगा. फिर उसको काटेगा.आटा में मिलाएगा. उसको फिर आलू पराठा जैसा बनाएगा.
तो यह बारह हजारों में से सब का डॉक्यूमेंट बन गया है ?
नहीं-नहीं बनाया है. बहुत सारे के पास आधार कार्ड नहीं है तो. बहुत लोगों को इस कोरोनावायरस में जो डिक्लेअर किया, नहीं मिल रहा है. वह ट्राइबल का जो ६० ईयर के बाद पेंशन मिलेगा, वह भी नहीं मिला. अभी स्पेशल ड्राइव लगाया है प्रशासन ने बी.डी.ओ.लोग आए थे, आज भी आए थे. दो गांव में गए.
यह जो हमारा डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर है, वह बहुत अलग से देख रहा है. हम लोग के सारे का डिमांड लेकर, हम लोग के साथ रिलेशन रखकर भी कर रहा है. कलेक्टर सबर गांव जा रहा है, विजिट कर रहा है, पूछ रहा है तुम्हारा रेशन कार्ड है कि नहीं. तो बहुत लोग का आधार कार्ड है, राशन कार्ड नहीं है तो सरकारी रिलीफ नहीं मिल रहा है. वह हमारा संगठन के तरफ से रिलीफ मिल रहा है और कोई रिलीफ दे रहा है, तो उसमें चल रहा है. जिसका कोई नहीं है, कोई कार्ड नहीं है, उसके ऊपर हमें नजर रख रहा है. उसके पास हमारे वॉलिंटियर जा रहा है, रिलीफ पहुंचा रहा है, चावल दाल आलू ऐसा..
तो राज्य सरकार और केंद्र सरकार की तरफ से आपको कुछ नहीं मिल रहा है केवल कलेक्टर आपका सुन रहा है हेल्प कर रहा है ?
नहीं राज्य सरकार की तरफ से पी.डी.एस से मिल रहा है राइस और दाल. अब जनधन का जिसमें अकाउंट था जिसका अकाउंट था, लेडी का, उसमें ₹५00 आया है.
कितने लोगों को आया है ?
ज्यादा नहीं होंगे. बहुत लोग तो, सब ने अकाउंट खोला ही नहीं. तो जब बात हो रहा है तो दो चार लेडीस फोन पर बता रहा है. पच्चीस महिला है गाँव में तो, उसमें से पांच होगा. परसेंटेज में बहुत कम है. स्टेट गवर्नमेंट का जो जो भी है वह मिल रहा है.
स्टेट गवर्नमेंट का क्या-क्या है?
स्टेट गवर्नमेंट का जो पी.डी.एस का सिस्टम है, दो किलो चावल, दो किलो ८५० ग्राम आटा. सबको ? सबके लिए फ्री कर दिया है, बिना राशन कार्ड के भी मिल रहा है. जिसका राशन कार्ड भी नहीं है तो उसको ऊपर से अलग से दे रहा है. तो उसको कूपन से दे रहा है. सितंबर तक मिलेगा उसको और उस आधार पर, उसका फिर राशन कार्ड बन जाएगा कूपन के ऊपर.
यह तो बहुत बढ़िया हुआ कि सब को मिल रहा है राशन.
हाँ. हर व्यक्ति को १ अप्रैल से ही सबको मिल रहा है. कलेक्टर बोल रहा था शायद थर्ड मई से ५ किलो चावल और १ किलो दाल केंद्र सरकार वाला भी मिलेगा.
कलेक्टर का नाम क्या है?
राहुल मजूमदार और एक आदमी है उसके साथ, ए.डी.एम है, मुक्ति शामिम. मोहम्मदन है, बहुत बढ़िया काम करता है.
यह आपका संगठन जो है, वह कैसे काम कर रहा है?
हम लोग हर गांव में स्कूल चलाते हैं. गवर्नमेंट वाला स्कूल नहीं. हर गांव में हमारा शिक्षा का महल है. यह मेन स्ट्रीम से दूर रहता है. वहां पर एक वालंटियर रखते हैं जो ज्यादा से ज्यादा, उस कम्युनिटी में होगा. जैसे मान लीजिए कोई लड़का १० तक पढ़ा है, उसको अभी हम लोग ११ वीं तक पढ़ा रहे हैं. उनको बोलते हैं कि भाई तुम सुबह ७ से ९ बजे तक यह बच्चे लोग को पढ़ाओ, अपने कम्युनिटी में, हम तुमको महीने में २००० रूपए देंगे. तुम्हारा एजुकेशन का खर्चा आ जाएगा. इसमें अपना पढ़ाई भी हो जाएगा और तुम्हारे गांव के बच्चे लोग भी थोड़ा सा पढ़ लेगा. और उनका फिर ड्यूटी है कि इनमें से उन लोगों का नाम फर्स्ट जनवरी में स्कूल में लिखवाना है.
यहाँ पढ़ा ज्यादा नहीं है युवा. उसमें से भी ज्यादातर तो ड्राप आउट हुआ है. वह बोलता है, एजुकेशन अच्छा नहीं लगता है, इनफीरियर कंपलेक्स है. अभी जैसे बंगाल में एजुकेशन फ्री ऑफ कॉस्ट, दस तक कोई पैसा नहीं लगता है. लेकिन एक टाइम तो पैसा लगते थे, दस रूपए २० रूपए कुछ भी. और कुछ कुछ को तो पढ़ाई अच्छा लगता ही नहीं है. जो ऐसे ड्रॉपआउट हो जाता है, वह तो लेबर बन गया. जो लोग पंद्रह सोलह अठारह साल का है, वह तो लेबर बन गया. अभी माइग्रेशन में जा रहा है. गुजरात, केरल जा रहा है, कंस्ट्रक्शन लेबर बनकर, दिल्ली पर जा रहा है. और दूसरे डिस्ट्रिक्ट में ब्रिक क्लीन में जाता है, ईटा भट्टा में काम करने के लिए. अब कुछ लोग पैडी खेत में जाता है. दूसरे स्टेट में अभी पैडी करने जाता है वर्धमान में. अभी तो बंद हो गया घर से निकलना.
आपके कितने वॉलिंटियर्स हैं?
टोटल हमारा ६३ वॉलिंटियर्स था जब नॉन फॉर्मल एजुकेशन शुरू किया था, १९८३ के आस पास. अभी तो डोनेशन के पैसे से मिल रहा है, तो जो दस वीं ग्यारहवीं पढ़ ली है उनका बारह वीं का एग्जाम दिला रहे हैं. और वह बारह वीं एग्जाम दिलाने के लिए हम लोग प्लान बना रहे हैं ,तो वह भी रेगुलर पढ़ेगा, गांव का बच्चा भी पढ़ेगा.. जीरो खर्च में स्कूल में पढ़ रहा है लेकिन उसका भी स्टेशनरी का खर्चा है.
इनमें से सारे सबर समुदाय से हैं ?
इसमें से सबर अठाईस था पहले, ६३-६५ में से. आज की तारीख में २० वालंटियर है, जिसमें १४ सबर, ४ महतो और २ संथाल समुदाय से है. लेकिन सारे गांव के आसपास हैं. उनका दो क्वालिफिकेशन हम लोग पहले देखते हैं. एक तो उनको मानना पड़ेगा कि सबर भी इंसान हैं, चोर नहीं है, डाकू नहीं है. इसीलिए सिलेक्शन करते हैं गांव वाले, आर्गेनाइजेशन सिलेक्शन नहीं करता है कि यह हमारा टीचर बनेगा, हमारा दोस्त, हमारा वॉलिंटियर बनेगा. एक गांव ही चुनाव करता है. गांव वाला ही सबसे अच्छा जानता है कौन कौन हमारा काम में मदद करेगा. मान लीजिए कोई कंप्लेन लिखना है तो कोई कंप्लीट अपनी जाति के खिलाफ तो नहीं लिखेगा? जो हमारे लिए लड़ाई लडेगा, उसी को हम लोग रखते हैं.
वह हमारे को इंसान समझे और हमारे लिए फिर खड़ा हो लड़े, तभी यह संगठन आज भी लड़ रहा है. नहीं तो संगठन से चार किलोमीटर से लेकर नब्बे किलोमीटर दूर-दूर तक कम्युनिटी है. तो कैसे हम लोग कम्युनिकेट कर पाएंगे? हमारे समिति का जो ऑफिस है, वहां से ९२ किलोमीटर दूर तक सबर गांव है. अगर गांव का लोकल नहीं रहेगा तो कैसे हम इतनी दूर से कम्युनिकेशन कर पाएंगे. साल में एक दो बार ही जापयेंगे. उससे ज्यादा कहाँ जा पाएंगे तो दूर इतना?.
यह लोग जो टीचर है, वही रिलीफ में काम कर रहे हैं क्या?
पैकेट तो हम लोग स्पेंसर से कराया था. डीएम से परमिशन लिया था, पुलिस को साथ में लिया था क्योंकि हम लोग चाह रहा था, हम लोग का जो रिलीफ दिया है उसमें कोई बैनर नहीं है. सब लोगों को बोल रहे हैं कि यह प्रशासन से दिया जा रहा है. सब लोग जान रहे कौन दे रहा है. लेकिन प्रशासन के साथ सहयोग करके कर रहे हैं.
ये ६३ लोग ही रिलीफ का काम कर रहे हैं?
कल घटना हुआ कि बलरामपुर ब्लॉक में सबर गांव में डी.एम गया देखने. तो वहां तक हमारे रिलीफ नहीं पहुंचा है. बलरामपुर ब्लॉक हम लोग टच नहीं किया था 3:00 बजे हम को फोन किया हमको बोला कि हम इस गांव में आया है, हमको लग रहा है यहां रिलीफ नहीं पहुंचा है तो हमने कहा ठीक है सुबह तक पहुंच जाएगा. तो कलेक्टर हम लोग को बोल रहा है, फोन से कि इस गांव में रिलीफ चाहिए. समझ लीजिए हम लोग के साथ कितना इतना अच्छा रिलेशन हो गया. मैं तो पहले मुस्कुराया कि रिलीफ देना हमारे संगठन का काम है कि गवर्नमेंट का काम है? नहीं-नहीं वह बोला आप लोग सही ढंग से कर रहे हैं, मदद कर रहे हैं. रेगुलर हम लोग को बुलाते हैं, मॉनिटरिंग करते हैं तीन-तीन दिन में बुलाते हैं पूछ रहे हैं क्या कंप्लें है?
तो यह सब चीज करते हुए आप लोग को दिक्कत क्या आ रही है?
देखिए रिलीफ तो कुछ दिन का बात है. हम लोग जो चाहते हैं, वह हैपरमानेंट सॉल्यूशन. यह short-term हो गया. कोरोना कब बंद हो गया आदमी का घर से निकलना बंद हो गया तो यह शार्ट टर्म सलूशन है. रिलीफ रिलीफ तो रेगुलर कोई नहीं दे पाएगा. रेगुलर २४५० परिवार को राशन कोई नहीं कर पाता. लेकिन कुछ तो कर सकता है तो गवर्नमेंट का जो डेवलपमेंट वर्क है उसमें तो हो सकता है. जैसे एम.जी.एन.आर.इ.जी.ए. में काम देना, जितना पेंशन है जितना स्कीम है.
हम लोग सर से बोल रहे हैं कि आप ६० साल के सबर को बोल रहे हो कि ट्राइबलरत्नाबली सबर का जन धन बैंक अकाउंट.सर्टिफिकेट दो. ६० साल से कोई ऊपर आदिवासी रहेगा तो स्कीम है कि उसको हजार रुपए महीना मिलेगा पेंशन. ओल्ड एज पेंशन अभी किसी के पास सबर के पास आदिवासी सर्टिफिकेट है ही नहीं. वह कभी जरूरत ही नहीं पड़ा. तो हमने अप्रोच किया कि जिसके आधार कार्ड, राशन कार्ड में सबर लिखा हुआ है तो आप मान लीजिए कि वह सबर ट्राइबल है. ट्राइबल सर्टिफिकेट तो फिर बी.डी.ओ. ही करते हैं, तो उनको बोलिए देने के लिए. और फिर आप उसको पेंशन दे दीजिए और फिर यह डिमांड किया तो उन्होंने सोचा और चर्चा किया उनके सेक्रेटरी से, स्टेट से . फिर अप्रूव हो गया, अभी ये बी.डी.ओ. मान जाएगा.
हम लोग यह सब एप्रोच करता है, ओल्ड ऐज पेंशन है, लेबर कार्ड है. ये लोग कंस्ट्रक्शन लेबर के लिए बाहर जाते हैं. कुछ-कुछ जगह में ऐसा भी होता है कि उन लोग को वेजेस नहीं मिलता है, उनको ठग दिया जाता है. हम लोग एक बार दिल्ली से लड़का लोग को वापस लाया था. वो लोग पकड़ के रखते हैं. एजेंट लोग ले जाते हैं, इनका पैसा एजेंट लोग कमाते हैं. एडवांस में एजेंट ले लेते हैं. ऑफिस छोड़ता नहीं है. छुट्टी नहीं देता है. आठ घंटा छोड़कर सोलह घंटे काम कराता है. दिल्ली में कैंपस में कंस्ट्रक्शन चल रहा था. उधर रखा था इनको. कब की बात है? तीन साल हो गया. यहां का पुरुलिया का एस.पी साहब बहुत मदद किया था. उस समय उनको ही हम लोग कंप्लेंट लिखा था. उन्होंने फिर डिपार्टमेंट डिपार्टमेंट से दिल्ली पुलिस को लेकर छुड़ाया.
अभी तक नरेगा में किसी को काम मिला है?
बीस तारीख से तो अभी शुरू हुआ है. पहले तो नरेगा का काम बंद था. सबर का एक और दिक्कत है तो, सबर को अभी काम किया तो अभी पैसा चाहिए. नरेगा में तो ऐसा नहीं होता है. नरेगा में बिल होता है फिर अकाउंट में आएगा, यह बहुत लंबा है.
सबर को यानि सब्र नहीं है?
हां नहीं है. लेकिन काम नहीं मिलेगा तो वही करेगा.
आज तक नरेगा में किसी ने काम किया है क्या या तो उसमें भी भेदभाव होता है कि नहीं मिलेगा काम इन लोगों को? नहीं नहीं ऐसा नहीं होता है. काम है काम देता है देता है नरेगा में काम.
अभी तो इतना काम आप लोग रिलीफ में कर रहे हैं तो गांव की नजर में तो आपका एक अलग रुतबा बन रहा होगा, आपका इमेज अच्छा हुआ होगा?
हां. इस समाज का पहले भी लोग नाम किया है. हम लोग सब अपने कुछ लड़के को स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में भेजा था. पैतीस को भेजा था, दो सही ढंग से रुक गया. गोपाल सबर आर्चरी में कोच बन गया. अभी वह सिलीगुड़ी में कोच बनकर काम कर रहा है, सिलीगुड़ी स्टेडियम में स्पोर्ट्स अथॉरिटी के अंडर में. और एक पुलिस ने ले लिया आर्चरी कोच के पोजीशन में, तो पुलिस को कोचिंग देता है आर्चरी में. और इसी समाज का है एक क्राफ्ट है हस्तशिल्प, हैंडीक्राफ्ट.
बहुत से क्या-क्या बनाते हैं?
इसमें बहुत सारे टोकरी बनाते हैं, बास्केट. ६७ डिजाइन है. खजूर पत्ता से, घांस से अंदर ग्लास रहता है बाहर खजूर पत्ता रहता है. कॉटेज इंडस्ट्रीज है, स्टेट डिपार्टमेंट का वह हेल्प करता है. सेंट्रल गवर्कानमेंट का भी एक ट्राईफेट करके है. जिससे बहुत जगह एग्जीबिशन करता है.
तो सबर लोगों का समाज में बहुत इज्जत होगा?
आज से बीस साल पहले हर साल तीस चालीस सबर लिंचिंग में मरते थे. चोरी के डकैती का यह सब लेकर मार देते थे. लास्ट सेवन इयर्स में एक भी ऐसा घटना नहीं हुआ. सबर चेंज होता है ऐसा भी है कि सब कोई झूठ बोल रहा है ऐसी बात नहीं है सबर लोग भी क्राइम करते थे.
लेकिन वह किस कारण से क्राइम करते थे और क्या बदला कि वह क्राइम करना छोड़ दिए ?
दो -तीन कारण है. हम लोग एक काउंसलिंग करते थे. बहुत सारा सिलेबस से तरीका है. और दूसरी बात है उसको हम लोग अल्टरनेट देते थे. कि क्राइम करने में तुम्हारे जीवन में हमेशा पुलिस, पुलिस-कचहरी- कोर्ट रहेगा और वकील भी पैसा खाएगा. इनका अल्टरनेट लाइवलीहुड बनाते थे, जैसे बकरी पालन. तो हम लोग पांच बकरी और एक बकरा देते थे. उसको एक साल अच्छे से पालन करें तो सोलह सत्रह हो जाता है. और उनका रात का काम बंद करते थे: दारू और चोरी.
बकरी पालन तो एक अलग जिम्मेदारी हो गया और एक साल में पैसा कहाँ से आएगा?
हां, और एक साल में पैसा भी नहीं मिलेगा. तो हम बोलते हैं कि एक साल हम देंगे. चलो तुम खेती में काम करो, सब्जी उगाओ, किचन गार्डन करो. किचन गार्डन बनाते हैं हम लोग. उसको एक साल में हम कुछ ना कुछ काम में इंवॉल्व करते हैं. दो चीज हो जाता है. उससे तो उसे सुपरविजन होता है. वह भी जानता है कि हम लोग को देख रहा है, जांच कर रहा है.
दूसरा यह बंद करने के लिए हम लोग एक नाइट प्रोग्राम करते हैं. १०५ गांव में एडल्ट लिटरेसी सेंटर. उसमें पढ़ाने का काम होता तो नहीं था. वह तो पहले से आप हमारा सोच था, उनको नहीं बताया यह बुड्ढा लोग कितना पढ़ेगा, यह सब लोग जानता है. लेकिन एक है, अपना कल्चर, अपना नाच गाना कराओ, पुराना जमाने का स्टोरी बताओ, अपना जीवन का सबर संग्राम का बताओ, रेगुलर बैठक करो. रात को उस समय अटेंडेंस में, हमको पता चल जाता था कौन रेगुलर रहता है या नहीं रहता है.
समुदाय का आपका एकता भी बना और सारे लोग बैठ गए और एक गर्व आत्म सम्मान भी हुआ कि हम लोगों को गाना बजाना भी आता है.
वही तो. हम लोग ट्रेडिशनल इक्विपमेंट्स भी दिए. कौन-कौन सा होता है आपका ट्रेडिशनल इक्विपमेंट? नगाड़ा ढोल, माढोल हम सब बोलते हैं, फिर तमसा और शहनाई छोटा वाला शहनाई. गांव में थोड़ा चेंज आया, बजाते बजाते कुछ-कुछ लड़का बाहर के गांव से कुछ लड़का से कैसिओ सीख लिया और फिर अपना ड्रम सेट खरीद लिया और अपना बैंड बना लिया. गांव वालों को जो शादी ब्याह में बजाते तो, एक कमाई भी आने लगा लेकिन उसका अपने खुद के दिमाग से आया था, हमने नहीं किया ये.
इस पूरे प्रक्रिया में लड़कियों और औरतों का क्या हाल है ?
सबर ट्राइबल समाज में, समान अधिकार है. सबर समाज में कोई डावरी(दहेज़) नहीं लगता है लड़कियों का. और उल्टा लड़के को देना पड़ता है. पहले पांच रुपया, दस रुपया था, अभी बढ़ गया. अभी तो सुनने में आया १०० रूपए, २०० रूपए भी लेता है. लड़के के बाप को देना पड़ता है, लड़की के बाप को. और जो डाइवोर्स होता है हमारे में वैसा उधर नहीं होता है, हमेशा हस्बैंड बोलता है वाइफ को. इनका यह है कि अगर हमको आपसे लगाव नहीं है, तो लोहा खोल कर, आप को पकड़ा देंगे. लो तुम्हारा लोहा, आज से तुम्हारे साथ नहीं रहूंगा. ये ओपन है, इसमें कोई विचार व्यवस्था नहीं होगा, कि परिवार बैठेगा, समाज बैठेगा, ऐसे नहीं है.
मतलब लड़की खुद ही डिसाइड कर सकती है कि मेरे को नहीं रहना है?
हाँ. यहाँ दो-तीन टाइप का शादी भी होता है. इसमें अपना सिलेक्शन होता है. एक मेला होता है छाता पर्व. वहां पर सिलेक्शन करके ले जाते हैं. यह बरसात वाला छाता? हाँ वही वाला. यह छत्रधर का राजा साहब है. वही उठाता है, छाता. यह ट्राइबल लोग उस राजा को बहुत मानते थे. छत्रधर तो छाता उठाया, रात भर गाना बजाना हुआ, सुबह-सुबह पसंद हो जाते हैं. लड़की लड़के के साथ या लड़का लड़की के साथ उसके घर चले जाता है. गांव वालों को बोलते हम घर जा रहा हूं, वह अपना पसंद का हो गया.
कौन किसके घर जाता है? लड़का लड़की के घर जाता है कि लड़की लड़का के घर?
दोनों होता है. यहां सबर में तो मैक्सिमम देखते हैं, शादी करके लड़का लड़की के घर में रहता है. एक कारण भी है कि दोनों जगह में प्रॉपर्टी का बात नहीं है. कहीं भी जाइए, वहीं गरीबी है. वाइफ हस्बैंड दोनों को ही कमाना है, अपना मकान बनाना पड़ेगा. और अपने भाई भाई में बटवारा भी नहीं है. प्रॉपर्टी रहेगा तभी ना बटवारा होगा, झगड़ा होगा.
तो जिसका बेटा बेटी है और किसी के पास ज्यादा बकरी है, बकरा है. तो उसमें लड़ाई नहीं होता है, बंटवारे को लेकर लड़का-लड़की में?
हम जैसे दिखते हैं इसमें लड़का परवाह ही नहीं करता है कि पिता का इतना बकरी है, हमको लेना है. वह बोलता है ठीक है, तुम रखो, हम कर लेंगे. यह प्रॉपर्टी बकरा -बकरी को लेकर झगड़ा, यह ३५ साल में क्या, हम दो तीन देखे हैं. उससे ज्यादा नहीं देखे हैं.
मतलब पैसे को लेकर लालच वाला जो प्रवृत्ति है वह उतना नहीं है?
नीड भी कम है. बाहर का आदमी सोचते है कि वह जंगल के अंदर क्या कमाई कर रहा है, क्या खा रहा है? उसके पास पैसा भी नहीं है किसके घर में जाकर काम करता है पैसा लेता है. ऑल टाइम उसको शंका की नजर से देखता था. तो जंगल में जो मिला उसी को खा लिया. उसका जंगल में मछली हो गया, जंगली आलू हो गया. जंगल में बहुत सारे लता होता है, जिसके नीचे बड़ा बड़ा आलू बनता है. वह लोग बावला बोलते हैं सबर भाषा में उसको.
तो बहुत सारे मामले में सबर समाज तो मेंस्ट्रीम समाज से बेहतर है?
हां. अभी कुछ कुछ चीजों में गड़बड़ी हो रहा है. अभी जैसे कि दारू से. पैसा बढ़ रहा है वैसे दारू भी बढ़ रहा है. और इसमें सरकार का भी रोल है. वह हर गांव में हर पंचायत में लाइसेंस दे दिया.
पहले नहीं मिलता था?
पहले इतना नहीं मिलता था. पहले दूर होता था तो वह लोग इतना दूर तो नहीं जाता था. तो महुआ तो पीते होंगे ना? हां दूसरा दारू है. जिसका बात कर रहे हैं. महुआ पीने से तो अच्छा रहता. अभी महुआ का कॉस्टिंग है. अभी तो जो स्टेट से बनाता है, भट्टी में और तो लोग चुल्लू पी रहे हैं. चुल्लू वह चुल्लू भर पानी वाला चुल्लू ? हां यह देसी शराब होता है जो बिना लाइसेंस वाला बनता है. उसको चुल्लू कहते हैं. वही ज्यादा चलता है. अपना जो महुआ है, हंडिया है, वो तो अच्छा होता है सेहत के लिए. और ताड़ी? जो खजूर से बनता है? ताड़ी तो सीजनल होता है. अपने यहाँ ताड़ी नहीं होता है.
तभी आप चाह रहे हैं रिलीफ के साथ-साथ आप सारे लोगों को सरकार का बेनिफिट भी मिले ?
हां, हम यही चाह रहे हैं. हमने सी.एम को भी सजेशन दिया है, लिखा है. डिमांड किया है शोर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म करके.
क्या-क्या सुझाव दिया है?
शॉर्ट टर्म में तो रिलीफ है. जो राशन है, २ किलो आटा २ किलो चावल, वो १ महीना कैसे चलेगा? उसको डबल करना. वह परिवार देख कर दीजिए. जिस परिवार में सात आठ मेंबर है, उसका कैसा चलेगा?
यह परिवार वॉइस देते हैं, कि हर परिवार में कितने लोग हैं, उसके हिसाब से देते हैं?
नहीं हर कार्ड में देते हैं. अगर परिवार में ३ कार्ड है तो ३ कार्ड का सामान मिलेगा. पहले परिवार था अभी तो सबका पर्सनल कार्ड हो गया. दूसरा हमारा मेल न्यूट्रीशन के ऊपर बहुत चिंता है. जो आईसीडीएस और आंगनवाड़ी केंद्र से चलाते हैं, वो गवर्नमेंट ने आंगनवाड़ी केंद्र में बच्चों को खाना दे रहा था, तो टाइम पर खाना मिल जाता था.
अभी क्या हो रहा है, बंद हो गया है?
अभी घर में कभी-कभी खाना हो रहा है, कभी-कभी नहीं हो रहा है. दूसरी बात की आंगनवाड़ी केंद्र बंद है तो उसका चावल और आलू १ महीने का, एक ही बार दीदी दे रही है. वह सामान तो चार-पांच दिन में खा लेते हैं. थोड़ी न बच्चे के लिए रोज १०० १०० ग्राम बनाते हैं. तो बच्चे का बड़े लोग खा ले रे? क्योंकि वह तो कॉमन किचन में होता है ना. तो वो तो घर में २३ रोज तो बिना न्यूट्रिशन फूड के रहेगा. तो फिर क्या कर सकते हैं? तो दूसरा न्यूट्रीशन फूड देना चाहिए ना जैसे अंडा बंद कर दिया अंडा में बहुत न्यूट्रिशन होता है.
यानि प्रोटीन का कुछ भी दे. दाल दे, अंडा दे, सोयाबीन दे.
लॉन्ग टर्म में हमने मॉडल सक्सेस किया है. वह हमने कलेक्टर को दिया है. हम लोग जो किचन गार्डन बना रहा है, उसका ये है कि हर आंगनवाड़ी सेंटर के सामने मा लोगों का कमेटी बनाकर, उनको सीड्स दे देते थे और सब्जी उगाने के लिए बोलते थे. और फिर बोलते थे, डेली आंगनवाड़ी सेंटर में डालो, तुम्हारा ही बच्चा तो इसमें खाना खा रहा है. तो लास्ट ६ महीने का रिपोर्ट लिया और कैलकुलेशन किया, तो मेल न्यूटरिशन नहीं आया.
यह जो आंगनवाड़ी केंद्र में खिचड़ी और चावल बनता है, २५ दिन बनता है. वहां पर कुछ ना कुछ डालो, कोई सब्जी. आंगनवाड़ी केंद्र में जो एलॉटमेंट है ना सुनने में बहुत अच्छा है, लेकिन बहुत कम है. अब बाजार में तो अंडा मिलेगा ५ रुपए में और उनको देते हैं चार रूपए पच्चीस पैसा में. तो वह दीदी क्या ७५ पैसा घर से देगा? तो जानबूझकर हम लोग ऐसा करता है तो उसको बोलते हैं पूरा अंडा मत दीजिए आधा-आधा दीजिए. हम लोगों ने किचन गार्डन बनाकर जब सब्जी आंगनवाड़ी में डाला, तो मेल न्यूटरिशन का शिकायत कम हो रहा है, तो यह अब गवर्नमेंट करें. गवर्नमेंट करें, यह मॉडल ले, गांव वालों को जोड़कर, आंगनवाड़ी के दीदी को जोड़कर.
यह दो मॉडल में हम लोग सक्सेस हुआ. पहला तो यह था कि हम लोग सेंटर में खाना बना रहा है इसमें गवर्नमेंट का कुछ नहीं है. गांव में जो इंटरेस्टेड लोग हैं जो सब्जी उगाना चाह रहा है तो उसको हम लोग इंस्ट्रूमेंट दिया, कुदाल और पानी देने का झाड़ी और सीड फ्री ऑफ कॉस्ट दिया. पहले घर में खाओ, फिर आंगनवाडी में डालो. आज हम दिया, आंगनवाड़ी में कल तुम दो, परसों दूसरा देगा, थोड़ा बहुत आंगनवाड़ी केंद्र में.
आपके सेंटर का क्लास, कितना से कितना बजे चलता है?
7:00 से 9:00 सुबह टाइमिंग होता है. और स्कूल का ? 10:30 से 3-4 बजे तक. समर में यह अलग होता है. समर में हम लोग शाम में 5:00 से 7:00 बजे करते हैं क्योंकि समर में स्कूल मॉर्निंग टाइम में हो जाता है.
और आपका तारीफ़ क्या है, आप कितने साल के हैं?
मेरा ६० साल निकल गया. १० नवंबर १९८३ जॉइन किया था आर्गेनाइजेशन और डेट ऑफ बर्थ है ९ मार्च १९६०.
आप कितना तक पढ़े हैं?
मैं ग्रेजुएशन किया हूं बाकी बहुत सारे कोर्स किया हूं. रूरल डवलपमेंट का डिप्लोमा किया हूं एन.आई.आर.डी हैदराबाद से. एक ठो नहीं मैंने बहुत सारा कोर्स किया जिसमें मेरे को इंटरेस्ट था. वो मेरा पर्सनल इंटरेस्ट था कि मेरे को समुदाय के लिए करना है. इसमें मेरा कोई कोई बुड्ढा गुरु था जो कि मेरे को इंस्पायर किया. मेरा उसमें से अपना ससुरजी था. वह बोले कि इनके साथ कुछ करना चाहिए.
आप किस समाज से आते हैं?
मैं बंगाली समाज से. मैं गांव छोड़कर गांव में इन लोगों के साथ ही रह रहा था. तीन साल से आना-जाना करते थे पर मैंने देखा कि सही ढंग से इनके साथ काम करना है तो इनके साथ रहना पड़ेगा और इनको देखना पड़ेगा. मुझे महसूस होगा तभी मैं कुछ कर पाऊंगा.
उस समय आपकी शादी हो रखी थी?
नहीं ८ साल बाद मेरे बचपन के दोस्त से शादी किया. हम लोग जैसे आदमी ऐसे कोई नेगोशिएशन में शादी नहीं करेगा. हम लोग का खाने का ठीक नहीं है, रहने का ठीक नहीं है. कब क्या मिलेगा, नहीं मिलेगा, कुछ सिक्योरिटी नहीं है. हमारा ९३ में शादी हुआ फिर ९५ में एक लड़की हुआ, वो कॉलेज में नौकरी कर रही है.
फिर आप लोग कहां रहते थे शादी के बाद?
वह गांव पर रहते थे. उस समय वहां उस समय इलेक्ट्रिसिटी नहीं था. हमारा बच्चा भी वही बड़ी हुआ. बाद में टाउन में आया क्योंकि उनको एक बीमारी हुआ था, तो टाउनशिप में शिफ्ट करना पड़ा, अभी भी हमारी बेटी का जब शादी हो जाएगा, हम लोग दोनों वापस जाएंगे, गांव पर. वही हमारा सपना है. यह समाज जो हमको दिया है हम समाज को कितना दिया छोड़िए, समाज जो हमको दिया है, वो गिन नहीं ससकते. हमको इतना मानता है, हम बहुत सारा किताब लिखे हैं. उनका लैंग्वेज में सबर भाषा में. मैंने गीतांजलि जो रविंद्र नाथ टैगोर का है उसको सबर भाषा में ट्रांसलेट किया है, पब्लिश किया. 2012 में मैग्सेसे अवार्ड के लिए नॉमिनेशन हुआ था पता नहीं कौन भेजा था. मेरे पास लेटर आया था कि आप को नॉमिनेट किया गया है.
इनकी भाषा बंगाली भाषा और बिहारी से बहुत अलग है ?
हां बहुत अलग है. सांथल भाषा से मिलता है क्या? नहीं. इनका क्या हुआ, इनका ओरिजन तो हमको भी फुल नहीं मिला. जहां एक बंगाली पुराना भाषा है मन भूमि, उससे थोडा मिलता है. बिहार में था तो उसमें कुछ कुछ हिंदी भाषा का टर्म्स घुस गया लेकिन अभी भी पानी को ये पाणी बोलते हैं, भात तो पेज बोलते हैं. साउथ इंडियन में एक ट्राइबल भाषा है, वहां भी भात को पेज बोलते हैं.
रिलीफ में कितने लोगों तक अभी पहुंच पाए?
हमने 1163 परिवार को अभी तक रिलीफ दिया है. हर परिवार को २५ किलो चावल, ५ किलो दाल, १० किलो आलू, २ लीटर सरसों का तेल, ५ किलो मसूर दाल मसूर दाल सस्ता पड़ता है क्या? कि हेल्दी होता है ?
यह लोग मसूर दाल ही डिमांड करते हैं. हम लोग जैसे घर में अरहर दाल, तुवर दाल, मूंग दाल, चना दाल खाते हैं लेकिन हम पूर्णिया में देखते हैं, लोग मसूर दाल ही ज्यादा खाते हैं. हां दूसरे दाल से सस्ता भी पड़ता है.
आटा भी दिया ?
आटा यह लोग नहीं खाता है. वही तो. राशन वाला आता ये लोग बेच रहा है. फिर इसमें गड़बड़ मीडिया छाप रहा है कि गरीब राशन भेच देता है. आटा जो खाता ही नहीं है तो उसको आटा क्यों दे रहा है? क्या करेंगे?
फिर उस पैकेट में हम 25 किलो चावल, 5 किलो दाल, 10 किलो आलू, 2 लीटर सरसों का तेल, 5 किलो मसूर दाल, 1 किलो नमक और मसाला और हल्दी जीरा पाउडर, प्याज और तीन ठो साबुन और एक पैकेट डिटर्जेंट, पूरा करके दे रहा है.
एक पैकेट का कितना खर्चा पड़ता है?
1965 रुपए इंक्लूडिंग ट्रांसपोर्ट. स्पेंसर ने हम लोग को सप्लाई किया. स्पेंसर? बिग बाज़ार, स्पेंसर. हम लोगों ने टेंडर किया था. यह अजीम प्रेमजी फिलैंथरोपिक इनीशिएटिव हम लोगों को फंड किया है. ई टेंडर के थ्रू हम लोगों ने मंगाया. बंदी के समय कोई देने को तैयार नहीं था और बताइए हजार परिवार का 25 किलो का पैकेट देना भी मुश्किल है. स्पेंसर ने अच्छे से पैक करके हमको दिया. हमको बहुत अच्छा लगा. और सबको ऐसे नाम सुनने से लगता है बिग बाजार स्पेंसर बड़ा है बड़ा है, लेकिन यह लोगों ने हम लोग को डिस्काउंट भी दिया और अच्छे से पहुँचाया. हम लोग का एलॉटमेंट था हजार परिवार का लेकिन उसी पैसा में उसी में १६५ परिवार का और राशन हो गया.
अभी और कितने लोग को देना है?
फिर हजार पैकेट और हो रहा है. डीएमडीएम तो बोल रहा है कि सारे को दे दीजिए. तो हम बोले हैं तो फिर आप क्या करिएगा? तो पहले ११६५ हो गया और १००० और हो जाएगा, तो मान लीजिए ४०० बाकी है. तो अभी हम लोग को छोड़कर बहुत लोग और रिलीफ दे रहा है. बहुत सारे संस्था हम ही को पूछ रहा है कि कहां देना है? कल ही एक पूछा, तो वह ५ गांव में २०० परिवार को राशन दे रहा है. तो हमारा २०० परिवार का मेकअप हो गया लेकिन वह लोग कम कम दे रहा है, ५ किलो चावल दे रहा है और हम लोग २५ . तो जो भी पूछ रहा है हमारे पास एक्सेल शीट है, हम चार्ट देख कर बता देते हैं, कौन से गांव में देना है.
अभी ए.पी.पी.आई, अजीम प्रेमजी फिलान्थ्रोपिक इनिशिएटिव का १ अप्रैल से, हमारे साथ ३ साल का काम शुरू हुआ है. सारा एंटाइटलमेंट के ऊपर है. आर्गेनाइजेशन को खड़ा करना है.,लड़का लड़की को अपना जीवन का हाथ पकड़ा देना है, तीन साल के अंदर. एक्चुअली, फर्स्ट फरवरी से शुरू हुआ है ये.
वह आपका किस- किस चीज में मदद करेंगे?
चार पांच आइटम के ऊपर है. हम लोग बोले हैं जैसे हमारे कम्युनिटी ऑर्गेनाइजेशन में कमी है, सही ढंग से कंप्यूटर में अकाउंट नहीं होता है. हमारा डाटा एंट्री ठीक से कंप्यूटर में नहीं कर पाते तो हमारा जो लड़का था वह नहीं कर पाता. हम लोगों ने चेंज किया. फिर वह दिल्ली में जाकर ट्रेन हुआ. अभी सारे अकाउंट सबर लड़का रखेगा. डाटा एंट्री करेगा. और हमारा जो अभी गवर्निंग बॉडी है, उसमें अभी सात मेम्बर है. और एक ही लेडीज है. सबर का कम से कम तीन लेडी गवर्निंग बोर्ड में करना है और ५० साल का ऊपर वाला कोई नहीं रहेगा. क्योंकि और ५० चलाना है. अभी तो ५० साल हो गया लेकिन आगे ५० साल के लिए, हमको पकड़ा देना हैं, यंग लोग को. इसीलिए ट्रेन कर रहे हैं, वो लोग तो पकड़ लिया है अभी से.
वह लोग रिलीफ में भी है, हर मीटिंग में भी है. अभी तो मोबाइल हो गया, इसमें से बहुत अच्छा हो गया. सब लोग का लोक डाउन है. हमारा तो ऑडियो, हर दिन कॉन्फ्रेंस होता है, और यह सब लड़का ही करता है. अपने फोन से सबको, मेघनाथ सबर है, वही मीटिंग कराता है. रत्नाब्ली सबर, देबंजन सबर, हेमंत सबर और विष्णु. इसमें रत्नाबाली लड़की है, जो थर्ड ईयर में बी,ए. कर रही है. वह तो प्रेजिडेंट बनेगी.
अभी रत्नाब्ली प्रेसिडेंट नहीं है?
अभी वह वाइस प्रेसिडेंट है. उसको प्रेसिडेंट बनाना है. महाश्वेतादेवी था हमारा वर्किंग प्रेसिडेंट तो. १९८३ से २०१६ तक. 2016 में उनका देहांत हुआ. वो यहाँ पर रेगुलर आती थी. यहां पर 15 दिन, 16 दिन रुकती थी. सब कोई उनको मां कहते हैं. सबर माता उनका नाम ही है.
अभी इनमें से कौन है प्रेसिडेंट? भोलानाथ सबर. भोलानाथ का कितना उम्र है? अभी वह 45 है, एक दो साल में वह 47 हो जाएगा. फिर वह वाला जगह रत्नाब्ली लेगी. और मेघनाथ सेक्रेटरी होगा, जलधर सबर अभी सेक्रेटरी है.
आपस में यह सब चीज को लेकर लड़ाई होता है क्या कि कौन क्या होगा?
नहीं नहीं होता है. इसका भी कारण है जो पहले से हम लोग को संस्था है, उसमें ज्यादा फंड और प्रॉपर्टी नहीं है तो. इसमें तो ५० साल से सबको अपने घर से लगाकर काम करना पड़ता है. अगर सही ढंग से प्रॉपर्टी, पैसा बढ़ जाता तो दिक्कत होता. यह पहले महाश्वेता देवी का सोच था. उसने अपनी जिंदगी में भी ऐसा ही किया, कभी कोई प्रॉपर्टी बनाया नहीं. हम भी उस सोच को अच्छा से लिया है तो.
वह अजीम प्रेमजी फिलान्थ्रोपिक इनिशिएटिव (ए.पी.पी.आई) आपको क्या-क्या दे रहा है ?
एक है, वह स्टाफ का सैलरी देगा. ११ स्टाफ का और ३ फेल्लो दे रहा है, जो स्टूडेंट्स को देंगे. सिर्फ ए.पी.पी.आई नहीं इसमें टाटा ट्रस्ट भी है. मयंक, वो टाटा ट्रस्ट के साथ हमारे साथ तीन साल से काम कर रहा है. आठ स्कूल टीचर का, टाटा ट्रस्ट पैसा देगा. तो यह टोटल, हम लोग को 16 मिल गया टीचर. टाटा ट्रस्ट से स्टाफ का सैलरी नहीं है.
( मयंक सिन्हा ,टाटा सामजिक विज्ञान संस्थान, मुंबई के पास आउट हैं. उन्होंने टांडा, [Towards Advocacy Networking and Developmetal Action (TANDA)]एक फील्ड एक्शन प्रोजेक्ट, सेंटर फॉर क्रिमिनोलॉजी एंड जस्टिस के अंतर्गत, २०११ में शुरुवात की. आज वो नेशनल अलायन्स फॉर नोमेडिक, सेमी-नोमेडिक ट्राइब नामक संस्था के फाउंडर हैं. टाटा ट्रस्ट के माध्यम से २०१९ में उन्होंने पुरुलिया में काम करना शुरू किया. आज यहाँ पर चार संस्था इस काम को अलग -लग तरीके से सपोर्ट कर रही है: टांडा,टीस | टाटा ट्रस्ट | ए.पी.पी.आई |और प्रेक्सिस .
स्टाफ से आप क्या कराएँगे? कौन है यह ११ लोग ?
ये ११ सारे सबर हैं. तो हमारा आठ ब्लॉक है तो उसमें तीन साल में हर सबर का मेंबरशिप रहेगा. उनको बोला है यह तीन साल में करेंगे लेकिन हमारा कोशिश है एक साल में करने का. फिर सारे एंटाइटलमेंट सारे सबर को मिलना है. और जो हमारा टारगेट है, वह है फॉरेस्टलैंड राइट्स, उसका जो पेपर नहीं मिला है, इसको हम कराएँगे.
और फिर इसे जमीन का खेती-बाड़ी करने के लिए किसी और जगह से पैसा लाकर करेंगे. हम लोग को सबर का माइग्रेशन बंद करना है तभी उनका एजुकेशन आएगा. तीन महीना, छः महीना को जाता है, तो बीच में बच्चे का पढ़ाई बंद हो जाता है.
इतने साल में हम लोग को यह समझ में आया कि जो मिलना है, वह सरकार से ही मिलना है. तो हम लोगों ने प्रशासन का भी प्रचार किया क्योंकि अगर उनकी गड़बड़ी को बात करेंगे तो वह हमें एन्टी समझने लगते हैं. अभी देखो डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर गांव में आ रहा है,उसका देखा देखी बी.डी.ओ. को भी आना पड़ता है.
और अभी कोरोना के बाद का क्या सोच है?
हमारा हेंडीक्राफ्ट, का आर्डर हुआ था. लेकिन अभी हमें समझ आया कि वो नहीं खरीदेगा. वो लोग मिडिल क्लास है. पैसा अभी तो सबका उड़ गया. तो हम लोग सोच रहा है, कि ए.पी.पी.आई को बोलेगा, विप्रो को बोलेगा, वो तो बड़ा कंपनी है. उनका मीटिंग होता है, सेमिनार होता है. तो हमारा सामान एक्ष्हिबितिओन में रख सकता है. लैपटॉप कवर हुआ, फाइल फोल्डर हुआ, पेन होल्डर बहुत सामान है हमारा तो. जरुरत के हिसाब से बनाया जा सकता है. यह सब हम लोग खजूर के पत्ते, घांस और ग्लास से बनाता है.
सबर समाज का ये हेंडीक्राफ्ट कैटेलॉग है, आप आर्डर भी कर सकते हैं :
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