हारून शैख़
यहाँ पे प्रदुषण और गन्दी हवा से तकलीफ कई किस्म की है, लेकिन आदमी बोलता है न की इतना वक़्त है इंसान के पास की सीना खुख्राए. खांसी हो रही है. कहीं चला जाये. किसी आदमी को नोर्मली खांसी भी होती है तो वो बड़े से बड़े डॉक्टर के पास हाथ पैर मरता है. ये एक आम बात हो गया है.
५५% छोटे छोटे एरिया के अन्दर टी.बी बीमारी मिलेगी. टी.बी पे कई संस्थाओं ने काम भी किया है. टी.बी के इलाज के लिए दवा मिलेगी, कुछ दिन चला वो भी. अभी भी दिक्कत था कि मैं दवा के पीछे भागूँगा तो मेरे जो चार बच्चे हैं उनका पेट कौन पालेगा, और फिर दवा पे कम ध्यान देते हैं. उसमे रोग बढ़ता चला जाता है. किसी को कुछ पड़ी नहीं है. गरीब माहौल के हिसाब से जो गार्डियन बीमार पड़ेगा तो परिवार को पालेगा कैसे ? अगर दवा पानी में वो पैसे देगा तो, यहाँ भी ऐसा है. हर किस्म की बीमारी है. इस डंपिंग ग्राउंड की वजह से अगर टेस्ट करने जाओ तो कई किस्म की बीमारी मिलेगी.
बीच में हवा चली थी, डंपिंग ग्राउंड में जो कचरा चुनने वाले जो छोटे-छोटे बच्चे थे, जो हॉस्पिटल का कचरा जो डंपिंग में फेंका जाता था तो इंजेक्शन, ब्लेड ये सब वगैरह जो बोहोत सी ऐसी ऐसी चीज़ थी वो चुन रहा था तो उसको किला चुभा रहा है. हॉस्पिटल का जो सीरिंज की वजह से छोटे-छोटे बच्चों का टेस्ट हुआ था, उसमे एड्स दिखाया. तो वो किसका दोष है, उसने क्या
किया. सुबह बेचारा स्कूल गया दोपहर को आया खाना खाया और बोला माँ आता हूँ, थोडा कुछ शाम का भी गुजारा हो जायेगा. वो थोड़ी लकड़ी जमा करता है, अब उसको किला चुभा है, पैर कटा है फिर लकड़ी जमा करके यहाँ के स्लम्स के बेक्रियों में जमा जा के डालता है. वो २ रूपए किलो लेता है तो बेकरी में पाव बनता है, फिर पानी की खली बोतल जमा करता १०-२० किलो जमा करता है फिर उसे जा के उसे वो ५०-१०० रूपए में बेचता है. वो बचके लेक अपने माँ-बाप को देता है,की मेरे घर में गुजारा हो जायेगा थोडा.
ये डंपिंग में कई गरीबों की इंडस्ट्री है. ये जलने में बीमारी तो है ही लेकिन डंपिंग कईयों का पेट भी पालता है और बोहोत से लोगों को बीमार भी करती है. उससे किसी का घर भी चलता है तो किसी को तकलीफ भी देता है. लेकिन बोलते हैं न के आदमी को जब अपने रोटी-की चिंता है तो रोग पे ध्यान नहीं देता. अरे बच्चों का पेट पल रहा है ना, मेरी खांसी आज है कल चल जाए या मैं ही चला जाऊं, ऐसा हो गया है. कई लोग इसी वजह से बीमार पड़े हैं. उम्र हुई दवाखाने के चक्कर कटते-काटते ये हो गया है कि फलाना चच्चा का इंतकाल ही गया, कल बोलते हैं थर्मल चुनने वाले चच्चा वो भी गए. परसों क्या होगा की वो गोली चुनने वाली खला थीं न वो भी गयीं. इनका लाइफ ऐसा ही है. चुनते-चुनते बचपने से जवानी आई फिर उनके बच्चे आये फिर चुनते चुनते वो चले गए.
ये देखो ये मेरा दोस्त है, बौंसर था इसको भी हटाया गया तो कॉन्ट्रैक्ट बसे पे था न. इन लोगों को भी हटाया उन लोगों ने. अब ये ऐसा ही यहाँ पे चलता है. भाई जितनी बारीकियों से खोदोगे तो मैं तो बोलता हूँ पूरी मुंबई का कचरा डंपिंग ग्राउंड में आता है , सारी बुराई भी तो आ रही है. अच्छा बुरा हर चीज़ आ रहा है. यानि ये जो डंपिंग है बुरे बुरे को छांट कर हमारे पास फेंक रहे हैं. अच्छी चीज़ कोई लाके फेक नहीं रहा है. घर के अन्दर से कोई अमूल बटर नहीं फेंकता बहार . ताज़ा बना हुआ खाना नहीं फेंकता है, रात का खाना फेंकता है. मतलब पूरी बर्बादी पूरी बीमार करने वाली चीज़ें. फ्लाटों में टावरों में रहने वाला इंसान मुंह पे रुमाल रख के बुरी चीज़ अपने घर से फेंकता है. कूड़े में कूड़े से गाडी में आता है फिर डंपिंग में आता है. डंपिंग से हमारे घरों में. उसका मतलब गोवंडी इतनी गई-गुजरी हो गयी है के सारा कूड़े का ठेका, बीमारी का ठेका, मरने का ठेका गोवंडी वालों ने लिया है, यहाँ के स्लम्स ने लिया है यहाँ के झोपेरपटी के गरीबों ने लिया है. बाकी अमीरों का उसमे कोई रोले नहीं है.
बी.ऍम.सी को कई बार अर्जी दी, आरोप लगाये लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता है. बी.ऍम.सी की ज़मीन है. भाडा भर रहे हो. गवर्नमेंट की जमीन बी.ऍम.सी की जमीन है वो जब चाहें खाली करा सकते हैं. हटाएगी तो हटना पड़ेगा . फिर हम लोग जो हैं किसी विरोध में, फिर वो हमें बोलते हैं अपना पत्र दिखाओ, पात्र है-पात्र है इससे हम लोगों के साथ खेलती है. हम ऊँगली करने जाते हैं तो वो हमे ऊँगली कर देती है कि झोपरपटी खाली करो, तोड़ो. यानी हर किस्म से कहीं न कहीं गरीब आदमी मारा जाता है. किसी चीज़ में हम लोग आन्दोलन करते हैं, फिर वो देखते हैं की बन्दे का कौनसा एरिया है. तो वहां दूसरा कुछ कटा-चंटी हो जाती है इन लोगों की. और जितने भी जातिवाद नेता आये ज़ाहिर सी बात है हमारे बीच में कम नगर निगम में ज्यादा बैठते हैं. चुना तो हमने उसे हमारे एरिया से लेकिन बैठता वो उनके वालों के बीच में तो हमारी कम सुनेगा न फिर, उनको सुनेगा.
यहाँ पे कोई मीडिया वाला नहीं आता. अभी बीच में “जी मज़ह” वालों को हमने बुलाया था वो क्या बोलता था की देखो ये एरिया में हमको कुछ दिखने के लिए हमारे बॉस ने मन किया है. कुछ भी होता है यहाँ, क्राइम के मसले पुलिस ने बुलाया मारा. मरने के बाद में वो बाँदा चौकी में ही अन्दर आत्महत्या कर लिया. गोवंडी ब्लैकलिस्ट है यहाँ की कोई न्यूज़ नहीं छपेगी,इतना करपट. और यहाँ मीडिया आके फोटो नहीं खींचती है जा के सीधा चौकी में बैठती है. साहेब-साहेब करके अपना पैकेट वहां से लेती है. यहाँ का उल्टा हिसाब है, उल्टा यहाँ कोतवाल चोर को पैकेट बांटता है, यहाँ ओए ऐसा है.
अब न्यूज़ वाला अगर पुलिस के सामने बैठ जाए और बोले की साहब मैं ऐसा-ऐसा सुना है तो ऑफिसर तुमको ठंडा पिलाएगा गोवंडी के अन्दर. देख लेना और समझ भी लेना. तुम चौकी में जा के बैठो और बोलो साहब मैंने ऐसा-ऐसा सुना है की कारोबार चलता है, आप एक्शन क्यूँ नहीं ले रहे हो आप. वो बोलेगा जाने दे साहब आपको क्या करना है, ऐसा बोलके आपको ठंडा पिलाएगा और बोलेगा गाडी में बिठा और छोड़ के आ इनको. इनको एक पैकेट दे दे. यहाँ पे मीडिया पुलिस सी बी.ऍम.सी ऑफिसर्स से पैसे लेती है.आपको नगर पालिका के लोग हफ्ता देंगे. ज़रा सा हल देंगे की अयेथ्रैसे बिल्डिंग जो इतना बड़ा खड़ा किया है, किसका परमिशन मिला है, क्या है, तो वार्ड ऑफिसर खुद तुमको बुलाएगा की जाने दो साहब, वो तुमको देगा उल्टा हिसाब है.
यहाँ ज़मीन डंपिंग डंपिंग वाली ज़मीन है. यहाँ पे एक बस जाएगी तो यहाँ हिलता है, सब यहाँ ४०-५० फीट टावर खड़ा कर दिया, ३-३ मेल का जो की अलावड नहीं है. सब कारपशन से चल रहा है और किसी चीज़ का बोलोगे या लैटर डालोगे तो बी.ऍम.सी ऑफिस, तो रूम ऑफिसर आपको थोडा लेट देगा लेकिन कालोनी ऑफिसर आपको पहले ही लिफाफा दे देगा. ये हम लोगों ने पने आँखों से देखा है. कॉलोनी ऑफिसर आपको खुद बोलेगा की वो कोन पत्रकार है जाके उससे मिल, उसे चाय-पानी देदे. नहीं तो मुझे आके बोलेगा तो मैं तोड़उंगा, यहाँ पे ऐसा करपट चलता है.
ये गोवंडी है यहाँ पर कुछ भी हो सकता है, अबकी बार तो आग लगा है ऐसा लग रहा है के बुझाने से भी नहीं बुझेगी. पहले तो थोडा बोहोत लगता था. वो कोई स्मोकिं करके फेंका उसके भांप से या कोई भी कारन से छोटा-मोटा लग जाता था तो समझ में आता था, फ़ौरन जंगल विभाग की गाडी आती थी, पानी मरती थी तो बुझ जाता था. अब तो अंगार ऐसी लगी है की लगता है की कई घंटों से, पांच दिन हो जायेगा , सुन्हा बुझ रहा है शाम को उबल के आ रही है आज यहाँ बुझ रहा है तो २०० फीट की दूरी पर वहां से धुआं निकल रहा है. ज़मीन के १००-१०० फीट के अन्दर तक सब ख़ाक हो चूका है. अब जब निचे अलटी-पलटी होगा तब जाके बुझेगा. बोलने वाले बोल सकते हैं की सियासत लेवल से अंगार लगी है. जब किसी को कुछ करना नहीं रहता तो ये सब चीज़ करा के एक ईशु बना देता है. हाँ येकॉन्ट्रैक्ट बेचता है बी.ऍम.सी का ऐसा है के पहले कॉन्ट्रैक्ट खाते पे चलता था. डंपिंग अभी भी बी.ऍम.सी अंडरटेकिंग में आ गया करके ऐसा हो रहा है.
बोलने वाले बोलता है, बोहोत से लोग ऐसे बोलते हैं के जो जलन चुनने वाले लोग हैं उन लोगों का काम है, लेकिन कोई भी अपनी रोज़ी-रोटी की जगह जलाता नहीं है. जिस जगह से मेरा घर बाल-बच्चों का पेट पलता है तो मैं उस जगह को जलाऊंगा नहीं. ये तो गरीब लोगों के ऊपर थोपा जायेगा के उनके ऊपर डाल दो. जब इनकुआरी बैठेगी कौन क्या बोलेगा ? चार गाँव से अडोस-पड़ोस के चुनने वाले गरीब को लायेंगे, उनके ऊपर केस बनायेंगे, इन लोगों ने अंगार लगाया था तो गरीब को डाल के, वो जेल में सड़ेगा, मामला वहीँ दबा गया. कई नेता इस सियासत में शामिल, कितने-कितने लोग इसके अन्दर शामिल हैं, बीच में हमारे ऍम.एल ए साहब का भी नाम आ रहा था के वो भी इसमें शामिल हैं, इतना करोड़ ले लिया, ये ले लिया-वो ले लिया. दुनिया के कई किस्म की बात होती है, लेकिन घूम-फिर के जब वो लास्ट में आता है की इसका निचोड़ क्या है इनकुआरी में चार चुनने वाले लोगों को पकड़ा गया. वो लोग डंपिंग में आग लगाया था, पता चला के उन लोगों के घर में खाने की किल्लत है.
वो गरीब डंपिंग जला के क्या करेगा? एक इशू बना था, एक गरीब था उसको कोई पूछने वाला थोडे ही, इसकी तरफ से कोई बात करने वाला भी नहीं तो उसको कौन पूछेगा के तेरे साथ न्याय हुआ के अन्याय हुआ. वो बोलेगा मैं जाता था लकड़ी चुन के आता था पुलिस बुलाई इन्कुईरी करना है फिर डाल दिया केस. कुछ भी डालके अन्दर दाल दिया. उसे ये भी नहीं पता के वो कौनसे केस में अन्दर है, उसे बोला गया के तू छुट जायेगा जल्दी. डंपिंग से तो मेरा पेट चलता है डंपिंग क्यूँ जलाऊंगा मैं. उसको खुद पता नहीं के मेरे ऊपर क्या कलम डाला गया है. वो गरीब है झेलता है, सड़ता है. ६ महीने की सजा काटेगा. सियासत्कारों ने
सियासत खेल लिया. टेंडर के लिए क्या-क्या कर देता है आदमी. देखते नहीं किसी का ब्रिज गिरव दो कांट्रेक्टर वाले पे डाल दो, मजदूर पे डाल दो. वैसी ही यहाँ की सियासत है. जला किसी से लेकिन घूम-फिर के चुनने वाला, भैंस वाला वो मजदूर लोगों पे डाल के सुलट जायेगा. मसला ख़त्म. कहाँ अंगार लगी थी कैसे नुक्सान हुआ था कुछ दिन के बाद लोग वो सब भूल जायेंगे. कोई किसी को याद नहीं करता है.
बोलते हैं न जिस घर में मातम होता है मय्यत होती है ४ दिन का रोना होता है, ५ दिन अपने कारोबार पे चले जाते है. वैसे ही अभी ये तकलीफ हो रही है तो खाईर एअरपोर्ट वालों ने सहारा वालों ने कारवाही हो जाती है, नहीं तो एअरपोर्ट न रहे तो यहाँ के लोग रात-दिन धुएं से मरते रहेंगे.
एक छोटा मिसाल और भी देख लो, शमसान-कब्रिस्तान होगा, हॉस्पिटल भी होंगी जे-जे, साइन वहां की आप सर्वे करा के देख लो के वहां वो गोवंडी-दोनार के कितने % मिलेंगे आपके और बाकी बॉम्बे के और बंदर-कुर्ला काम्प्लेक्स के कितने लोग मिलेंगे आपको, एक करके देख लेना ज्यादा तो सब स्लम्स के ही मिलेंगे. शमसान जाओगे तो वहां बॉडीज कहाँ की मिलेंगी? अपने तरफ से आ रही है. क्या हुआ बीमार था, सब यहीं है.कब्रिस्तान भी टॉप में चलता है हॉस्पिटल भी टॉप में चलता है पुलिस स्टेशन भी टॉप में चलता है, दावाखाना भी टॉप में चलता है. वेस्टर्न साइड में भी चले जाओ वहां पे भी सन्नाटा है. वहां का दावाखाना भी सन्नाटा है, वहां की चौकी भी सन्नाटा है.
आज से काफी साल पहले सुनते थे बी.एम.सी के वात्च्मन से ही सुनते थे, सब समझ में आता था. बी.एम.सी 14;29-14;32 तो बाद में देखने लगे. हम लोग कुछ साल पहले, बॉडी-बिल्डर लोग, बाउंसर ये करते थे क्या, बोले हम हाँ सुनते रहे प्राइवेट हो गया है. ये प्राइवेट प्रॉपर्टी बन गयी है. यहाँ पे कोई अन्दर न जाए तो दीवार कड़ी हो गयी, पहले दीवार भी नहीं था दीवार बन गयी. सी.ऍन गी प्लांट है, ये प्लांट है सुनते थे सब. डंपिंग के अंदर जाना सख्त मना है, फिने है, कोई भी दिखिगा तो उसको पकड़ के फिने मारा जायेगा, पुलिस लेके जाएगी. सुनते थे वहां बाद में मालूम चला के ये किसी दुसरे का है. बी.एम.सी के अंडरटेकिंग नहीं चल रहा है. अब फिर जब वापस मामला ये उठा तब मालूम पड़ा के मसला ऐसा था के कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म हुआ है, बोले के बी.एम.सी के अन्दर अंडरटेकिंग आया है,. वाचमन से पुच रहे हैं हम लोग के तुम लोग क्या हो, गार्ड नहीं है अब तुम लोग?
बोले नहीं हम लोग को हटा दिया गया है. अभी हम लोगों का कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म हो गया. उन लोग के मुह से सुन के बी.एम.सी के हाथ में आया है. बो लोग अब बेरोजगार. फिर वो जायेगा ठेला घसीटेगा या कहीं कुछ बेचेगा. बेचारे चुनने वालों की डंपिंग भी बाद हो गयी है. गरीब जो चुन-चुन के अपना घर चलते थे अब वो कहीं होटलों में मजदूरी करंगे, प्लेटें धोयेंगे, या कुछ बेचेंगे. कोई अंडा बेच रहा है कोई पाव बेच रहा है कोई वाडा पाव बेच रहा है, कोई भजिया बेच रहा है, यही करेगा और क्या करेगा. उसको अच्छी जॉब मिलेगी नहीं, पढ़ा-लिखा है नहीं, गरीब है अब उनको पेट पलना है.
नशे के जो लोग हैं उसको इत्मिनान मांगता है, शान्ति और एक.. तो डंपिंग ग्राउंड ऐसी जगह है जहाँ कोई आता जाता है नहीं और चुनने-चान्ने वाले लोग हैं, वहां कोण उनको डिस्टर्ब करेगा इसलिए वो लोग ऐसी जगह को जाते हैं. पोलिसे अपना काम करेगी, पुलिस जब भी जाती है २-४ को पकड़ पकड़ के लेके जाती है. नशा वालों को. हो सकता है वो लोग करता है छिनम-छानी लूट-मारी, पुलिस पकडती है, कोई भी अनजान आदमी उधर नशे की हालत में मिलेगा तो उसको पकड़ के ले के जाती है.
फायर ब्रिगेड के लोग बुझा रहे हैं उससे डेली, कण्ट्रोल होता है फिर कम्पलसरी एक बोरवेल मोटर लगा कर छोड़ तो नहीं दिया है. टाइम पे आता है रुकता है. वो बोलते हैं न कपडा भींगा के निकालो तो हवा लगती है तो सुख जाता है, तो भांप है, भांप से कचरा सूखते रहता है जल्दी. तो पानी मरने तक भांप पानी को उदा देता है यहाँ बुझता है तो आगे जलता है. वहां बुझता है तो आगे जलता है. कुदरती बारिश जो तो फायर ब्रिगेड गिराएगी नहीं. एक जगह पाइप पकड़ के खडी रहेगी. कुदरती बारिश होवे तो शायद वो ठंडा हो जावे. फायर ब्रिगेड से कितना बुझेगा. ३-४ दिन से भिड़ा है, रात दिन रात दिन फिर भी.. लेकिन कण्ट्रोल नहीं हो रहा है. कई एकड़ का है वो पूरा भँवरे के सारी के जला है वो नोर्मली एक-आध जगह जला होता तो वहां खोद-खाद के लोग थोड़े टावर पलटी करके बुझा देते. कितना बुझाएगा और ये आग ऊपर की आग नहीं है भांप वाली है. ये अंगार ऊपर की नहीं है. आप एक बंदी फेंकेंगे न तो कंडी जल के नीचे जाके गिरेगी. मोम में होल कैसा होता है. नीचे से जलता है, हवा से जलता नहीं. नीचे से जलता है. तो डंपिंग की अंगार ऐसी होती है… नीचे से नीचे से जलती है ऊपर से नहीं जलती.
कई दफ को अनजान आदमी रहेगा तो रात दिन यहाँ का चलने वाला घुमने वाला अन्दर जाने वाला उसको पता है की इस जगह से जाना नहीं, इधर से कमजोर है, नीचे अंगार है उसको पता रहता है अनजान आदमी जैसे नया चुनने वाला रहेगा कई बार आदमी लोगों का हाथ-पैर जल चूका है . कई जानवर-मवेशी अन्दर मारे जा चुके है. बीच मे तो ७ जान्व्वर जल गया था खुल्ला… जानवर तो जानवर है नहीं वो गए अन्दर ही अन्दर पूरा घुस गया. पूरी भैंस ख़ाक हो गयी. सुबह जानवर वाला आया तो देखा अख्ही जानवर.. जिंदा जानवर जल गया. तो ये राख वाली अंगार खतरनाक है.. पता नहीं चलता राख दिख रहा है. हल्का हल्का धुआं निकलता है. लावा जैसा धुआं निकला है. कोई भी चीज़ या पठार अन्दर मरोगे तो फट करके अन्दर घुसता है. कोई भी अनजान आदमी देखा रात को तो बोलता है धुआं तो वहां से निकलता है और यहाँ पैर रखा तो अन्दर सीधा अन्दर घुस गया. पूरा हड्डी के साथ निकलेगा वो, इतना खतरनाक अंगार होता है. हमे तो समझ में आता है, जगह समझ में नहीं आती तो धोखा कह जाता. दिन में समझ में भी आता है की पूरा भांप मरता है मुह पे.. यहाँ राख है आस-पास में मालूम पड़ जाता है. कई दफा हुआ है.
अभी हम लोग के रिलेटिव का बछा.. मेरी बेहें के दूर के रिश्ते में.. उसका बछा मारा है.. उनका बचा बड़ा था लकड़ी-विकदी चुनता था तो वो भी ऐसे ही राख में गिरा दलदल कैसा होता है जो खींचता है इंसान को निचे वो आग दलदल वाली आग है, ऊपर ऐसा दीखता है की ज़म्में है मगर अन्दर पूरा अंगार है खोखला है पूरा निचे, लोड जहाँ पड़ा घप्प करके निचे. अब सिस्टम से और प्लान से बुझेगी अंगार और कुछ नहीं बस प्लान से काम कर रहे हैं उन लोग, बुझ जाये तो अच्छा है, नहीं तो बीच में हम लोग यहाँ थे और और बम्बई तक गए तो वहां तक धुआं दिखा हम लोगों को पहला-दूसरा दिन तो ऐसा लगा जुम्मे-रात याने यानि शुक्रवार.. गुरुवार-शुक्रवार के दिन, तो ऐसा हाल था के यहाँ से वी.टी तक धुआं दिखा वहां पे गए तो वहां तक धुआं दिख रहा है.. कहाँ से धुआं आ रहा है. लेकिन जो यहाँ से वहां जायेगा तो उसको समझ आएगा के धुआं वहां का है, वहां वाला तो गफलत में है के ये धुआं नहीं ऊस है. मतलब जलने की महक आ रही है ये तो समझ, ऊस होती तो ऊस की खुशबू आती जलने की बदबू नहीं आती. उसको ये समझ नहीं आ रहा है, वो समझ रहा है की ठंडी का टाइम है बोला कोहरा और ये धुआं रात में ज्यादा मिसयूज होता है, रात के टाइम ठण्ड से धुआं ऊपर जाता न्माही है धुआं निचे रह जाता है और वाशी की तरफ कम जाता है की बीच में पानी है, पानी से रात के टीम इ भांप फेंकता है धुंए को और धकेल देता है तो इस तरफ जाता है धुआं उस तरफ नहीं जाता है.
जुम्मा वाले दिन मैं खुद रात को दर के उठ गया की मुझे कुछ ऐसे जालेली बास आ रही है तो मैं दर के उठ के देखा के कुछ जला है क्या, देख रहा हूँ कहीं कुछ जला नहीं तोमैं बहार निकल के जैसे ही दरवाज़ा खोला देखा बहार कुछ जला है क्या, तो ठंडी से कुछ जला के छोड़ दिया होगा, बहार निलकल के जब देखता हूँ तो तो बहार रोड पर तो कुछ भी नहीं दिख रहा है, मैं बोला बाप रे बाप इतना धुआं कहाँ से आया, तो एक वो तबेले वाले को पूछता हूँ के भाई.. अन्दर जाओगे तो आमने सामने का आदमी नहीं दिख रहा है इतना धुआं है. इतने बुरे तरीके से डंपिंग जली है. और रात का जला हुआ रात भर में ही धुआं फ़ैल गया ठण्ड से.. २-३ दिन कामपलसरी ठंडी थी, क्लाइमेट ठण्ड का था उसके दरमियान अंगार जो लगी है और ठण्ड से हवा में फ़ैल गया पूरा तो निचे रह गया. बाकी दिन में अंगार जलो तो देखो अंगार का धुआं सीधा ऊपर जयेगा रात को वोही अंगार बुझाओगे तो वो धुआं सीधा ऊपर नहीं जायेगा.. धुआं इधर-उधर चला जायेगा येही वजह है के रात को धुआं ठण्ड से निचे रह जाता है. बीसों साल से तो सुन ही रहा हूँ यहाँ से डंपिंग हटेगा-बंद होयेगा मुलुंड में जायेगा, जाता है कई महीनों के लिए मुलुंड में फिर के साइड से ६ महीने में रेतुर्न आ जाता है तो यहाँ फिर यहाँ चालू हो जाता है. जायेगा सुना लेकिन आज तक गया ही नहीं, और चला भी गया तो मुंबई के अन्दर ये दो ही जगह बची है.. और जायेगा कहाँ कचरा फिर मुलुंड में जायेगा फिर इधर ही आएगा.
मुंबई में ऐसा कौनसा एरिया है बताओ कोई मैदान में कचरा डालने देगा? वाशी का समुन्दर ये महिम का समुन्दर जुहू-चौपाटी का समुन्दर में कचरा डालने देगा? या वोर्ली गटर में कचरा डालने देगा? आखिर ये कचरा दिपोसे होगा कहाँ? इस कचरे की जगह किधर है न्यू बॉम्बे में जो खली खंडहर जमीन बनेली है वहां डंपिंग बनाया जायेगा क्या? वहां वाले अब बन्ने देंगे नहीं, जो है सो है वहीँ है, जाओ गोवंडी वालों के बीच में ही डालो कचरा . घूम-फिर के ६महिने साल बंद होता है फिर चालू हो जाता है. ये साड़ी मुंबई की आबादी इनको बताना चाहिए के उन लोगों का कचरा कहीं डाला जा रहा है तो वहां वाले लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए के वहां वाले लोगों के ऊपर क्या बीत रही है, हमलोग हमारे घर का पूरा कचरा फेंकते हैं लेकिन हमरा कूड़ा-कचरा जा के किसी और लोग को बीमार कर रहा है.
वो लोग भी एक्शन उठाना चाहिए के कचरे का कोई हल निकालो. कोई कंपनी बना लो दिस्पोसे करने वाली.. चिमनी जैसी. बहार बोहोत सी जगह ऐसी बनी है के कचरे से इस्तमाल करके.. उसको देस्पोसे करो वहां से गल्फ से बड़े-बड़े प्लांट आते हैं तो ये सब प्लांट नहीं आ सकता? क्यूँ.. गरीब लोग मर रहे है न तो तो इससे बड़े लोगों का फायदा नहीं है इसी लिए इसके लिए कोई प्लांट नहीं है. ये कचरा गल्फ में देखो.. सुनते हैं हाज कल हर कोई डिस्कवरी देखता है के वहां पे कचरा नहीं कचरे का भी इस्तेमाल किया जाता है. डिस्पोस किया जाता है, धुआं बना के चिमनी से आस्मां में कहीं ऊंचाई पे छोड़ा जाता है, वो सब प्लांट कर सकते हैं लेकिन नहीं करेंगे यहाँ पर क्या पड़ी है किसी को इतना खर्चा दिखा के ये सब लम्बी है.. घूम-फिर के गरीब पे आना है मरना उन्ही को है.
(यह लेख विशाल भरद्वाज द्वारा विडियो से लिखाया गया है. हारून शैख़ मानखुर्द के निवासी हैं, यहीं पर पले बड़े हुए.)