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लातूर में पानी पर धारा – १४४

suresh jadhav

सुरेश जाधव

धारा १४४ का इस्तेमाल पहली बार भारत में अंग्रेजो द्वारा १८६१ में किया गया था, जो कि आज़ाद भारत में १९७३ को कानूनी रूप में ढला. इसका उस समय भी इस्तेमाल आज़ादी की मांग को लेकर संगठित होने वाले लोगों के खिलाफ किया जाता था, ताकि अंग्रेजी हुकूमत बरक़रार रहे.

आज भी स्वतंत्र भारत में महाराष्ट्र के लातूर के लोगों पर इस कानून द्वारा आवाज़ दबाने का काम किया जा रहा है, मानो जैसे कि अंग्रेज हुकूमत आज भी कायम है. हुआ ऐसा कि मराठवाडा का लातूर जिला आज देश का सबसे सुखाग्रसित इलाका बन गया है. यहाँ लोग खेती का तो छोड़ दो, पर पीने के पानी के लिए लोग दिन ब दिन तरस रहे हैं. इस तरस के कारण लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है, जिसको मद्देनजर रखते हुए, वहां के कलेक्टर पांडुरंग पोले ने पानी की टंकियों के आस पास ये धारा १४४ लगा दी, ताकि कानून वयवस्था न बिगड़े.

लातूर में पानी की समस्या का मुख्य कारण गतवर्षों में बारिश न होना बताया जा रहा है, लेकिन इसका राजनैतिक, आर्थिक व सामाजिक इतिहास कुछ और ही कहता है.

लातूर अपने नाम के मुताबिक तूर दाल के लिए जाना जाता है. देश के तूर का भाव यहीं से तय होता है. लेकिन आज यह स्थिति है कि लातूर के मार्केट में आने वाली तूर दाल कर्नाटका और तेलंगाना से आयत की जा रही हैं क्यूंकि लातूर में तूर दाल की जगह अब गन्ना और सोयाबीन जैसे कैश क्रॉप ने ली है.

और देखा जाये तो गन्ने सोयाबीन जैसी फसलों को तूर दाल के मुकाबले पानी बहुत ज्यादा लगता है. इसी वजह से लातूर में पानी की समस्या आज इतनी बढ़ गयी है. शेहरिकरण की वजह से भी पेड बड़ी संख्या में कटे गए जिससे बारिश होना कम हो गयी.

राजनातिक इतिहास के तौर पे देखा जाये तो लातूर से शिवाजीराव पाटिल मुख्यमंत्री,  विलासराव देशमुख दो बार मुख्यमंत्री बने  और शिवराज पाटिल चाकुरकर ग्रीह मंत्री बने लेकिन फिर भी इस जगह का विकास सही मायनो में नहीं हुआ.सरकारी संस्थानों का असफल प्रयास – मुन्सिपल कारपोरेशन के पास कोई प्लान नहीं जिसमें कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे अमित देशमुख का वर्चस्व है. राज्य के द्वारा आर्थिक मदद देने के बावजूद म्युनिसिपल कारपोरेशन के पास कोई प्लान नहीं है, ऐसा दिखाई पड़ता है.

विलासराव देशमुख ने विकास के नाम पर लातूर में शक्कर कारखानों का निर्माण किया, जिसका फायदा बड़े किसानों को और देशमुख परिवार को हुआ है. जिसकी वजह से आज छोटे किसान और मजदूर पीस रहे हैं, पानी के आभाव और काम की तलश में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. बताया जा रहा है कि परीक्षा से पहले ५०००० का विस्थापन,  और उसके बाद अभी १.५ लाख और होने की आशंका जताई जा रही है.

लातूर में पानी सप्लाई करने वाली मान्झरा बांध पूरी तरह से सुख गया है. साथ ही साथ लातूर के आस पास जितनी भी छोटे बड़े डैम कुँए हैं, इन सभी में पानी लगभग ख़त्म हो चूका है. और लातूर में जितने भी बोरिंग है उनकी गहराई बढती जा रही है. बोरिंग की अनुमति पहले २०० मीटर से ४०० मीटर हो गयी है, फिर  भी किल्लत जारी है. और मुन्सिपल कारपोरेशन ने जारी किया है कि लातूर के ८०% बोरिंग के पानी में कीटनाशक की मात्रा जादा है जिससे पानी पीने लायक नहीं रहा और दूसरी तरफ पानी माफिया १५०० लीटर पानी ५०० रूपए में दे रहा है.

यह भी ध्यान में रखना होगा की लातूर भूकंप ग्रसित इलाका है. यहाँ पर  बिल्डिंग की ऊचाई पर भी प्रतिबन्ध है वहां अगर भारी मात्रा में गहरी बोरिंग होगी तो फिर से भूकंप होने की सम्भावना हो सकती है.

यह बढती लातूर की पानी और पलायन की समस्या लोगों के साथ मिलकर बात करके सुलझाने पर कलेक्टर को जोर देना चाहिए न कि धारा १४४ लगाकर.

          सुरेश जाधव टाटा सामजिक विज्ञानं संस्थानों में फेलो है जो कि घुमंतू समाज पर लातूर में काम कर रहे हैं.

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