वाराणसी में रामनगर पुल के पास, ३० साल से ऊपर से बैलबांस समुदाय रह रहा है. इनके रहते गैर कानूनी ढंग से जज साहब का बंगला बन गया, सन बीम स्कूल बन गया. ये यहीं पर रह गए.
अधिकतर लोग देहाड़ी मजदूरी करके अपना जिंदगी गुजरते हैं. अभी इस समय कर्फ्यू के वक़्त इनके पास राशन की कमी है. ये इतने छोटे झोपड़ में रहते हैं, कि दूर तो रह ही नहीं सकते और छेह सात के परिवार एक साथ रहते हैं. कोई टूटी पाइप में, कोई टूटे ट्रक में, कोई खुले आसमान के नीचे.
पुलिस और आस पास के लोग हमेशा इनसे लड़ाई करते हैं, और भगाने की कोशिश. पुश्तेनी रूप से ये बांस का काम करते थे, टोकरी और अन्य तरह के समान बनाकर. धीरे धीरे ये बाजार से दूर हो गए और अपने गाँव से भी. ये सारे लोग चौपन के गाँव से आये, कुछ जमीन होने के बावजूद, क्यूंकि जातिवादी व्यवस्था ने इन्हें इज्जत नहीं दी, केवल लताड़ा, फटकारा.
अब वो सरकार से अपने होने की और जिन्दा रहने की इजाजत मांग रहे हैं. इज्जत तो दे नहीं पाई सरकार, पर क्या पुलिस के डंडो के अलावा, कुछ राशन भी देगी ?