तकरीबन पैंतीस लाख की कुल आबादी वाला रायबरेली कुछ दिनों में संकरी गलियों में तब्दील हो सकता है. शहरी इलाकों में लगभग दो लाख जनता रहती है. इसमें हर वर्ग के लोग हैं. चूँकि शहर का विकास किसी बड़ी आवासीय योजना के तहत नहीं हुआ यहाँ पर ज़्यादातर मोहल्ले बेतरतीब तरीकों से बसे हैं. यह भी हो सकता है कि प्लानिंग का खाका विकास प्राधिकरण के पास रहा हो लेकिन उस पर अमली जामा नहीं पहनाया जा सका. लोगों ने ज़मीनें खरीदीं या कब्ज़ा की, कुछ ने थोड़ी ज़मीन खरीदी और उसके आसपास बढ़कर अपनी ज़मीन की माप से डेढ़-दो गुना ज़्यादा पर अधिकार/स्वामित्व दिखाया. कुछ ने सडकों/गलियों तक पर अपना घर बनाया. शहर की स्थिति ऐसे में काफी सोचनीय हो चुकी है.
सत्यनगर रायबरेली का काफी पुराना मोहल्ला है. यहाँ के रास्ते इतने संकरे हो गए हैं कि कभी-कभी ये बनारस की गलियों की याद दिलाने लगते हैं. आप आचार्य द्विवेदी स्कूल के सामने से एक चार पहिया वाहन लेकर सत्यनगर में प्रवेश करें तो बहुत सारी ऐसी गलियां मिलेंगी जहाँ आप अंदर नहीं जा सकते.
बरसात के दिनों में सत्यनगर की ज़्यादातर गलियां तालाबों में बदल जाती हैं. और कई जगह लोग अपने वाहन दूसरों के घर के सामने खड़े कर जाते हैं. वे लोग जिन्होंने मानकों का प्रयोग करके अपने घर बनवाये वे खुद को ठगा महसूस करते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि सत्यनगर में हुए बेतरतीब निर्माणों को नियमित करने की ज़िम्मेदारी किसकी है, और नगरपालिका, आरडीए एवं जिला प्रशासन के इस पेंच में जो सही हैं वो पिसें क्यों?