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हाओबम पवन कुमार, मणिपुर फिल्म निर्माता

हओबम पवन कुमार , मणिपुर सिनेमा

मनीष जैसल
असिस्टंट प्रोफेसर मंदसौर विश्वविध्यालय

इम्फाल, मणिपुर के रहने वाले निर्देशक, पटकथा लेखक, प्रोड्यूसर हाओबम पावन कुमार भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक ऐसा पहलू अपने साथ लिए हैं जिसे एक फिल्म दर्शक और फिल्म के अद्धेता कभी भुला नहीं पाएंगे । मणिपुरी सिनेमा के हस्ताक्षर अरीबम शर्मा के शिष्य रह चुके पवन ने सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविज़न संस्थान कोलकाता से पटकथा लेखन और निर्देशन में डिप्लोमा करने के बाद अब तक कई महत्वपूर्ण कार्य मणिपुर और देश के सिने सरोकार के रूप में किए हैं । मणिपुर स्टेट फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट के केंद्रीय गवर्निंग बॉडी, मणिपुर स्टेट फिल्म एंड डेवलपमेंट सोसाइटी इम्फाल के, सत्यजीत रे फिल्म इंस्टीट्यूट आदि जैसे महत्वपूर्ण संस्थाओं और सरकारी इकाइयों के सदस्य रह हुए हाओबम पवन कुमार का नाम दूरदर्शन, एनएफ़डीसी, एनसीएसटीसी, एनईएमएफ़ओ जैसी संस्थाओं के साथ भी जुड़े रहे हैं । टीवी के लिए orchids and Manipur जैसे शो से शुरुआत करने हुए KANGLA, LAIPHADIBI – A FOLK DOLL, UREI – THE TREE FLOWER, MANIPUR-AN EXOTIC DESTINATION, CINEMA IN MANIPUR – 3 EPISODES, ESHING (Water), NUPEE (Women), ROOTS TO GROWTH – 3 EPISODES, ANOUBA KHONGOUP (New Shoe) के अलावा फिल्मों की दुनियाँ में 2003 में ‘PUNSHI’ (Life), ‘MALEM’ (Mother earth 2004), THEY… me…THEM (2005) AFSPA 1958 (2005) National Film Award for Best Non-Feature Film, A CRY IN THE DARK (2006), ‘NGAIHAK LAMBIDA’, THE FIRST LEAP (2008), MR. INDIA 2009 बनाया है.
National Film Award for Best Film on Social Issues, NUPISHABI, 2010, RUPTURED SPRING 2012, PHUM SHANG 2014 National Film Award for Best Investigative Film, LOKTAK LAIREMBEE 2016 (National Film Award for Best Film on Environment Conservation/Preservation जैसी फिल्में बनाई हैं । इस लंबे सफर में हाओबम का जुनून और प्रतिभा का लोहा देश के अलावा दुनियाँ के अन्य देशों ने भी माना है । मणिपुर की मशहूर झील लोकतक लेक पर बनाई फिल्म LOKTAK LAIREMBEE में मछुआरा समाज के दिनचर्या और उनके सामाजिक क्रियाकलापों के साथ उनके सामाजिक सारथिक और राजनैतिक द्वंद के साथ बढ़ती ज़िंदगी को दिखाया है । फिर के सहारे भारतीय सिनेमा ने अब तक के इतिहास में पहली बार बुसान इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ऑफिसियल एंट्री पाई हैं ।

सुधीर नाओरेबम की असल कहानी के साथ पवन ने जिस तरह की पटकथा को चित्रित किया हैं वह दुनियाँ भर के दर्शकों के लिए अलग अनुभव देता है । फिल्म में फिक्सन और नॉन फिक्सन दोनों का बेहतरीन प्रयोग भी है । जिस पर पवन ने कभी कहा की एक फिल्म के छात्र होने के नाते मैं अपनी फिल्मों में प्रयोग करता रहूँगा । एक असल ज़िंदगी को पर्दे पर दिखाये जाने वाले सिनेमा के लिए अपना ध्येय बना चुके पवन कुमार की इस यात्रा में कई मुकाम और शोहरत भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है । दर्जनों फिल्म फेस्टिवल में खुद और उनकी फिल्में शामिल हो चुकी हैं । Andrei Tarkovsky, Wong Kar-Wai, Yasujiro Ozu and Krzysztof Kieślowski की फिल्मों को देखने और उनसे सीखने वाले पवन की फिल्में 64वें नेशनल फिल्म अवार्ड्स 2016 में बेस्ट फिल्म ऑन इनवायरमेंट/ कंजर्वेशन फॉर द फीचर फिल्म के लिए सिल्वर लोटस के साथ, पराग सिने अवर्स में बेस्ट एक्टर,इंडियन फिल्म फेस्टिवल लॉस एंजिल्स 2017 में स्पेशल मेंशन, 15वे पुणे इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में स्पेशल ज्यूरी अवार्ड, 26वें जी अरविंदम पुरस्कार समारोह में बेस्ट देब्यु डाइरेक्टर, दूसरे बोधिसत्व इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के सिल्वर बोधिसत्व अवार्ड के अलावा 47वें इन्टरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इंडियन पेनोरमा में शामिल हुई.
इस यात्रा के सहारे मणिपुरी सिनेमा और हाओबम पवन कुमार का प्रयास यह कह पाने के लिए काफी है कि दोनों अपने विकास की दिशा में लगातार सक्रिय हैं । तभी पवन का फिल्म निर्माण के अलावा 11 वें ढाका फिल्म फेस्टिवल केरला, 11वां विबग्योर फिल्म फेस्टिवल केरला 2016, का क्यूरेटर होना और मुंबई, पुणे,आदि शहरों में हो रहे फिल्म समारोह, फिल्म की संगोष्ठियों में पवन की सक्रिय भागीदारी देखी जा रही हैं। मणिपुरी सिनेमा के विकास में खुद को सकारात्मक दिशा में रखे हुए और चार बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कर चुके पवन कुमार से हमने पूर्वोत्तर राज्यों के सिनेमा और संस्कृति के भूत भविष्य और वर्तमान को जानने की कोशिश की । पेश हैं उनसे बातचीत के कुछ अंश :-

प्रश्न- मणिपुरी सिनेमा उद्योग में किस तरह के बदलाव आपको नज़र आते हैं ? कैसी रही आपकी फिल्मी यात्रा ?
मणिपुर और असम ही ऐसे पूर्वोत्तर के दो राज्य हैं जहां सिनेमा काफी वर्षों से बन रहा है । हालांकि अब नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, मेघालय में भी बन रहा हैं सिनेमा । लेकिन असम को छोड़ कर किसी अन्य राज्य में सिनेमा उद्योग टाइप का कोई माहौल मुझे दिखता नहीं है । सेल्यूलाइड फिल्मों के दौर में तो यहाँ पूर्वोत्तर राज्यों में सिर्फ एक या दो ही फिल्में बना करती थी । और डिजिटल फिल्में नेशनल अवार्ड के लिए एलीजीबल भी नहीं हुआ करती थी । ऐसे में एक बड़ा अंतर यह आया हैं कि लोग डिजिटल माध्यम में फिल्में बना रहे हैं और अब डिजिटल फिल्मों को नेशनल अवार्ड में शामिल किया जा रहा है । आप यह भी कह सकते हैं कि पूर्वोत्तर राज्यों में मणिपुर पहली डिजिटल फिल्म मेकिंग इंडस्ट्री है । लेकिन यहाँ फिल्म स्क्रीनिंग को लेकर थियेटर भी न के बराबर हैं । तो मैं यहाँ मणिपुर का फिल्म उद्योग कहना पसंद नहीं कहूँगा । मेरी अपनी सिनेमा की शुरुआत डॉक्यूमेंटरी से हुई थी । उन दिनों दूरदर्शन इसके लिए फाइनेंस किया करता था । लेकिन आज की तारीख में वह सब बंद हैं । दूरदर्शन के खुद के हालत ठीक नहीं हैं । अरुण प्रभा नाम का एक टीवी चैनल बचा हुआ हैं हमारी थोड़ी बहुत आस है। उसके बाद पैशन के लिए मैंने भी फीचर फिल्में बनाई । लेकिन दर्शकों और सिनेमा हॉल की कमी ने मुझे महसूस कराया कि यहाँ निर्माताओं को फिल्म निर्माण की चुनौतियाँ बहुत हैं । डीवीडी और दूरदर्शन के अलावा दर्शक के पास कोई ऑप्शन नहीं है । फिल्में तो बन रही हैं । इसीलिए मैंने अब मैंने ग्लोबल औडियन्स के लिए फिल्में बनाना शुरू किया हैं । बर्लिन और बुसान में मेरी फीचर फिल्म LOKTAK का वर्ल्ड प्रीमिएर हो चुका है । और मैं लकी हूँ कि मेरी फिल्म की रिलीज भी डिजिटल प्लेटफॉर्म में ही हुई । लेकिन सिनेमा हॉल में सिर्फ 2 शो ही हुए हैं ।
प्रश्न- पूर्वोत्तर के सिनेमा की बात करते हुए असम को अलग करके देखा जाने लगा है । आप पूर्वोत्तर के राज्यों के सिनेमा में क्या अंतर देखते हैं ?
भले ही लोग असम के सिनेमा को अलग करते देखते हैं लेकिन हमारे यहाँ के निर्देशक अरीबाम श्याम शर्मा की फिल्म Imagi ही वह पहली फिल्म है जिसे वैश्विक स्तर पर लोगो ने देखा था और उसे Golden Montgolfiere अवार्ड भी मिला था । वहीं काँस में पूर्वोत्तर से जाने वाली अरीबाम शर्मा की फिल्म Ishanu ही इकलौती है । और मेरी भी फिल्म बर्लिन में जाने वाली पहली ही फिल्म बनी है । तो एक अहम किरदार मणिपुरी सिनेमा का है जिसे भी देखने कि जरूरत है । तो कह सकते हैं कि हम लोग जो कर रहे है वो अपनी भाषा, सभ्यता और संस्कृति के लिए कर रहे हैं । Ishanu फिल्म में जो रास लीला में जो डांस अप देखते हैं वो एक अलग अनुभव दुनियाँ भर के दर्शक देखते हैं । छोटी आँख वाले कलाकार जिनका चेहरा एक्स्प्रेशन लेस है उसमें कैसे रास लीला में क्लासिकल दास को दिखाया जा रहा है यह अहम है । हमारे कल्चर में भी जो गोपिया हैं उनका चेहरा नृत्य के दौरान ढाका होता है वैसा ही फिल्मों में देख सकते हैं । कहना गलत न होगा कि हमारे यहाँ मुख कि बजाय बॉडी लैंगवेज़ का प्रयोग ज्यादा है । जिसके लिए लॉन्ग शॉट में ही ज्यादा से ज्यादा हमें शॉट्स दिखाने पड़ते हैं । यह अंतर मणिपुर की फिल्मों में दिखता है ।

प्रश्न – बॉलीवुड, तमिल टेलगु के लोग पूर्वोत्तर राज्यों को एलीमेंट के तौर पर प्रयोग में ला रहे हैं । इस पर आपकी क्या टिप्पणी है ?
बॉलीवुड में भी इन दस सालों में बहुत अंतर आया है । इसीलिए नए विषय नई लोकेशन और नयापन चाहिए । इसीलिए ये यहाँ आ रहे हैं । और सिर्फ नॉर्थ ईस्ट ही नहीं दुनियाँ के हर कोने में जा रहे हैं । क्योकि मार्केट में बहुत दबाव है । बस पैसे का टार्गेट हैं इसीलिए कहाँ कैसे शूट करना है इस पर बिना सोचे समझे आ रहे हैं इसके नाफा नुकसान पर कोई बात नहीं कर रहा ।

प्रश्न- नए ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से किस तरह के बदलाव नज़र आ रहे ?
पिछले 5 से 10 सालों में जो मणिपुर में देख रहा हूँ उसके अनुसार कह सकता हूँ कि निर्माता अपनी जेब से कब तक पैसा निकाल कर फिल्में बनाता जाएगा । इसीलिए इन वर्षों में फिल्म का निर्माण बहुत कम हुआ है । और जो लोग बना रहे हैं । या कहे जिनहोने फिल्में बनाना सीखा है वो डॉक्यूमेंटरी की तरफ जा रहे हैं । और इसी वजह से एक नया ट्रेंड भी आ गया है कि डॉक्यूमेंटरी वालों को सिरियस फिल्ममेकर का तमगा दिया जाने लगा है । इसीलिए निर्माता भी नहीं आगे आ रहे । और ओटीटी प्लेटफॉर्म आने से भी कोई बहुत अंतर नज़र नहीं आ रहा । जहां पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में इस ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से फिल्मों ज्यादा बनने लगी हैं लेकिन मणिपुर में फिल्म निर्माण और कम होता जा रहा है । मैं लकी हूँ इसीलिए मैं इससे खुद को अलग करके देख रहा हूँ । टाटा स्काइ, मामी, चैनल 4 नेटफ्लिक्स आदि में मेरी फिल्म आई इसके पीछे मेरी फिल्म का विषय और मेरा एसआरएफ़टीआई का होना भी है । आपकी फिल्म मणिपुरी में हो और कोई अवार्ड न मिला हो तब इन ओटीटी प्लेटफॉर्म में आन पाना मुश्किल है ।

प्रश्न- कौन से ऐसे विषय हैं जिन पर मणिपुरी में फिल्म बनाई जानी समय की जरूरत है ?
मेरी जो कहानी हैं फिल्मों की वो समसामयिक विषयों पर आधारित होती हैं । जब पूर्वोत्तर में अस्फ़ा था तो उस पर भी बनाया । एचआईबी पर भी बताया । इन दिनों मणिपुर की एथिनिसिटी पर फिल्म बना रहा हूँ । मणिपुर में मुझे मिनी इंडिया दिखता है । नागा कुकी को भी अब अपनी जमीन चाहिए । ऐसी ही कुछ नए विषयों पर मेरा काम चल रहा है । यहाँ बहुत सारी तकलीफ़ों के बावजूद यहाँ आपको यूनिक चीजें भी देखने को मिलेंगी । और यह भी मैं कह सकता हूँ यहाँ डॉक्यूमेंटरी का ही कल्चर यहाँ रहने वाला है । क्योकि 29 आधिकारिक ट्राइब्स हैं यहाँ तो बाकी अनाधिकृत क्या क्या होगा ?

प्रश्न – फिल्म से जुड़े लोग मुंबई तमिल टेलगु की ओर पलायन कर रहे हैं । ऐसा क्यों ?
टेक्निकल फील्ड के लोग जैसे ग्राफिक डिजाइन, म्यूजिक इंडस्ट्री, विजुअल इफेक्ट में वो लोग वहाँ जा रहे हैं । क्योकि यहाँ जॉब ऑपर्चन्यूटी बहुत कम है , यहाँ तक कि सैटेलाइट चैनल भी नहीं हैं इसीलिए ये लोग वहाँ जा रहे हैं । अब अभिनेता भी वहाँ जाने लगे हैं ।

प्रश्न – सरकार की क्या भूमिका रही हैं ?
मैं 3 वर्षों मणिपुर स्टेट फिल्म डेवलपमेंट सोसाइटी का एक्जिक्यूटिव मेम्बर रहा हूँ । बातचीत चलती है, पेपरवर्क होता है केन जमीन पर कुछ आ नहीं पा रहा । असम में तो तीन तीन इंटर्न्र्नेश्नल फिल्म फेस्टिवल और फिल्म के लिए फाइनेस भी सरकार कर रही है लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहीं । मैं खुद 4 बार नेशनल अवार्ड पा चुका हूँ लेकिन हर नेक्स्ट फिल्म के इधर उधर भागना पड़ता है । व्यावसायिक फिल्म के लिए कोई निर्माता साथ नहीं देता । फिर भी केंद्र सरकार ने मुझे मदद की है । बर्लिन के प्रीमिएर के लिए मुझे मदद मिली थी । लेकिन मणिपुर के सिनेमा के रूप
में इसे सकारात्मक नहीं कह सकता । मेरी पत्नी कमाती हैं इसीलिए सब चल जा रहा है ।

प्रश्न- महिलाओं की क्या भूमिका है ?
एक्टिंग में तो महिलाएं हैं लेकिन फिल्म निर्माण के और पक्षों में कम दिखती हैं । लेकिन देश भर में मणिपुर के थिएयर और समाज में उनकी अल्ग पहचान है .

प्रश्न-आने वाले समय में मणिपुरी सिनेमा की लाइन लेंथ कैसी नज़र आ रही है ?
मेरी शुरुआत 15 साल पहले हुई थी । एसआरएफ़टीआईआई से वापस आने के बाद मैंने कुछ अलग करना चाहा तो कर रहा हूँ । वहीं देखता हूँ कि मेरे जूनियर्स भी अच्छा करने में लगे हैं । मास मीडिया में भी हैं । इसीलिए मैं मणिपुरी सिनेमा का भविष्य सकारात्मक ही देख रहा हूँ । थियेटर और फाइनेंस की सुविधा हो जाए तो बेहतर रिजल्ट आएगे । मणिपुर का ही एक नागा समुदाय का फ़िल्मकार अच्छा नाम कमा रहा है । मॉल के आने से आई नॉक्स पीवीआर और ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से बेहतर होगा ।

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