प्रयास 1990 में एक फील्ड एक्शन प्रोजेक्ट के रूप में स्थापित, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, सेंटर फॉर क्रिमिनोलॉजी एंड जस्टिस से जुड़ा हुआ है. छात्र जो सेंटर फॉर क्रिमिनोलॉजी एंड जस्टिस से एम.ए कर रहे हैं, वो इस प्रोजेक्ट के जरिए पुलिस थानों, जेलों और अन्य हिरासत के जगह में दौरा करने और कैदी, जो विचाराधीन भी हो सकते हैं, उनसे बातचीत से भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली सीखते और समझते हैं.
साल 1985 में टाटा सामजिक विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर डॉ सनोबर साहनी ने जेल, पुलिस थानों, और न्यायालयों में छात्रों को सामाजिक कार्य सीखाने की शुरुवात की थी. फिर प्रयास प्रोजेक्ट शुरू करने के विचार को जन्म दिया. इस उपक्रम में उनके साथी प्रो. विजय राघवन थे, जिन्होंने 1989 में TISS से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी, और फिर 1990 में मुंबई सेंट्रल जेल में इसे शुरू किया गया. डॉ. शेरोन मेनेजेस अभी इस प्रोजेक्ट की जॉइंट डायरेक्टर की उपाधि में कार्यरत हैं.
प्रयास का ध्यान सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों और समूहों के पुनर्वास पर है जो भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (सीजेएस) के सीधे संपर्क में आते हैं. इसके लिए, महाराष्ट्र और गुजरात में पुलिस थानों, जेलों और सरकारी आवासीय संस्थानों में हिरासत में लिए गए या बंद किए गए व्यक्तियों के साथ आपराधिक न्याय या हिरासत संस्थानों का दौरा करने और बातचीत करने की अनुमति जेल और महिला और बाल विकास विभागों से प्राप्त की गई है.
प्रयास प्रोजेक्ट में काम करने वाले समाजिक कार्यकर्ता, मुजरिमों और विचाराधीन कैदियों के घर अनेक बार जाते हैं, और उनके घर और मोहल्ले की परेशानियाँ समझने की कोशिश करके कोर्ट को रिपोर्ट देते हैं. जिसमें कारण के साथ-साथ, सुधार के उपाय भी शामिल होते हैं. और ये व्यक्तिगत मदद से, पारिवारिक होते हुए पूरी न्याय प्रणाली को सुधारने का भी एक माध्यम बनता है. प्रयास का ये मानना है कि जुर्म व्यक्तिगत नहीं होता, बल्कि सामाजिक होता है, समाज का आइना होता है. और कोई भी जुर्म जब पनपता है, या होता है तो ये जिम्मेदारी पूरे समाज की होती है. अब पूरे समाज का रोग जो एक व्यक्ति से उजागर हुआ था, उसे पकड़ कर, प्रयास संस्था उस व्यक्ति के हर पहलू पर गौर करती है कि क्यूँ इसने अपराध किया था, और क्या दुबारा वैसी स्थिति तो पैदा नहीं हो रही है?
इसमें कई पहलू हैं, जैसे कि आर्थिक अथवा सामाजिक स्थिति और उससे जुड़ी मानसिक शान्ति और अशांति. ये कोरोना वायरस के संक्रमण का ठीक उल्टा है. कोरोना वायरस एक व्यक्ति पर वार करता है, और फिर उस व्यक्ति से अनेकों को संक्रमण फैलता है. पर जुर्म पूरे समाज के कारण कुछ व्यक्ति करते हैं. यानि हर एक मुजरिम पूरे समाज का, उसके आस-पास का निचोड़ है. जिस प्रकार अभी वायरस का ट्रेसिंग हो रहा है, और बाकी लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं ताकि उसे रोका जा सके और ईलाज हो, उसी प्रकार हर मुजरिम से उससे जुड़ा हुआ परिवार और समाज, यहाँ तक की उसका शहर, गाँव और देश की जुर्म पैदा करने की परिस्थितियों को भी नापा जा सकता है, और रोका जा सकता है. इसी पूरी प्रक्रिया में प्रयास प्रोजेक्ट न्याय प्रणाली को दुरुस्त करने के साथ साथ, समाज के भीतर की विक्रिति को भी उजागर करता रहता है.
आज के समय में, मौजूदा भारतीय न्याय प्रणाली की वयवस्था में कुछ लोग जेल में हैं और कुछ बाहर. अन्दर वाले कुछ विचाराधीन तो कुछ दोषी. बाहर वाले कुछ सजा काटकर तो कुछ बेल में. इन सभी लोगों के परिवारों के साथ प्रयास प्रोजेक्ट काम कर रहा है. अगर परिवार में परेशानी कम होगी, तो साथ में बेल में छुटा व्यक्ति, और जेल के अन्दर दोनों की दुबारा जुर्म करने की परिस्थिति बहुत हद तक कम हो जाती है, और इससे वो मानसिक शान्ति के साथ समाज में घुल मिल कर अपना काम धंधा कर सकता है.
अभी कोरोना महामारी के दौर में इनके परिवारों को मदद की सख्त जरूरत है. विजय जोहारे जो कि प्रयास प्रोजेक्ट में, मुंबई में काम करते हैं, उनसे बात हुई. उन्होंने बताया कि केवल मुंबई में ही करीब ७०० लोगों के साथ प्रयास काम कर रहा है और कैदियों में कोरोना के चलते बहुत परेशानी बढ़ रही है. ये अधिकतर गरीब परिवार से हैं, जो बस्तियों में रहते हैं. इनमें से कई के परिवार के पास राशन नहीं है, कुछ लोगों को बस्तियों में महीने का भाड़ा देने के पैसे नहीं हैं, क्यूंकि इन घरों के मालिक भी गरीब हैं, जिनका खर्चा इसी भाड़े से चलता है, वो सरकार के मना करने के बावजूद अपनी जरूरत के लिए मांग ही रहे हैं. और कुछ का जरूरी मेडिकल खर्चा पर आर्थिक मदद की तत्काल जरूरत भी हो रही है. विजय जोहरे इन सभी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं. जिनमें से मुख्य यही तीन हैं : परिवार तक महीने भर का भोजन पहुँचाना, करीब ५००० रूपए कुछ परिवारों का महीने का भाड़ा का इन्तेजाम करना और जरूरी मेडिकल खर्चा के लिए पैसे देना.
उनके मुताबिक अभी उनकी जरूरत है कि इन सभी के परिवार तक राशन पहुँचाना :८० महिला जो ब्य्कल्ला जेल में हैं, १०० लोग जो बेल पे बाहर हैं, ६४ युवा जो कि पुनर्वास तथा सुधार प्रक्रिया में रह रहें हैं, १०० बच्चे जो डोंगरी जुवेनाइल होम में हैं और २०० लोग जो ठाणे जेल में हैं.
यानि कि करीब ५५० परिवारों को मदद चाहिए महीने भर राशन के लिए. और करीब १८२ परिवार के घर के भाड़े का इन्तेजाम करना, जो कि ५००० रूपए महीने के आस पास होता है. और मेडिकल खर्च मिलाने के बाद ये रकम करीब १० लाख तक पहुँच जाती है.
ये परिवार अधिकतर पालघर, पनवेल, बदलापुर से लेकर दाहनू तक फैले हुए हैं. और कुछ उत्तर प्रदेश, बिहार और कोल्कता से भी हैं. विजय जोहरे ये भी कहते हैं, कि कोरोना वायरस और लॉक-डाउन के कारण जुर्म करने की स्थिति ज्यादा पैदा हो रही है, और इसको रोकने के लिए सरकार को आर्थिक राहत के साथ भोजन सबके लिए उपलब्ध जल्द से जल्द कराना जरूरी है.
अगर आप राशन के माध्यम से या आर्थिक सहायता से प्रयास प्रोजेक्ट, की मदद करना चाहते हैं, तो विजय जोहरे जी को संपर्क कर सकते हैं. प्रयास का ऑफिस टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान, देवनार, मुंबई में स्थित है.
उनका फोन नंबर: +919220386654