जन आंदोलनों का नारा सरकार हम से डरती है पुलिस को आगे करती है, शायद कुछ दिनों में बदल जाए. आजकल सरकार के प्रतिनिधि और मीडिया जगत के लोग, फेसबुक और ट्विटर से ही ज्यादा काम चला रहें हैं. कहतें हैं कि ट्रेंडिंग करो , # लगा के. और जो लोग # … के साथ ज्यादा ट्वीट करेंगे इन्टरनेट में वही सही रहेगा , उस पे ध्यान दिया जायेगा. आजकल एक्टिविस्ट लोगान भी यही करते नजर आतें हैं. भाई ट्रेंड करना है, नहीं तो मीडिया हाउस के बड़े बड़े एडिटर ये स्टोरी नहीं उठाएंगे. यहाँ व्यक्ति भले ही उठ जाए, पर स्टोरी उठाना मुश्किल है. हाल में ही मेरे एक दोस्त ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाया था, जहाँ सही खबर छपवाने के लिए भी पैसे देने पड़े, और उसके बावजूद सारे पोसों में फोटो खिचवाने के बाद भी उस पत्रकार ने अभी तक फोटो नहीं भेजे. खैर, शायद उनकी तनख्वाह कम होती होगी.
सामाजिक मीडिया में गौर करने वाली बात ये होगी , कि मोबाइल का बटन और कंप्यूटर कौन टप टप आ रहा है. लोगान तो काम पे लगे हैं. मजदूर किसान तो नहीं ट्वीट कर पा रहा है. बेचारा अपने बच्चों को फेसबुक पे बधाई भी नहीं दे पा रहा, अगर पढ़ा लिखा पाया हो तो .
अब तकनीक का इस्तेमाल तो सरकार कर रही है, क्या क्या की तो ऑनलाइन संवाद हो रहा है, लोग ईमेल कर रहे हैं, ट्वीट कर रहे हैं, और इन्ही सी कुछ कैंपेन तैयार हो रहे हैं इसका उदहारण है mygov.in का वेबसाइट. यहाँ से शहर के लोग खासकर युवा पीढी जो गाँव से बहुत हद तक कट चुकी है, हमारी सरकार को सलाह दे रही है. इस वेबसाइट पे कमेंट देखने लायक होते हैं. जिन्होंने कभी मजदूरी नहीं की, शायद उस विषय में पढाई भी नहीं की, वो भी एक से एक सुझाव देते हैं.
इतना पैसा, वेबसाइट पर, उसको मेन्टेन कराने वाले कर्मचारी पर रोज खर्च हो रहा है. और सरकार और लोगों के बीच नए नए दल्ले रोज पैदा किये जा रहे हैं. मीडिया भी कोई भी टेक्नोलॉजी का हौउवा बनाने में कोई कसार नहीं छोडती. टेक्नोलॉजी बोले तो, अच्छा ही होगा..
अच्छा है लोगों से राय मशवरा कराना, कम से कम युवाओं को लगेगा वो कुछ तो कर रहे हैं, पर उस से भी जायदा ज़रूरी है ग्राम सभा कराना, और मोहल्ला सभा जहाँ लोग इन्टरनेट के बजाय अपने समुदाय में ही अपने मसले हल कर सकें. क्यूंकि ट्वीटर और फेसबुक क्या जाने अदरक का स्वाद, ये अभी भी बहुत हद तक एक ही वर्ग तक सीमित है, और केवल ईसी पर निर्भर करना बड़ी भूल होगी, न केवल सरकार के लिए पर मीडिया के लिये.
ख़ैर जन आन्दोलनों को भी अपने फेसबुक और ट्वीट के ट्रेंड में लोग उतारने ही होंगे, कब तक भैंस के आगें बीन बजाया जायेगा, वो तो स्टूडियो में ही बैठेगी. अब सरकार या मीडिया जिसकी सुनती है, उसको उस तरीके से ही बताना पड़ेगा. अब यही तो है, क्या किया जा सकता है, टेक्नोलॉजी टेक्नोलॉजी दिखा के बुडबक बना रहे है , जो काम दो तीन ग्राम सभा से हो सकता है, लोगों से सीधी बात से हो सकता है, उसको शहर के बचवा लोगों से करवा रहे हैं. अब बताये शहर में बैठ कर ये कैंपेन चल रहा है की गाँव की महिलाओं को बच्चे पालना कैसे सिखाएं.
या तो टेक्नोलॉजी में घुस के बहस करनी पड़ेगी नहीं तो भाई कष्ट ही है.