कोरोना के वक़्त दौड़ रहें हैं अभिभावक, नहीं मान रही प्रवासी जाति प्रमाण पत्र
आपको जानकार हैरानी होगी ज्यादातर अभिभावक जिनके बच्चों को इस नियम का लाभ मिलना चाहियें, उन्हें इसकी जानकारी नहीं हैं। न ही आर.टी.ई नियम के प्रचार प्रसार पर कोई विशेष रूची दिखाई गई। यहां तक की ऐसे प्राईवेट विद्यालय जो इस नियम के अंर्तगत आते है स्वयं इसकी जानकारी नहीं देते। मुंबई शहर में बडी तादात में अन्य राज्यों से निवासी रोजगार की तलाश में आते हैं। जो व्यक्ति अपने परिवार के साथ मुंबई में लम्बें समय से रह रहा है वह निश्चित तौर पर अपने बच्चों को यहीं पढाएगा। वह भारत के किसी भी राज्य का हो, अगर वह आर.टी.ई के अंर्तगत नियमों की पात्रता के दायरें मे आता हो व उसके पास सभी जरूरी दस्तावेज है तो वह आरटीई के नियम द्वारा अपने बच्चों का एडमिशन करा सकता है।
आर.टी.ई के तहत पात्र बच्चों के अभिभावक वही होगें जो आर्थिक सक्षम नहीं है या किसी विशेष वर्ग से हो। उनसे यह उम्मीद करना क्यां उचित होगा कि उन्हें आर.टी.ई के नियमों की पूर्ण जानकारी होगी और वह स्वयं ऑनलाइन फॉर्म भर सकते हो। अभिभावक ऑनलाइन फॉर्म भरनें के लिए किन स्रोत का उपयोग करते है आइऐ देखे:
1 वह स्वयं फॉर्म भरे, जो बहुत ही कम मुमकिन होता है।
2 वह किसी साइबर कॅफे जाकर फॉर्म भरेगें। अब एक बडी समस्या कि क्यां साइबर कॅफे में काम कर रहे व्यक्ति को राज्य संबधित आर.टी.ई के नियमों की जानकारी है? और अगर है भी तो कितनी? अगर साइबर कॅफे संचालित व्यक्ति महाराष्ट्र के बजाय किसी अन्य राज्य से है तब और भी आशंका बढ जाती है। वैसे फॉर्म भरना इतना कठिन नहीं है और जो जो जानकारी भरनी होती है वह आसानी से पुरी हो जाती है और फॉर्म कम्लीट होने पर मॅसेज आ जाता है।
3 किसी सामाजिक संस्था जो उस क्षेत्र में कार्य कर रही हो। वह फॉर्म भर सकते है। कई सामाजिक संस्थाऐं आर.टी.ई एडमिशन के लिए फॉर्म भरती हैं। यहां फिर वही प्रश्न क्यां सामाजिक संस्था भी आर.टी.ई नियमों की पुरी जानकारी रखती है या नहीं। इस नियम की पूर्ण जानकारी न होने में भूल हो सकती है.
संबधित महत्वपूर्ण उदाहरण आपके सामने है − यह सामाजिक संस्था महाराष्ट्र में कार्यरत एक प्रतिष्ठित ट्रस्ट है जो दलित पिछडों के लिए कार्यरत है। और इसी संस्था के कार्यकर्ता को एक आर.टी.ई नियम की यह अहम् जानकारी नहीं थी कि महाराष्ट्र मुंबई में आर.टी.ई एडमिशन के लिए अन्य राज्य का कास्ट दृ जाति प्रमाण पत्र मान्य नही किया जा रहां है और इसलिए उन्होनें अन्य आर.टी.ई के फॉर्म भरनें वालो को भी यही जानकारी नहीं दी। यही नही इस कार्यकर्ता ने इसी आधार पर अभिभावको के बच्चों के फॉर्म भी भर दिए। सोचिए एक महाराष्ट्र की सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता और स्वयं महाराष्ट्र के मूल निवासी इस नियम को नही जानते थे, इस नियम से अनभिज्ञ थे, तब यह कैसे माना जाऐ की कोई हिंदी भाषी या अन्य राज्य का व्यक्ति सभी जानकारी एकत्रित करने में सक्षम होगा।
दलित समुदाय के ऐसे ही बच्चों के आर.टी.ई द्वारा भरें गये एडमिशन फॉर्म को उनका एडमिशन कन्फर्म होने के बाद भी कैन्सिल कर दिया गया है, जिन्होंने उत्तर प्रदेश या अन्य राज्य के जाति प्रमाण पत्र के भरोसे एडमिशन फॉर्म भरा था। एडमिशन रद्द किया है, यह जानकारी भी अगस्त महीनें के अंत में दी जा रही है और इस बात का पता भी सिर्फ उन्हें ही चल रहा है जो संबधित विद्यालय में स्वयं जाकर पता कर रहें है या विद्यालय में फोन कर रहे है। जानकारी भी विद्यालय स्तर पर और सिर्फ मौखिक रूप से दी जा रही है। आर.टी.ई कार्यलय द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई न ही विद्यालय लिखित मे कोई सूचना दे रहे हैं। लॉकडाउन में आर.टी.ई हेल्पलाईन का कोई नंम्बर काम नहीं कर रहा, जो किसी अधिकारी से बात की जा सके। बच्चों के अभिभावको को यह भी संदेह हो रहा है, कि कही स्कूल की तरफ से ही उनके बच्चों का एडमिशन कैंसिल किया जा रहा हो। ऐसे कई मामलें पहले भी सामने आ चुके है जब आर.टी.ई से हुए एडमिशन में कई स्कूल बच्चों के माता पिता को कई कारणों से परेशान करते पाऐं गये है।
पीडित अभिभावक ये चाहते है कि जिनके अन्य राज्य के जाति प्रमाण पत्र होने के कारण एडमिशन कैसिल किये गऐ है, अगर वह वार्षिक आय के दायरे में है तो उन्हें आय प्रमाण पत्र, इनकम सर्टिफिकेट जमा करने की स्वीकृति दी जाऐ। फॉर्म कैसिल न हो। लेकिन विद्यालयों ने उनकी इस मांग को स्वीकार नहीं कियां। अब ऐसे बच्चें जिन्होंने पहली कक्षा के लिए फॉर्म भरें थे, वह अगले वर्ष आर.टी.ई एडमिशन का लाभ उठाने से वंचित रह जाएगें, कारण पहली कक्षा के एडमिशन की अधिकतम आयु सीमा छह वर्ष हैं। ऐसा कोई भी बच्चा जिसकी आयु सात वर्ष से अधिक हो गई हो वह आर.टी.ई एडमिशन के लिए अमान्य है और आर.टी.ई पोर्टल उसका फॉर्म स्वीकार नहीं करता।
केंद्र व राज्य सरकार से की नीति:
1 केंद्र द्वारा जारी की गई आरटीई नियमों की सूची में ऐसा कही अंकित नहीं किया गया है कि आप जिस राज्य में रह रहें है, उसी राज्य का जाति प्रमाण पत्र होना अनिवार्य हैं। सिर्फ जाति प्रमाण पत्र की पुष्टि की गई है। 2 महाराष्ट्र के आरटीई वेबसाइट पोर्टल के मुख्य पृष्ठ पर जहां एडमिशन के लिए फॉर्म भरनें की प्रक्रिया को पुरा किया जाता है, वहां यह सूचना मुख्य रूप से क्यों नहीं दर्शाई गई है कि अन्य राज्य का जाति प्रमाण पत्र मान्य नहीं है। फॉर्म भरतें समय बच्चों सहित माता मिता के नाम व कुलनाम की पुरी जानकारी दर्ज जाती है तब भी नोटिफिकेशन का कोई संदेश नहीं आता। महाराष्ट्र आर.टी.ई पोर्टल की वेबसाइट पर नियम व पात्रता संबधित जो जानकारी दी गई उसमें सबसे अंत में 16 पेज के बाद यह लिखा है कि जाति प्रमाण पत्र महाराष्ट्र राज्य का होना चाहिए। यह जानकारी मराठी भाषा में हैं।
3 बच्चों के माता पिता का कहना है, वेबसाइट पोर्टल पर राज्य भाषा में जानकारी है. इस पर उन्हे कोई ऐतराज नहीं, लेकिन क्यां 16 पेज और एकदम अंत में लिखी गई जाति संबधित जानकारी को गैर मराठी भाषियो के संज्ञान में होना संभव लगता है।
इस एडमिशन पर उनके बच्चों का भविष्य निर्भर करता है। आर.टी.ई एडमिशन के बिना किसी प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को पढाना उनके लिए किसी भी रूप में संभव नहीं। या तो सरकार सरकारी स्कूल, प्राइवेट स्कूल से अच्छा करे, ताकि ये चाहत जो कि जरूरत है, वो ही ख़त्म हो, या फिलहाल इसी सिस्टम को दुरुस्त करे जो कि कम दूरगामी है. ऐसे एडमिशन जो दूसरों राज्य के जाति प्रमाण पत्र की वजह से कैंसिल किए जा रहे है, अगर वह वार्षिक आय यानि इनकम के आधार पर एडमिशन की पात्रता के दायरें में आते है तो उन्हें आय प्रमाण पत्र जमा करने का अवसर देकर एडमिशन दिया जाना चाहिए क्योंकि अगले वर्ष उनके बच्चों की एडमिशन के लिए अधिकतम आयु समाप्त हो जाएगी वह स्वयं ही अपात्र हो जाऐगे।
केंद्र व अन्य कई राज्यों में आर.टी.ई एडमिशन के नियमानुसार जिनकी वार्षिक आय साढें तीन लाख से कम है, वह एडमिशन के लिए अप्लाई कर सकते है। महाराष्ट्र में वार्षिक आय सीमा एक लाख है। एक लाख से ज्यादा आय वाले जो जनरल कटेगरी से है, वह आर.टी.ई एडमिशन के लिए अपात्र माने गये है। क्योंकि किसी और राज्य का जाति प्रमाण पत्र महाराष्ट्र में स्वीकार्य नहीं, ऐसे में किसी अन्य राज्य से एस.सी, एस.टी या पिछडी जाति से संबधित होने पर भी, उन्हें जनरल कॅटेगरी से आर.टी.ई फॉर्म भरना होगा और अगर उनकी एक लाख से ज्यादा वार्षिक आय है वह भी अपात्र ही होगें। इस गणित को समझना भी बेहद जरूरी है कि एक लाख रूपये वार्षिक आय यानि प्रति महिना आठ हजार तीन सौ तैंतिस रूपये। मुंबई जैसे शहर में प्रति महिना 10 या 15 तो दूर की बात है 20 हजार रूपये प्रति महिना कमानें वाले व्यक्तियों को भी अपनें बच्चों को किसी बेहतर व अच्छें प्राइवेट स्कूल में एडमिशन कराने से पहले सैकडों बार विचार करना पडता है। क्यां केंद्र या राज्य सरकार इस सच्चाई से अनजान है? बाहर से आये ज्यादातर लोगों के अपनें निजी मकान नहीं है वह किराऐ के मकान में रहते है। मुंबई में कुछ बेहतर जगह पर 5 से 7 हजार रूपये और झोपडों का किराया भी तीन हजार से कम नहीं है। आर.टी.ई नियमों के मकडजाल में फंसे पीड़ित माता पिता एक तो पहले ही जरूरतमंद थे ऊपर से कोरोना वायरस के चलतें लॉकडाउन ने इनकी मुंश्कलें और बढा दी। अब रोजगार की समस्या भी सामनें आ खडी हुई है.
आर.टी.ई अधिनियम समाज के किसी विशेष वर्ग के लिए नहीं है। इसका उद्देश्य उन बच्चों को शिक्षा प्रदान करना है जिनके पास सीमित या कोई संसाधन नहीं है। यह समाज के उन सदस्यों को शामिल करता हैं जो संपन्न नहीं हैं। इसका उद्देश्य सभी बच्चों को शिक्षा की गारंटी देना है। इसका अभिप्राय है कि विभिन्न पृष्ठभूमि के बच्चों को अध्ययन करने का अवसर मिले। आर्थिक रूप से पिछडें व दलित समाज के जरूरतमंद परिवारों को इसका कितना लाभ मिल रहा है? या अलग अलग राज्यों के अपने अपने नियमों के कारण जिन्हें इसकी सख्त जरूरत है, उनका उत्पीडन किया जा रहा है? क्या इस सच्चाई पर विचार करने की आवश्यता नहीं है कि − मजदूर व आरक्षित वर्ग बडी संख्या में रोजगार की तलाश में मुंबई जैसे शहरों में परिवार सहित आकर रहते है? उन्हें यहां राशन कार्ड, आधार कार्ड व अन्य सभी दस्तावेज बनानें की अनुमती सहित मतदाता सूची में भी शामिल किया जाता है। सभी दस्तावेंज पर वह जिस जाति वर्ग से है वही लिखा जाता है फिर वह अगर आरक्षित वर्ग से है तो यहां आर.टी.ई नियम द्वारा एडमिशन हो या दसवीं के बाद, उनके बच्चों कि आगे की पढाई में व जनरल केटेगरी में क्यूँ आएगा?
दलित वर्ग के जो माता पिता स्वयं शिक्षा ग्रहण नहीं कर सके व आज भी समाज में पिछडें हुए है, अगर किसी भी कारणवश उनके राज्य में रोजगार नहीं मिल रहा तो क्यां वह किसी अन्य राज्य में जाकर रोजगार की तलाश नहीं करेंगें, क्यां राज्य बदलने के साथ उनकी जाति भी बदल जाएगी?आर.टी.ई नियमानुसार इसके नियमों के दायरें में आने वाले परिवारों के लिए प्राथमिक शिक्षा पूर्ण रूप निशुल्क अनिवार्य है। तो फिर जाति प्रमाण पत्र उसी राज्य का हो इसका क्यां अर्थ है। मुंबई मे जाति प्रमाण पत्र अन्य राज्य का होने पर एडमिशन रद्द किए जानें का यहीं अर्थ निकाला जा सकता है कि ऐसे माता पिता जो अशिक्षित होने के कारण खुद मजदूरी करते आये है और रोजगार की तलाश ने उन्हें मुंबई जैसे शहर तक पहुचा दिया अब उनके बच्चों को भी गरीबी के अभिशाप और दूसरे राज्य में आकर रहनें की सजा के रूप में प्राथमिक शिक्षा या तो किसी सरकारी स्कूल में पुरी करें या फिर माता पिता की तरह मजदूरी करके जीवन गुजारें, क्योंकि यहां तो उन्हें अब जाति प्रमाण पत्र के आधार पर आर.टी.ई से किसी प्राइवेट अग्रेंजी स्कूल में पढनें के अपने सपने को सपना समझकर भूला देना ही उचित होगा।
ज्यादातर स्लम एरिया में नर्सरी के.जी के लिए स्कूल उपलब्ध नहीं है। मानखुर्द मुंबई में बडी तादाद में स्लम एरिया है। यहां अन्नाभाऊ साठे नगर, सोनापुर जयहिन्द नगर, इन्दिरा नगर सहित लल्लूभाई कम्पाउन्ड भी है. जिसमें 75 से ज्यादा बिल्डिंग है लेकिन यह ऐसी बिल्डिंग है जिन्हें अलग-अलग क्षेत्रों के झोपडें हटाकर पुर्नवसन किया गया है। इन बिल्डिंगों में ज्यादातर मजदूर वर्ग रहता है। लगभग एक लाख से ज्यादा झोपडपटटी के इस क्षेत्र में नर्सरी व केजी के लिए आर.टी.ई द्वारा एउमिशन के लिए एक से तीन किलोमीटर जो आर.टी.ई का नियम है. उसके अंर्तगत कोई स्कूल उपलब्ध नहीं है। यहां के निवासी कई माता पिता ने बताया कि उन्हें नर्सरी व के.जी के लिए अपने बच्चें का एडमिशन करना था। लेकिन आसपास कोई भी स्कूल नहीं होने से वह नहीं करा सके। वासीनाका, चेम्बूर आदि स्थनों पर स्कूल है जो 7 से 8 किलोमीटर की दूरी पर है। इतने छोटे बच्चों को माता पिता के लिए इतनी दूर स्कूल भेजना संभव नहीं है। एक समस्या और भी है आर.टी.ई के तहम 3 या 4 साल तक के बच्चों को तो एडमिशन मिल जाता है लेकिन साढे चार या पांच साढें पांच साल के बच्चों को लम्बा इंतजार करना पडता है. इस आयु के बच्चों के फॉर्म वेबसाईट पोर्टल स्वीकार ही नहीं करता यानि पहले 3 से 4 या फिर 6 वर्ष पुरे होने पर ही एडमिशन हो सकता है।
मुंबई मानखुर्द ईस्ट में रहने वाले अभिभवक ने बताया कि उन्होनें पहली कक्षा के लिए एडमिशन फॉर्म भरा था और उनके बच्चें का एडमिशन में रेग्यूलर सॅलेक्शन में कर्न्फम हो गया था जिसका मॅसेज उनके मोबाईल पर 18 मार्च को आर.टी.ई डिर्पाटमेंट की तरफ से आया था। उसके बाद लॉकडाउन हो गया। और फिर 22 जून को उन्हें मॅसेज आया की आप स्कूल जाकर अपने डॉक्यूमेंट जमा करा सकतें है. साथ ही स्कूल का एक नंबर भी दिया गया था, संपर्क करने के लिए. स्कूल की ओर से 25 जून को बुलाया गया और बच्चें के पिता ने सभी जरूरी पेपर स्कूल में जमा करा दिए। लेकिन एक सप्ताह बाद स्कूल की तरफ से कहां गया कि आपका जाति प्रमाण पत्र यू.पी का है इसलिए आपको इनकम सर्टिफिकेट जमा करना होगा। बच्चें के पिता इनकम सर्टिफिकेट बनानें की भागदौड मे लग गए क्योकि उन्हें इसे बनाने की जानकारी नहीं थी और लॉकडाउन की वजह से भी समस्या आ रही थी. वैसे इन्होंने इनकम सर्टिफिकेट बनानें की सारी जानकारी प्राप्त कर ली थी जिसके तहत मुलुड कोर्ट भी जाकर आ गए थे।
यहां पिता इनकम सर्टिफिकेट की भाग-दौड कर रहे थे तभी स्कूल से फिर फोन आया कि आप इनकम सर्टिफिकेट बाद में करना, पहले नवी मुंबई बेलापुर जाकर कास्ट सर्टिफिकेट को वॅलिड कराकर लाईये, और कहां कि उन्हें भी एड्रेस पता नहीं है आप बेलापुर जाकर पता कर लेना। बच्चे के पिता ने बताया की लोकल ट्रेन बंद है वह बस से बेलापुर गये और करीब एक घंटा यहां वहां भटकने के बाद कोकण भवन का पता एक व्यक्ति ने बताया। लेकिन कोकण भवन में भी लॉकडाउन की वजह से बहुत कम कर्मचारी उपस्थित थे. यहां कहा गया कि यू.पी या किसी भी दूसरे राज्य का जाति प्रमाण पत्र वॅलिड या ऐसा कुछ भी करने का कोई कार्य नहीं होता. आपको जाति संबधित जो भी करना है अपने राज्य से ही कर सकते है और यहां थाणे जिला व आसपास के क्षेत्रों के रहने वालों के लिए जाति प्रमाण पत्र का काम होता है और मुबई के लिए बांद्रा मे कार्यालय है। कोकण भवन के कर्मचारी ने बताया की किसी भी दूसरे राज्य के कास्ट सर्टिफिकेट को महाराष्ट्र मे वॅलिड करने का कोई नियम उनके संज्ञान में नहीं है। इस कार्यालय से बच्चें के पिता को बांद्रा कार्यालय का नंबर मिल गया था। लेकिन वहां जानें से पहले वह एक बार फोन करना चाहते थे लेकिन बांद्रा के कार्यालय में दसों बार फोन किया एक बार भी किसी ने फोन नहीं उठाया गया मतलब साफ था कि लॉकडाउन के कारण कार्यालय बंद होगा। पिता ने आगे बताया की स्कूल के जो अध्यापक आर.टी.ई फॉर्म जमा कर रहे थे उन्होंने उनसे बहुत प्रार्थना की, कि उनके बच्चें के भविष्य का सवाल है अगर जाति प्रमाण पत्र स्वीकार नहीं कर रहे तो इनकम सर्टिफिकेट, मैं जमा करने के लिए तैयार हॅू। लेकिन अघ्यापक का कहना था कि उनके हाथ मे कुछ नहीं है और उन्हें खुद आर.टी.ई के नियमों की जानकारी नहीं है. वह पहली बार यह काम देख रहें हैं। बच्चें के पिता ने आर.टी.ई के सभी हेल्पलाइन नंबरों पर फोन किया लेकिन उनका कहना है कि आर.टी.ई का कोई भी हेल्पलाइन नंबर नहीं लगा जिससे उन्हें कोई मदद मिलनें की अभी भी उम्मीद नजर आ रही थी।
गौर करने वाली बात है कि आर.टी.ई कार्यालय की और से जारी निर्देशानुसार किसी भी बच्चों के माता पिता को कोराना वायरस के संक्रमण की वजह से किसी भी कारण बेवजह परेशान न किया जाऐ।
मुंबई में लगातार कोरोना संक्रमण के रोजाना हजारों केस मिल रहें है. ऐसी स्थिति में भी अपने बच्चें के भविष्य के लिए इस पिता ने भागदौड की, लेकिन अंत में वही हुआ जिसका डर इन पिता को था। स्कूल में कई चक्कर लगानें के बाद भी कोई जानकारी नहीं मिल रही थी और 26 अगस्त को इन्होंने स्कूल के उन्हीं अध्यापक को फोन किया जिनके पास सभी कागजात जमा किऐ थे। अध्यापक ने इनसे कहां कि आपके बच्चें का एडमिशन कैंसिल किया गया है, साथ ही एक और बच्चा था जिसका कास्ट सर्टिफिकेट दूसरे राज्य का था उसका भी एडमिशन कैंसिल हुआ है। पिता ने स्कूल से अपने जमा किए पेपर वापिस करने की प्रार्थना कि तो कहा गया वह नहीं मिल पाएगें। पिता का कहना है कि सिर्फ उनके द्वारा फोन किया गया तब यह जानकारी दे दी गई. उन्हें न तो कोई मैसेज आया और न लिखित में कोई पेपर दिया गया। पिता ने 18 मार्च को अपने बच्चें का आर.टी.ई एडमिशन कर्न्फम होने का मैसेज आने पर मिठाई बांटी थी। पिता को ऐसा अहसास हो रहा है कि वह उत्तर प्रदेश से मुंबई, महाराष्ट्र नहीं बल्कि जैसे गलती से किसी दूसरे देश में आ गए हो.
आर.टी.ई द्वारा पिछडें वर्ग को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के उद्वेश्य को पूर्ण करने का अर्थ तभी साकार हो पाएगा जब मानवीय नजरिए को ध्यान में रखकर फिर एक बार विचार किया जाए, और इसके नियमों के दायरें में आने वाले सभी पात्र माता पिता के बच्चों को, बिना राज्य के नियमों और किसी भी राज्य की सीमाओं में न बांधा जाए. रोजगार की तलाश में भटकतें लोगों के साथ पीढी दर पीढी यही होता आया है और नींव कमजोर होने के कारण इमारत भी मजबूत नहीं हो पाई। कम से कम प्राथमिक शिक्षा के लिए आर.टी.ई के पात्र सभी बच्चों को पुरे देश में एक समान अधिकार प्राप्त हो सके, राज्यों की सीमाऐं बंधन बनकर इनके सपनों को ध्वस्त न करें।
सम्पादकीय नोट: शायद दुसरे देश में जाति के आधार पर भेद भाव न हो, कुछ और के कारण हो, या पूरी शिक्षा प्रणाली ही सरकारी हो, या मिला जुलकर ही बेहतर हो. खैर गाँव बदले, जिला, राज्य या देश- अगर दूर जाना है काम करने के लिए, तो पहले तो यही कडवी दिक्कत है, और अगर गए भी तो शहर बनाने वालों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रखना तो, प्रदूषित शहर में शुद्ध हवा करने वाले नीम पर करेला है.