हरिश्चंद्र बिंद
अध्यक्ष गाँव सुधारक समिति
मिर्जापुर रिपोर्टर-द सभा
एक रेलवे का फाटक है. कटका स्टेशन के पूर्वी ओर. यहाँ से होकर जिन्दा और मुर्दा दोनों जातें हैं. मुर्दा, दक्षिण की ओर, अर्थी पर गंगा नदी किनारे जलने और जिन्दा औरतें खटिया पर उस पार, प्रसव के लिए. जिन्दा मुर्दा दोनों परेशान हैं क्यूंकि फटका बंद हो गया है. जब कहीं पहुँच न हो, कहीं सुनवाई न हो, तो गाँव के लोग क्या-क्या कर सकते हैं ?
ओम प्रकाश बिंद उर्फ़ पंडित जो ग्राम सभा गडौली के करहर मौउजा (हैमलेट, हर गाँव में अलग अलग एरिया के हिसाब से मौजा में बाटा होता है) के निवासी हैं, उन्होंने हमें फेसबुक पर मेसेज किया-
“हमारे ग्राम सभा सहित २२ गाँव का एक मात्र, संपर्क मार्ग, जो कि हाईवे संख्या एन एच-२ से जोड़ता है, और इलाहबाद बनारस रेलवे लाइन के कटका रेलवे स्टेशन को पार करता है, वो रेलवे फाटक बंद कर दिया गया है. क्यूंकि रेलवे लाइन का दोहरीकरण का काम चालू है. पर ये हमेशा के लिए बंद कर दिया है. हालाँकि पहले भी कोई पक्का रास्ता नहीं था, लेकिन लोग किसी तरह आते जाते थे.“
क्यूंकि मिर्जापुर के गाँव में हमारी संस्था ग्राम सुधार संघर्ष समिति ने बीते सालों से गांवों के मूलभूत मुद्दों जैसे खडंजा की सड़क, नाली, पंचायत भवन, राशन कार्ड, प्राथमिक विद्यालय पर आवाज उठाई थी. जिसमें परचा निकालकर, लोगों को उनके हक अधिकारों के बारें में जागरूक कर हमने सम्बंधित अधिकारीयों को ज्ञापन सौंपा, और कारवाई न करने पर धरना प्रदर्शन करके काम करने पर मजबूर किया. इसे कारण पंडित ने इस २२ गांवों के समस्याओं को लेकर हमें संपर्क किया.
फिर हमने गाँव के लोगों के साथ मीटिंग की, जहाँ पता चला कि ये समस्या जब से रेलवे लाइन बिछाई गयी है, तब से है. यहाँ तक कि लोगों ने कटका स्टेशन मास्टर, डी..आर.ऍम. रेलवे अधिकारी, वाराणसी मंडल, जिले के सांसद, स्थानीय विधायक को कई बार पत्र भेजा. पर कोई टस से मस नहीं हुआ. तो हम लोगों ने तय किया कि रेलवे डी.आर.एम् वाराणसी को सैकड़ों की संख्यां में जाकर ज्ञापन सौंपेंगे. हम लोग फिर अगले दिन पैसेंजर ट्रेन लेकर मडुआ डीह स्टेशन उतरें और वहां से २ किलोमीटर चलकर अधिकारी को ज्ञापन दिया, जिसमें बच्चों से लेकर बूढ़े भी शामिल थे. डी.आर.एम् ने सैंकड़ों लोगों की बात को सुनकर कहा कि सरकार से र्पोजेक्ट पास करवाओ, रेल मंत्रालय में जाओ, सांसद से सिफारिश कराओ. ले देकर अपना सारा काम, हमारे श्रम के सरकारी सैलरी पाने के बावजूद, बेशर्म होकर हमें ही करने को कहा. बड़ा अधिकारी होने के कारण वहा सुरक्षा में लगे रेलवे पुलिस ने डराना-धमकाना शुरू कर दिया और वापस जाने का दबाव बनाने लगे .गावोंमें आज भी पुलिसका भय यथावत बना हुआ है जैसा गुलाम भारत में हुआ करता था
निराश होकर हम समस्त ग्रामवासी उस दिन वापस गांव चले आये और30/02/2020 कों महापंचायत बुलाने पर सहमति बनी. 30तारीख की सुबह सैकड़ो कि संख्या में गाँव के बुजुर्ग महिलाये बच्चे रेलवे लाइन के समीप बगीचे में इकट्टा हुए. कुछ लोगों ने रेलवे लाइन जाम करने की बात कही. इन गांवों में अधिकतर पिछड़े और दलित समाज के लोग रहते हैं, और बाकियों को दिक्कत नहीं थी क्यूंकि उनके पास घूम के जाने के लिए संसाधन है. लेकिन मुझे पता था कि जाम करने का मतलब लम्बे समय तक कौर्ट कचहरी का चक्कर, और जिस समाज की ये लड़ाई है उनका सत्ता के गलियारे में दूर दूर तक पहचान नहीं है, न ही आर्थिक रूप से संपन्न हैं, जिस से वो केस लड़ सकें. एक तरफ रेलवे, फिर उनके सरकारी वकील और दूसरी तरफ रोज कुआँ खोद कर पानी पीने वाले लोग.
फिर हमने शांतिपूर्ण तरीके से अनिश्चितकालिन भूख हड़ताल की प्रस्तावना रखी, ताकि गांवों की लड़ाई के लिए गांवों के ही लोग जुटें, क्यूंकि इनका कोई सुनने वाला नहीं है, और लम्बी संवैधानिक लड़ाई के लिए यही खुद लड़ पायें तो समस्या का समाधान हो सकता है. भूख हड़ताल पर बैठने के लिए मुझे लेकर २० लोगों ने सहमति जुटाई. और 6 मार्च २०२० को इसकी शुरुवात करने का फैसला हुआ. पांच तारीख को हमने हस्त लिखित पर्चा, पोस्टर अपनी मांगों को लिखकर साथ ही धरना की सूचना देते हुए, गाँव-गाँव तक पहुचाया.
दिनांक 6:03 2020 की सुबह कटरा रेलवे स्टेशन से 500 मीटर पूर्वी छोर पर स्थित द्वारिकापुर गंगा नदी संपर्क मार्ग पर धरना शुरू किया गया. यह जगह भदोही और मिर्जापुर की सीमा है। सुबह से ही सैकड़ों की संख्या में ग्राम वासी इकट्ठा होने लगे थे और देखते ही देखते भारी भीड़ जुट गई. लोगों के हाथों में नारे लिखी तख्तियां थी और कुछ लोग हाथ में देश का झंडा लिए गांव से समूह बनाकर आ रहे थे. ऐसा लग रहा था कि आजादी की लडाई छिड़ रही है। अनशन स्थल, कच्ची सड़क के अंत में जो कि रेलवे की पटरी के नजदीक थी और आसपास बंजर खेत थे, जिनमें सरपत और कांसा जमा हुआ था. बस्ती करीब एक किलोमीटर दक्षिण में थी। दोपहर तक तेज धूप निकल गई थी फिर भी लोगों के उत्साह के आगे मध्यम पड़ गई थी। प्लास्टिक का एक कटा फटा टुकड़ा था जिस पर मुश्किल से 10-15 लोग बैठ सकते थे बाकी लोग खेत की मेड़ों और रेलवे के पटरी के पास की जमीन पर बैठे थे। खेती किसानी मजदूरी करने वाले लोगों को यह नहीं फर्क पड़ता कि मिट्टी लगेगी या कपड़े गन्दे हो जाएंगे। भूख हड़ताल के लिए मेरे अतिरिक्त 20 अन्य लोगों ने भी अपनी सहमति जताई और एक कागज पर सबका नाम बारी-बारी से लिखा गया. जिस पर लोगों ने अपना दस्तखत भी किया, जिसमें एक किन्नर सपना भी शामिल थी। रास्ते से गुजरने वाले जितने भी लोग थे सब आश्चर्यचकित होकर देख रहे थे. यह रास्ते की ही लड़ाई थी और मांग था कि रेलवे का फाटक ओवर ब्रिज या अंडरपास कुछ भी बना कर रास्ता दिया जाए जिससे लोगों को रोज रोज होने वाली परेशानियों से छुटकारा मिल सके। भूख हड़ताल की बात आस-पास के गांव में जंगल में लगी आग की तरह फैल गई।
शाम होते होते भारी भीड़ इकट्ठा हो गई जिसमें बच्चे बूढ़े महिलाएं और कुछ नवयुवक जोकि दूर से ही मोबाइल से फोटो खींचने में व्यस्त थे। ठंडी का मौसम था और दिन बीत चुका था रात में खुले आसमान में रहना मुश्किल था कुछ लोग पास पास टेंट हाउस से टेंट लाने गए लेकिन सबने टेंट देने से मना कर दिया हां एक जगह से रजाई गद्दे की व्यवस्था मुश्किल से हो पाई। नाम लिखा था 20 लोगों का जिसमें मुझे छोड़कर अब आठ ही लोग बचे थे बाकी लोग कब निकल लिए पता भी नहीं चला।
दिन तो ऐसे तैसे बीत गया लेकिन रात को उन आठ लोगों जिनमें ओमप्रकाश बिंद और पंडित आशीष यादव, अभिषेक चौबे, मुकुंजन बिंद, जितेंद्र चौबे, रमेश बिंद, सुखराज यादव, दया बिंद के परिवार जन खाना लेकर भूख हड़ताल स्थल पर पहुंच गए। नौवां व्यक्ति हरिश्चंद्र बिंद यानी मैं था जो कि दूसरे गांव से था तो परिवार वालों को सूचना नहीं थी। आशीष यादव जो कि अभी हाल ही में चेचक की बीमारी से ठीक हुए थे, उनके छोटे भाई अजीत यादव पहले तो उन्हें घर ले जाने की जिद पर अड़े रहे. मना करने पर आक्रोशित होकर चले गए. हो भी क्यों ना आशीष जी की तबीयत खराब थी, दूसरे साथी अभिषेक चौबे जिनकी अभी नई-नई शादी हुई थी उनकी पत्नी का बार-बार फोन आ रहा था और उनके घर के भी लोग बार-बार आ रहे थे. उनके पिताजी काफी गुस्से में थे, तीसरे साथी जितेंद्र चौबे जोकि एक पेट्रोल पंप पर मैनेजर का काम करते हैं, वह काम से लौटे ही थे और भूख हड़ताल पर बैठ गए। चौथे साथी दया बिंद जो कि सब्जी बेचने का काम करते हैं, सुबह मंडी से सब्जी लेकर आए थे लेकिन बेचने नहीं गए थे. उनका सब्जी घर पर पड़ा रह गया, पांचवी साथी मुकुंजन बिंद जो कि 70 साल की उम्र के बुजुर्ग थे, वो भी अपना काम छोड़कर साथ में बैठे थे. छठे साथी रमेश बिंद जो कि मुंबई में रहकर मजदूरी करते हैं होली के त्यौहार में घर पर आए थे, सातवें साथी सुखराज बिंद जोकि एक पैर से दिव्यांग है और गांव के कामों में हमेशा आगे रहते हैं. आठवें व्यक्ति ओमप्रकाश बिंद उर्फ़ पंडित जो किरोड़ी ग्राम सभा के लिए हमेशा दिन रात समर्पित रहते हैं और अपनी लड़ाईओं के बल पर बिना किसी पद पर रहते हुए सैकड़ों राशन कार्ड शौचालय आवास बनवाए हैं।
भूख हड़ताल चल बे नारे लगने शुरू हुए जिसमें कुछ प्रचलित नारो का हमने इस्तेमाल किया. जैसे हम हमारा हक मांगते, नहीं किसी से भीख मांगते; रेलवे प्रशासन होश में आओ; जिले के सांसद विधायक होश में आओ; रेलवे फाटक जल्द बनवाओ; इंकलाब जिंदाबाद; आवाज दो हम एक हैं। पहली बार इस तरह के नारों में लोगों की सहभागिता हुई तो उत्साह भी सातवें आसमान पर था.
गांव के लोगों ने भूख हड़ताल का नाम तो सुना था लेकिन देखा नहीं था. तो उत्सुकता थी. बस हर व्यक्ति आश्वस्त हो जाना चाहता था कि वास्तव में कुछ नहीं खाएंगे या फिर भूख हड़ताल के दौरान क्या खाते हैं ? यह सवाल मेरे साथ बैठे 8 लोगों के मन में भी थी चूँकि उनके लिए यह पहला अवसर था, जब भूख हड़ताल पर वह बैठे थे। शाम को लगभग 7:00 बजे कछवा थाना अध्यक्ष, मनोज सिंह अपने दल बल के साथ अनशन स्थल पर पहुंचे. पुलिस की गाड़ी देख और हूटर की आवाज सुन ज्यादातर लोग खिसक लिए. कारण लोगों ने पुलिस की छवि आज भी वही है जैसा कि कभी गुलाम भारत में सुनने को मिलती है। थानाध्यक्ष द्वारा पहले तो हम लोगों से शक्ति से बात की गई और डराने धमकाने का प्रयास किया गया. ज्यादातर लोग हाथ जोड़कर खड़े थे, कुछ लोग पुलिस की चापलूसी भी कर रहे थे. बाकि संभालना मुझे ही था तो मैंने संवैधानिक तरीके से बात करना शुरू किया. पिछले आंदोलनों से मुझे इस स्थिति से निपटने का अनुभव अच्छे से हो गया था. फिर उन्होंने अपने हमराही दरोगा से सभी का नाम, पिता का नाम, गांव का नाम, मोबाइल नंबर लिखने को कहा. जब मेरी बारी आई तो उस दरोगा ने मुझसे कहा कि तुम तो दूसरे गांव के हो यहां क्या कर रहे हो? हमने भी उन्हें समझाया की आजाद देश का नागरिक होने के नाते मैं कहीं भी किसी की भी लड़ाई लड़ सकता हूं, यह हमारा संविधानिक अधिकार है. यह बात सुनकर उस दरोगा का मुरझाया चेहरा देखने लायक था।
ओमप्रकाश बिंद उर्फ पंडित अपने दिनचर्या के हिसाब से शाम को दंड सपाटा करने लगे, पूछने पर उन्होंने बताया कि बिना कसरत के उन्हें नींद नहीं आती. हम लोगों की पहली रात प्लास्टिक के एक फटे त्रिपाल को बांस बल्लीयों के सहारे टिकाकर छांव करके गुजरी और रात में ग्लूकोज और पानी पिया गया. अब आगे की योजना तैयार की गई जो जिसकी जिम्मेदारी मेरे कंधे पर थी.
भूख हड़ताल के दूसरे दिन दिनांक 07/03/2020की सुबह से ही भीड़ इकट्ठा होने लगी जिसमें महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा थी। पूरे दिन क्षेत्र के नामी गिरामी लोगों का आना जाना लगा रहा , बड़ी-बड़ी बातें हुई और हर किसी ने अपनी पहुंच ऊपर तक होने का दावा किया। शाम के समय अपना दल (एस) के भदोही जिलाध्यक्ष, डाक्टर जटाशंकर बिंद जी अनशन स्थल पर पहुंचे। 8:00 बजे के करीब भागीदारी संकल्प मोर्चा के घटक दल भारतीय मानव समाज पार्टी के वाराणसी और मिर्जापुर जिला अध्यक्ष उमानाथ बिंद, दिनेश बिंद अपने साथियों सहित समर्थन देने पहुंचे। हम सभी ने भूख हड़ताल के तीसरे दिन सांसद, विधायक, रेल मंत्री का पुतला दहन करने का निर्णय किया। अनशन के तीसरे दिन सुबह गांव के नौजवानों ने जिनमें त्रिलोकी, अजीत यादव लव कुश बिंद ने पुतला तैयार किया। दोपहर तक भारी भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी. इसी बीच औराई ब्लॉक के प्रमुख, विकास मिश्रा उर्फ बृजमोहन मिश्रा समर्थन देने अपने साथियों संग पहुंचे। भूख हड़ताल में बैठे जितेंद्र दुबे, ब्लाक प्रमुख के यहां ही काम करते थे तो इस बात को लेकर ब्लाक प्रमुख भी काफी उत्साहित थे। पुतला दहन होने ही वाला था कि अपना दल (एस) के जिलाध्यक्ष इंजीनियर राम लोटन पार्टी के लेटर पैड पर आश्वासन लिखा पत्र हमारे समक्ष प्रस्तुत किया क्योंकि मिर्जापुर में अपना दल (एस) की ही सांसद है तो राजनीतिक साख बचाने के लिए हमें मनाना उनकी जिम्मेदारी बनती है। लेकिन बात सिर्फ आश्वासन से नहीं बनने वाली थी बल्कि कई सालों की मांग को जिस तरह से अनदेखा किया जा रहा था और पिछले चुनाव में जनता ने अस्सी परसेंट वोट इसी मुद्दे पर दिया था, जिसका माननीय सांसद महोदय ने महिलाओं से वादा किया था कि इस बार रास्ता जरूर बन जाएगा। जनता के भारी विरोध के बीच पुतला दहन कर दिया गया और जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे लगने लगे, यह सब कुछ सांसद प्रतिनिधि के सामने ही हो रहा था और लोग उनको चुनाव में उनका किया गया वादा याद दिला रहे थे।
दोपहर 2बजे के करीब समाजवादी पार्टी से मझवा विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी अपने समर्थकों सहित धरना स्थल पर पहुंचे और लंबा भड़काऊ भाषण दिए. वह चाहते थे कि लोग रेलवे ट्रैक को जाम कर दें. इसके पीछे उनका तर्क था कि इस तरह सुनसान जगह पर बैठने से कुछ नहीं होगा बल्कि जब ट्रेनें रुक जाएगी तो तुरंत ही शासन प्रशासन के बड़े-बड़े अधिकारी आपकी बात सुनने के लिए आ जाएंगे और सब काम हो जाएगा। मुझे आंदोलन का लंबा अनुभव है और मैं जानता हूं कि जब इस तरह का काम होता है तो कितनी हिंसा होती है और गरीबों का खूब शोषण किया जाता है. मैं जिन लोगों की लड़ाई लड़ रहा था उनका कोई प्रतिनिधित्व करने वाला नहीं था न ही शासन प्रशासन में उनके लोग हैं, जो इनके हक में आवाज उठाएं. मैंने साफ-साफ मना कर दिया और नेताजी को बताया कि हम गांधी के रास्ते पर अपनी मांग मनवाएंगे और अहिंसक आंदोलन जारी रखेंगे। यह बात नेताजी को बहुत बुरी लगी और वह तिलमिला कर चले गए।
आज दिन में कई लोगों ने कुछ पैसे और ग्लूकोज के साथ पानी की बोतलें मदद स्वरूप दे दी थी। अनशनकारियों में आशीष यादव और अभिषेक चौबे के बीच ग्लूकोश पीने की बाजी लगी थी, दया बिंद को अपने सब्जी की दुकान की चिंता थी क्योंकि एक अन्य विक्रेता लाले जो कि इनके साथ मंडी जाते थे, वे हर रोज सब्जी बेच रहे थे। मुकुंजन बिंद की पत्नी जो अपने बूढ़े पति को तीन दिन से भूखे देखकर दुखी थी। तीसरे दिन ओमप्रकाश उर्फ़ पंडित डंड बैठक करने नहीं गए पूछने पर उन्होंने बताया कि अब हिम्मत नहीं रह गयी है। रात को तय किया गया कि होलिका दहन और होली के त्यौहार का बहिष्कार किया जाएगा और शासन प्रशासन की शवयात्रा निकाली जाएगी। इस पर सब लोगो ने एक बार में हामी भर दी। अनशन के चौथे दिन की तैयारी हुई । रात में पोस्टर लिखा गया और अन्य लोगों को भी जिम्मेदारी सौंपी गई।
भोर में एक बुजुर्ग जो कि अखबार बेचने वाले थे, अखबारों में प्रकाशित खबर को दिखाया. इस बार पुतला दहन होने की खबर प्रकाशित हुई थी। अब हम लोगों का उत्साह थोड़ा और बढ़ गया। सुबह शवयात्रा की तैयारी होने लगीं और 10 बजे के करीब महिलाओं और गांव के नौजवानों ने अपने कंधे पर प्रतिकात्मक शव यात्रा के लिए तैयार बांस की सीढ़ियां और उसके उपर घास जिसको बकायदा किसी मृतक व्यक्ति का आकार दिया गया था और उसे कफ़न से इस तरह सजा दिया गया था कि मानो सचमुच किसी की शवयात्रा निकाली जा रही हों। शवयात्रा इस पास के सभी गांवों में घुमने लगी साथ में जिंदाबाद मुर्दाबाद के नारे भी लग रहे थे । बीच बीच में रोककर लोगों को समर्थन देने का आह्वान किया जा रहा था। हजारों की संख्या में महिलाओं बच्चों बुजुर्ग नौजवानों का हुजुम उमड़ने लगा था। शवयात्रा के अनशन स्थल पर पहुंचते पहुंचते हजारों की संख्या हो गई थी । मेरे लिए यह उपयुक्त समय था होलिका दहन और होली के त्यौहार के बहिष्कार की घोषणा करने का क्योंकि उस दिन होलिका दहन था एवं अगले होली का त्योहार था। लोगों ने एक स्वर में बहिष्कार करने के साथ नारे लगाने लगे। दोपहर हुई ही थी कि मिर्जापुर सदर SDM आर के श्रीवास्तव को लेकर एक बार फिर सपा के नेता रोहित शुक्ला अनशल स्थल पर पहुंचे। जहां पहले से ही निर्बल इंडिया हमारा आम दल के प्रदेश सचिव राजन बिंद, जिला पंचायत सदस्य तुलसीराम बिंद, मिर्जापुर कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष शिवकुमार पटेल, कांग्रेस पार्टी PCC के सदस्य शिवशंकर चौबे पहले से ही मौजूद थे। अनशनकारियों में कुछ लोगों का पूर्व में भी SDM सदर मिर्जापुर का सामना हो चुका था, जिनमें ओमप्रकाश बिंद उर्फ पंडित अपने गांव के राशनकार्ड और आवाश शौचालय की मांग को लेकर तहसील में धरना प्रदर्शन कर चुके थे तो उन्होंने खड़े होकर अभिवादन करना चाहा. इस पर बाकी साथियों ने एतराज जताया जो कि जायज भी था. धरना स्थल को छोड़ना नियम: गलत है क्योंकि लोकसेवक जनता की सेवा के लिए होता है ये बातें आशिष यादव ने कही। SDM सदर ने पहले तो अपने अधिकारी होने का पुरा रौब दिखाया और हम लोगों से कहा कि यह काम रेलवे मंत्रालय कर सकता है जो कि केन्द्र सरकार के अधीन है मैं तो राज्य सरकार का कर्मचारी हूं, इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता. इस पर मैंने तुरंत जवाब दिया कि जब आप कुछ नहीं कर सकते तो क्यो आए हैं? वे अब खामोश थे क्योंकि इससे पहले जो लोग हाथ जोड़े उनके सामने खड़े होकर उनकी डांट चुपचाप सुनकर बिना कुछ बोले, हां में हां मिला देते थे, अब वही लोग आंखों में आंखें डालकर मुट्ठी तानकर सवाल कर रहे थे। यह बात अधिकारी महोदय को अच्छी नहीं लगी और वे चलते बने. इसी बीच सपा के पूर्व प्रत्याशी महोदय आक्रोशित होकर मुझसे उलझ गये और कहने लगे कि एक बड़े अधिकारी से इस तरह बात नहीं की जाती. मैंने भी पुंछ ही लिया कि तो आप ही बात करके हमारी समस्याओं को क्यो नही दूर कर देते? बेचारे दूसरी बार भी अनशन पर कब्जा करने में असफल रहे और अपने समर्थकों संग चलते बने। सायंकाल में होलिका दहन नहीं होना था तो इसकी जिम्मेदारी युवाओं ने अपने उपर ली और गांव वालों से होलिका नहीं जलाने का निवेदन हर टोली में जा जाकर कर रहे थे।
सायंकाल में रेलवे के कुछ बड़े अधिकारियों के साथ क्षेत्राधिकारी सदर पहुंचे और होलिका दहन का मौका मुआयना भी किया रेलवे के अधिकारियों ने पत्रक लेकर हमें उच्चाधिकारियों तक बात पहुंचाने का आश्वासन देते हुए चले गए। रात्रि के करीब 9 बजे दो बड़ी बड़ी गाड़ियां आती दिखाई दी, नजदीक आने पर पता चला कि डा विनोद बिंद अनशन स्थल पर अपने सहयोगियों के साथ समर्थन देने पहुंचे है. वैसे तो वह चंदौली जिले के निवासी हैं लेकिन अपने सामाजिक लगाव के कारण हमेशा ही लोगों के साथ खड़े रहते हैं. उनके चेहरे पर हमारे स्वास्थ्य और हमारी समस्याओं को लेकर चिंता थी. डॉक्टर साहब हमेशा गरीबों के लिए शादी विवाह शिक्षा हेतु सहयोग करते रहते हैं, उन्हें अपने स्तर से मदद करने की बात कही। रात को तेज बारिश हुई चुकी कोई मजबूत व्यवस्था नहीं थी तो रात में हम सभी भूख हड़ताल पर बैठे लोगों ने टेंट को पकड़े रखा और रात भर जागते रहे. ठंडी का मौसम होने के कारण हमें काफी दिक्कत झेलनी पड़ी। तेज हवा के सामने टेंट जो कि प्लास्टिक का था, बार-बार उड़ रहा था, छेद होने के कारण पानी टपक रहा था और आसपास पानी जमा हो गया था. जिससे हम लोगों का बिछौना भीग चुका था और हम लोग भी भीग चुके थे। ढेर सारे कीड़े मकोड़े निकलकर पानी से बचने के लिए जमा हो चुके थे। रात को 2:00 बजे थे हमें भारतीय मानव समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का फोन आया जोकि भूख हड़ताल से मात्र 200 मीटर दूर हाईवे पर आए थे. वह भी समर्थन देने पहुंचे थे, किसी प्रकार से हमारे बीच में उपस्थित हुए. उनके साथ पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र बिंद भी थे। जैसा कि पूर्व में भी मिर्जापुर बनारस के जिलाध्यक्ष, दोनों हमें समर्थन देने पहले ही आ चुके थे।
भूख हड़ताल के पांचवें दिन होली का त्यौहार था और हम लोगों ने पूर्व में ही त्योहार के बहिष्कार की घोषणा कर रखी थी. सुबह से ही लोगों का जमावड़ा हर रोज की भांति भूख हड़ताल स्थल पर होने लगा था. जिसमें विशेषकर महिलाएं थी. जो हर रोज अपना काम निपटा कर पूरे दिन हम लोगों के साथ समर्थन में बैठी रहती थी. आसपास के गांव के लोगों में भी अब उसका बढ़ने लगा था क्योंकि भूख हड़ताल के 5 दिन हो चुके थे जो कि पहले तो असंभव लग रहा था लेकिन अब लोगों के अंदर उम्मीद जगी थी कि हम लोग कुछ नया परिवर्तन कर देंगे. सबकी नजर भूख हड़ताल पर बैठे लोगों की तरफ थी। इसी बीच 10:00 बजे के करीब बगल की गांव की महिला को प्रसव के लिए लोग खाट पर लिटा कर ला रहे थे. बताते चलें कि इस गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं बड़ी मुश्किल से मिल पाती हैं. स्वास्थ्य केंद्र 8 किलोमीटर दूर है और यहां तक पहुंचने के लिए उबड़ खाबड़ रास्ते का सहारा लेना पड़ता है. आपातकालीन स्थिति में झोलाछाप डॉक्टर ही एकमात्र विकल्प है. जहां तक पहुंचने के लिए इस रेलवे लाइन को पार करना होता है और यह काम पैदल ही हो सकता है।
इस समय प्रशासन के लोग भी हम लोगों को मनाने भारी संख्या में आ गए थे सब लोगों के सामने यह हो रहा था जिसे शासन के लोग भी शर्मिंदा दिखाई पड़ रहे थे बीच-बीच में रेलवे पुलिस के सुरक्षा में लगे लोग हम लोगों का उत्साह वर्धन करते रहते थे और कहीं ना कहीं उनका भी अप्रत्यक्ष समर्थन मिलने लगा था। रेलवे इंटेलिजेंस और मिर्जापुर लोकल इंटेलिजेंस के लोग भी हर रोज जमे हुए थे और पल-पल की खबर शासन को भेज रहे थे। त्यौहार होने के कारण आज जनप्रतिनिधियों की तरफ से कोई नहीं आया शाम होते होते प्रशासन के लोग जरूर पहुंचे और उन्होंने होलिका नहीं जलाने की बात का परीक्षण किया. उन्हें भरोसा नहीं था वास्तव में बहिष्कार हुआ है। रेलवे माधव सिंह के सीनियर इंस्पेक्टर घर में जाम पाने के कारण दुखी थे उन्होंने बताया कि छुट्टी लेकर आधे रास्ते तक जा चुके थे कि आप लोगों के भूख हड़ताल पर बैठने की खबर मिली तो वापस लौटना पड़ा. मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी उनसे काफी नाराज हैं क्योंकि उन्होंने त्यौहार पर आने का वादा किया था।
रोज की भांति एक बुजुर्ग अखबार विक्रेता भोर में हम लोगों की छपी खबर सबसे पहले धरना स्थल पर अखबार के माध्यम से बताते और अखबार दिखाते लेकिन अखबार नहीं देते थे चूँकि उनके जो ग्राहक थे, उसके संख्या के आधार पर ही अखबार मंगाते थे. त्यौहार का दिन होने के कारण आज कोई खबर लेने नहीं आया क्योंकि अगले दिन का अखबार छुट्टी के कारण नहीं छपना था। लेकिन मैं व्हाट्सएप पर प्रेस विज्ञप्ति सभी अखबारों को जरूर भेज देता था। भूख हड़ताल के छठवें दिन यानि दिनांक 11/03/2020 बसपा के पूर्व जिला अध्यक्ष कुंज बिहारी गौतम जो कि ग्रामसभा गडौली के ही निवासी थे, प्रगतिशील मानव समाज पार्टी के नेता मुसाफिर बिंद, कृष्णा बिंद भी समर्थन में पहुंचे. इसी बीच भदोही जनपद से चलकर समाज सेविका अनीता जी भी दोपहर में भूख हड़ताल को समर्थन देने आई. अनीता जी के गर्दन शायद कुछ खराबी थी तो सपोर्ट के लिए कुछ लगा रखा था. पहली बार किसी महिला नेतृत्व का समर्थन बाहर से मिला था. बताते चलें कि पूरा अनशन महिलाओं के संख्या बल पर ही चल रहा था और उनकी संख्या सबसे अधिक रही। अपने बीच किसी महिला नेता को देखकर महिलाएं काफी उत्साहित थीं. अनीता जी का वक्तव्य आम भाषा में था, उसके बाद एक-एक करके कई औरतें अपनी बात रखने को खड़ी हुई. इन सबके बीच में मिर्जापुर के क्षेत्राधिकारी सदर और एस.डी.एम सदर जो कि पूर्व में भी आ चुके थे, उनका आगमन हुआ. उन्होंने बताया कि हमारी बात पत्रक के माध्यम से रेलवे को भेज दी गई है और जिलाधिकारी महोदय गंभीरता से लगे हुए हैं लेकिन हम लोगों ने अपनी लिखित आश्वासन की मांग फिर दोहराई और कहां कोई बड़ा जिम्मेदार जब तक नहीं आता तब तक हम अपनी आखिरी सांस तक बैठे रहेंगे। हम अपनी मांग पर अड़े रहे. हम उन अधिकारियों पर कैसे भरोसा कर लेते जो छोटी-छोटी बातों के लिए हम लोगों को महीने दौड़ाते हैं।
समाजवादी पार्टी के मिर्जापुर जिला अध्यक्ष देवी प्रसाद चौधरी, सुभाष यादव और रीवा मध्य प्रदेश के सपा जिलाध्यक्ष गुलाब यादव समर्थन में पहुंचे। भूख हड़ताल के 6 दिन मजबूती के साथ बीत जाने के बाद मामला तूल पकड़ने लगा और राजनीतिक पार्टियों ने मामला अपने स्तर से समर्थन देना शुरू कर दिया. जिस कारण प्रदेश सरकार किसी भी प्रकार आमरण अनशन पर बैठे लोगों को समझा-बुझाकर आश्वासन देकर उठाने के लिए अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भेजना शुरू कर दिया। समाजवादी पार्टी के एम.एल.सी राजपाल कश्यप बसपा से, एम.एल.सी सुरेश कश्यप, बसपा नेता अरविंद पासवान चंदौली, सपा नेता राहुल यादव, सुनील कश्यप शामली जिले से, अनुराग पटेल, अवनीश पटेल वाराणसी, आदि लोगों ने फोन और फेसबुक ट्विटर के माध्यम से लगातार सरकार से सवाल पूछना शुरू किया।
3:00 बजे के करीब सरदार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर आर.एस पटेल अपनी पूरी टीम के साथ समर्थन देने पहुंचे. सरदार पिछले सालों से पिछड़ों दबे कुचले की हक अधिकार के लिए लगातार संघर्ष कर रही है. इसी क्रम में उन्होंने कई ऐसे जन मुद्दे उठाए जोकि इस सरकार में हर किसी के बस की बात नहीं थी। डॉ आर एस पटेल ने कहां कि यदि आप लोग चाहते हो कि जल्द सुनवाई हो तो रेलवे ट्रैक को जाम कर दो और मैं खुद अपने साथियों सहित जिम्मेदारी लेता हूं कि जो भी कार्रवाई होगी मैं अपने पर लेता हूं. उन्होंने हवाला दिया की बनारस के हरदत्त पूर्व स्टेशन के पश्चिमी छोर पर भी यही समस्या थी तो हम लोगों ने मिलकर जाम कर दिया और मजबूरन 12 को अंडर पास बनाना पड़ा। कुछ हद तक हमारे साथी भी इस पर राजी हो गए और उन्होंने दो दिन और देखने के बाद यह कदम उठाने पर अपनी सहमति जताई जिस पर सरदार सेना ने पूरा समर्थन देने का वादा किया ।
शाम के 5:00 बजे के करीब विद्या आश्रम सारनाथ से सुनील सहस्त्रबुद्धे, चित्रा राय और खान साहब हमारे अनशन स्थल तक आए । लोक विद्या का दर्शन और वहां की किताबों से मैंने बहुत कुछ सीखा है. समय-समय पर मुझे मार्गदर्शन मिलता रहा है. सुनील सर के पास आंदोलनों का एक बहुत बड़ा दर्शन है, उन्होंने परंपरागत व्यवसाय करने वाले लोगो पर बहुत काम किया है। मैं लगातार नजर बनाए रखे थे और आज भी उन्होंने अपने कुछ पत्रकार साथियों को जोकि बड़े अखबारों में बड़े पद पर थे, उनसे बात किया. जिसके कारण ही हमारी खबर जिले से निकलकर प्रदेश के पन्ने पर पहुंच पाई. उनकी उपस्थिति हजारों लोगों का समर्थन था जो कि जमीनी मुद्दों पर आम जनमानस की लड़ाई लड़ रहे थे। रात में करीब 11:00 बजे के आसपास बोलोरो गाड़ी आती दिखाई दी जिसमें कांग्रेस पार्टी के प्रदेश महासचिव मनोज यादव अपने सहयोगी अनिल यादव के साथ धरने में समर्थन देने पहुंचे। उनमें पार्टी स्तर से हर संभव मदद का आश्वासन दिया और संसद में बात उठाने की बात कही क्योंकि उस समय संसद का सत्र चल रहा था। भूख हड़ताल पर बैठे साथी सुखराज यादव और मुकुंजन बिंद जो कि 70 साल के बुजुर्ग थे, उनकी हालत थोड़ी बहुत खराब हो रही थी. हम लोगों ने तय किया था कि यदि आने वाली सुबह उन्हें दिक्कत होगी तो अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा। ऑरेंज फ्लेवर ग्लूकोस पानी का मिश्रण पिछले 6 दिनों से पिया जा रहा था। अगली सुबह दिनांक 12 /3/ 2020 को भूख हड़ताल का सातवां दिन बीत चुका था अभी तक कोई संतोषजनक वार्ता करने हमारे बीच नहीं आया था.
हर रोज की तरह भीड़ बढ़ती जा रही थी. दोपहर में प्रगतीशील मानव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेमचंद बिंद अपने समर्थकों संग, अनशन स्थल पर पहुंचे. उनके समर्थकों के हाथ में पार्टी का झंडा था. प्रेमचंद शुरुआत के दिनों से ही क्षेत्र में लोगों के साथ जुड़े रहे तो उनके आने का लोगों में अलग ही उत्साह था. उनके साथ राकेश बिंद, आर.टी.आई कार्यकर्ता, छट्टम बिंद भी समर्थन देने पहुंचे। बार-बार हम लोगों के पास थाने से कछुआ थाना अध्यक्ष का फोन आ रहा था कि आप लोग किस प्रकार संतुष्ट होंगे और किस अधिकारी के आने से भूख हड़ताल समाप्त करेंगे क्योंकि थानाध्यक्ष के ऊपर पूरी जिम्मेदारी होती है और जिले के सभी अधिकारियों के लिए हमारा भूख हड़ताल सर दर्द बना हुआ था.
सूचना मिली की मिर्जापुर ए.डी.एम एस.पी और अन्य अधिकारी आने वाले हैं। इसी बीच सुखराज यादव और मुकुंदन बिंद की तबीयत बिगड़ गई, जिसकी सूचना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कछवां को दी गयी. एंबुलेंस से उन दोनों लोगों को इलाज के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया. अब जनता पहले से ज्यादा आक्रोशित थी. आगे विरोध की बड़ी संभावना बनने लगी थी. लोग रेलवे पटरी के अतिरिक्त बगल के हाईवे को भी जाम करने की योजना बनाने लगे। थानाध्यक्ष बार-बार हम लोगों से निवेदन कर रहे थे की धरने को समाप्त किया जाए लेकिन अब बात बहुत दूर तक पहुंच चुकी थी तो हमारा वापस जाना मुश्किल था। दोपहर में रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी इंजीनियर आर.पी.एफ के वरिष्ठ अधिकारी, मिर्जापुर के शासन प्रशासन से वरिष्ठ लोग, रेलवे बोर्ड के सदस्य अजय उपाध्याय जोकि विजय भाजपा के वरिष्ठ नेता भी थे, उनके साथ भूख हड़ताल स्थल पर पहुंचे. कुल मिलाकर हम अपने लिखित मांग के आश्वासन पर ही टिके रहें ।
रेलवे बोर्ड के सदस्य अजय उपाध्याय ने हमारी मांगे मान ली और सबके सामने लिखित आश्वासन दिया. अंडरपास बनाने पर सहमति बनी। जिसमें हम लोगों ने चेतावनी दी थी कि यदि 1 महीने के भीतर निर्माण कार्य शुरू नहीं होगा तो पुनः हम लोग अगला कदम उठाने के लिए बाध्य होंगे। इस प्रकार उस दिन कुल 4 पत्रक वरिष्ठ अधिकारियों ले लिया, जिसकी रिसिविंग हम लोगों को दिया और मैंने जनता से राय मांगी तो लोगों ने भी एक स्वर में हामी भर दी। जैसा कि किसी भी धरने को समाप्त करने का एक तरीका होता है की धरना समाप्त कराने वाला लोगो जूस पिलाकर घोषणा करता है. मगर आश्चर्य की बात थी कि रेलवे बोर्ड के सदस्य या उपस्थित अन्य अधिकारियों ने इसकी भी जहमत नहीं उठाई. बाद में मैंने अपने सहयोगियों से कहा तो शर्मिंदा हो कर अधिकारियों ने पानी और जूस की व्यवस्था की।
भूख हड़ताल समाप्त किया गया और हजारों की संख्या में लोगों ने भूख हड़ताल पर बैठे लोगों का जयकारा करते हुए रैली निकाली पूरे गांव मानव त्यौहार का माहौल बन गया. होली पर जो लोग एक दूसरे को रंग नहीं लगाए थे, वह आपस में अबीर लगाकर गले मिल रहे थे. ऐसा लग रहा था कि मानो कोई जंग जीती हो और सैनिकों का सम्मान हो रहा है। अगले दिन रेलवे के बड़े अधिकारी डीआरएम उस जगह का निरीक्षण करने इंजीनियरों के साथ पहुंचे हम लोगों ने उनसे वार्ता की तो उन्होंने जगह दिखाई जहां से अंडरपास बनना था। यह मुद्दा 2 दिन बाद देश की सबसे बड़ी पंचायत, संसद में मिर्जापुर के सांसद अनुप्रिया पटेल ने उठाया, जिसका वीडियो आज भी लोगों के पास है।
आज की खबर प्रकाशित होने के बाद लगभग 5 महीने बीत चुके हैं लेकिन वहां पर एक ढेला भी नहीं रखा गया. संबंधित अधिकारियों और रेलवे बोर्ड के सदस्य से हम लोग जब भी सवाल करते हैं तो वह कोरोनावायरस का हवाला देकर बात टाल देते हैं, जबकि रेलवे का काम लगातार चल रहा है।