मैं नवी मुंबई में रहती हूँ. कुछ समय पहले में एक नामी अंग्रेजी अखबार में काम करती थी. गर्भावस्था के बाद मेरा बच्चा ऑपरेशन से हुआ, जिसके कारण मुझे कुछ दिन और छुट्टी की जरूरत पड़ी. लेकिन मुझे निकाल दिया गया.
मीडिया जगत में महिला पत्रकारों के साथ बहुत पक्षपात होता है. उन्हें उन्कि शादी के बाद, और बच्चे होने के बाद, आदमियों से कम आँका जाता है. उनकी सैलरी कम दी जाती है. और खासकर जब आप सप्लीमेंट में काम कर रहे हो तो कंपनी कहती है कि तुम हमारे नहीं हो, न तो वो हमें मीडिया कार्ड देती है न ही ऑफर लैटर. ठेका मजदूर की तरह जब चाहे उठा के फेक देती है. हम कहीं लड़ने भी नहीं जा सकते, क्युन्न्की सबकी यही फितरत है, एक को पता चला कंप्लें किया है, तो दुसरे जगह भी नौकरी नहीं मिलेगी.
पत्रकारों का यूनियन भी कितने लोगों का केस लडेगा, कंपनी के पास पैसा है वकील है, हमारे पास तो कभी कभार ही माँ होती है.