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भूटान देश के बूढों की गाथा

bhutan-monk-07-810          -डेअचें (भूटान से )

भूटान में वृद्धावस्था में अधिकांश लोगों का समय आमतौर पर या तो माला जपते हुए बीतता है, या फिर मंदिर-देवालयों में परिक्रमा कर इष्ट-देवों को प्रसन्न करते हुए. उम्र के साथ इश्वर के प्रति आस्था का बढ़ना एक सहज प्रक्रिया है. भूटान के अधिकतर नागरिक बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं, अतः लोगों की, विशेष तौर पर उम्र के ढलते पड़ाव पर पहुँच गये व्यक्तियों के जीवन में धर्म अत्यंत विशेष महत्त्व रखता है.

अन्य समुदायों की तरह भूटानी समाज भी वृद्ध व्यक्तियों के अनुभव और सूझ-बूझ को आदर भाव से देखता है, और घर के मुखिया और मैन-मुटाव दूर करवाने वाले सलाहकार के रूप में पारिवारिक-सामाजिक इकाई का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. यही कारण है कि वहां बुज़ुर्ग समाज इज्ज़तदार जीवन व्यतीत करता है. परन्तु, आधुनिकरण, शहरीकरण और पाश्चात्य संस्कृति की आंधी ने भूटानी पारिवारिक इकाई को भी अपनी चपेट में ले लिया है, और वृद्धावस्था बदलते पारिवारिक ढांचे, पलायन और बदलती जीवनशैली के बीच खुद को असहाय खड़ा पा रही है.

चूँकि स्थानीय लोग अधिक संख्या में शहरों की ओर कूच कर रहे हैं, इसलिए घर के बुज़ुर्ग प्रायः ही गाँव में पीछे छूट जाते हैं. अपने भरण-पोषण की संपूर्ण ज़िम्मेदारी वृद्धावस्था में भी उनके कन्धों पर ही आ पड़ती है. नगर-शहरों में एकल परिवार की संस्कृति सुरसा की भांति संयुक्त परिवारों को निगल रही है. ये बदलती परिस्थितियाँ परिवार में बुजुर्गों की अहमियत तो कमतर करती जाती है, जिसके कारण पारिवारिक इकाईमें उनका स्था महज़ एक विकल्प बनता जाता है. यही कारण है कि उनकी बेबसी के साथ ही जीवनयापन के लिए उनकी आश्रयता दिन-पर-दिन बढती जा रही है. पत्रकार नेम्बो नामग्येल के अनुसार, “हालाँकि भूटानी लोग ‘कुल राष्ट्रीय प्रसन्नता’ (ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस) के इकाई स्तर पर स्वयं का मूल्यांकन करते हैं और समता,न्याय इत्यादि का दम भरते हैं, परन्तु समाज का एक छोटा सा तबका ऐसा भी है जो प्रगति की इस दौड़ में बिना सहायता के भाग नहीं ले सकता. यद्यपि गांवों में अभी भी बड़े-बुजुर्गों की ज़रूरतों का मिलजुलकर ध्यान रखा जाता है, पर कानूनी तौर पर कुछ ऐसी नीतियाँ लागू करना अत्यावश्यक है जो समाज के इस वर्ग को स्वाभिमान का जीवन जीने की सुविधाएं उपलब्ध करवा सकें”.

अनेक गैर-सरकारी संस्थाएँ भारत समेत बहुत से देशों में वृद्ध नागरिकों के हितों के लिए अनथक कार्य कर रही हैं. वर्ष 2007 में पारित Maintenance And Welfare of Parents and Senior Citizens Act of India के अंतर्गत बुजुर्गों के रहन-सहन और उनसे जुड़े हितैषी कार्यों के लिए सरकार संस्थान उपलब्ध करवाती है, जिसमें भोजन व्यवस्था, कपड़े, रहने के लिए बसेरा और उपचार इत्यादि शामिल रहता है. परन्तु, भूटान में ऐसा कुछ प्रावधान नहीं है. कुछ संस्थाएँ बुजुर्गों को लाभ पहुँचाने हेतु कुछ मुद्दों पर काम तो कर रही हैं, पर ऐसी कोई नहीं है जिसने उनकी समाजिक सुरक्षा का ज़िम्मा उठाया हो.

बेहतर चिकित्सकीय सुविधाओं के चलते लोगों की औअत आयु भले ही बढ़ गयी हो, पर वृद्धावस्था में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ आम बात है. अधिकतर वृद्ध लोग कम से कम एक बीमारी से तो जूझते ही पाए जायेंगे. हेल्प-ऐज इंडिया के तथ्यों के अनुसार, बुजुर्गों द्वारा अनुभव की जाने वाली कुछ परेशानियों में बिगडती सेहत, आर्थिक असुरक्षा, अकेलापन, दुर्व्यवहार, खालीपन, डर और बुढ़ापे के प्रति शंका प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं.

डिगनिटी फाउंडेशन में काम करते हुए पहले ही वर्ष में हमने बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार पर एक सर्वे करवाया, जिसके नतीजे चौंका देने वाले निकले. परिणाम के अनुसार, बुजुर्गों के साथ अक्सर उनके घरवाले या नजदीकी रिश्तेदार ही सबसे अधिक दुर्व्यवहार करते हैं. भावात्मक रूप से ठेस पहुँचाना और उपेक्षा सर्वाधिक प्रचलित थे, जबकि स्वस्थ्य सुविधायें और ज़रुरत के सामान मुहैया न करवाना भी काफ़ी घरों में देखा गया. अधिकतर बुज़ुर्ग वेलफेयर एक्ट के अंतर्गत मिले गये अधिकारों के बारे में कुछ जानते ही न थे.

भूटानी समाज में आदर्शों को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है. वृद्धों के अनुभवों से सीखना और उनको आदर व स्नेह से रखना हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है. ये आदर्श केवल घरों ही नहीं, अपितु पाठशालाओं में भी सिखाये जाते हैं. वहां किसी के मन में घर के बुजुर्गों को वृद्धाश्रम रखने का विचार नहीं आता, और न ही जीवन के संध्या काल में उन्हें बेघर छोड़ दिया जाता है. यही कारण है कि भूटान में इस समस्या से दो-चार होनेके लिए वृद्धाश्रम हैं ही नहीं! केवल कुछ बौद्ध मठ और संस्थाएँ असहाय बुजुर्गों को भोजन और छत मुहैया कराती हैं. चूँकि ये समस्या से भूटानी समाज के लिए नयी है, इसलिए इससे जूझने के लिए फिलहाल कोई पुख्ता सरकारी कार्यक्रम या नीतियों का निर्माण नही किया जा सका है.

इस विषय पर बातचीत करने पर लोगों के वृद्धाश्रम शुरू करने पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ थीं. उसके पक्षधरों का कहना था कि बुजुर्गों में बेघर होने की समस्या को सुलझाने के लिए ऐसे किसी उप्पे की सख्त आवश्यकता है. असहाय वृद्धों की बढती संख्या और उनके साथ दुर्व्यवहार की करुण स्थिति में ये वृद्ध-संस्थाएँ उन्हें आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा और स्वाभिमान भी दिलवा सकती हैं. वहीँ, इस विचार से असहमति रखने वाले लोगों का मानना है कि भूटान के नागरिक सद्भावना से ओत-प्रोत हैं और समाज के बुजुर्गों का भली-भांति ध्यान रखने में सक्षम हैं. वृद्धावस्था में असुरक्षा और दुर्व्यवहार की समस्या अभी उस भयावह स्तर पर नहीं पहुंची है कि उसका संधान वृद्धाश्रमों में ढूँढा जाए. भूटानी समाज में हर नागरिक को सम्मानित स्थान मिलता है, और अभिभावकों और बड़ों का सम्मान करना बौद्ध धर्म का एक अनिवार्य अंग है.

पक्ष और विपक्ष के इन्ही विचारों के बीच आज सर्वाधिक आवश्यक है परिवेश में आ रहे बदलाव को समझना और स्वीकार कर लेना. शायद यहीं से समाधान की नींव रखी जा सकती है.
संवाद – मोहिनी मेहता

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