भारत विश्व के लगभग १९ प्रतिशत बच्चों का घर है. राष्ट्र की जनसंख्या के एक तिहाई से भी अधिक, लगभग ४४० मिलियन बच्चे१८ वर्ष की आयु से कम है. बच्चों की जनसंख्या भारत मे अधिक है और इस अधिकतम बच्चों की जनसंख्या के साथ ही यह शोषण, दुर्व्यवहार और उपेक्षा जैसे ज़ोखिमो से घिरे हुए है. और राष्ट्र मे बाल लैंगिक शोषण से सम्बंधित जानकारी तो पहले से ही बहुत कम है.
भारत ने शिक्षण, स्वास्थ्य और विकास जैसे समस्याओ की समाप्ति के लिए पहले ही कई कदम उठा चुके है, परंतु अब बाल संरक्षण की ओर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है. विभिन्न प्रकार के बाल शोषण बच्चों को जोखिम भरे परिस्थिति मे धकेल रहे है और यह प्रथमतः नकारात्मक रूप से बच्चों के सर्वांगीण विकास पर और उसके बाद राष्ट्र के भविष्य पर असर करेगा.
विभिन्न प्रकार की सरकारी व्यवस्थाएँ और भारत सरकार बच्चों से संबंधित समस्याओ की ओर ध्यान केंद्रित कर रहे है तथा एक नए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की निर्मिती हुई है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने बाल संरक्षण समस्या से संबंधित कई प्रमुख कदम उठाए है. उदाहरणार्थ: बाल अधिकार संरक्षण राष्ट्रीय आयोग की स्थापना, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम २००० की सुधारना, बाल विवाह अवरोध अधिनियम, १९२९, समेकित बाल संरक्षण योजना का प्रारंभ और लैंगिक अपराधो से बालको का संरक्षण अधिनियम, २०१२. परंतु अभी भी इस बाल संरक्षण संस्था, नीतियों, कार्यक्रम और सभी स्तरपर अमल को लेकर कई प्रमुख कमियां और अंतराल है. प्रमुखतः बाल लैंगिक शोषण के लिये “POCSO” अधिनियम मौजूद होने के बावजूद भी इस अधिनियम मे काफी सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
जहाँ राष्ट्र मे ४०% जनसंख्या १८ वर्ष से कम आयु की श्रेणी मे आते है और २००७ मे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संचालित एक सर्वे यह प्रकाशित करता है कि ५३% बच्चे कुछ प्रकार के लैंगिक शोषण या अन्य के अधीन है. और यह आंकड़ा दर्शाता है कि “POCSO” जैसे अधिनियम के उचित परिपालन की राष्ट्र को कितनी अत्यावश्यकता है, न कि केवल आज के लिये बल्कि भविष्य मे बाल लैंगिक समस्याओं के निराकरण के लिये भी. बाल संरक्षण की समस्या को अधिक प्रभावशाली तरीके से सुलझाने के लिये महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा अन्य विभाग जैसे की ग्रामीण विकास, शहरी मंत्रालय, कानूनी मंत्रालय, गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं कुटुंब कल्याण, सूचना और प्रसारण जैसे पहलू के मध्य कड़ी (लिंकेज) होना अत्यावश्यक है. इसी के सामांतर विविध हितधारकों का जैसे पोलीस, सरकारी अभियोजक, सरकारी अस्पताल, बाल संरक्षण अधिकारी, विधि अधिकारी, परिवीक्षा अधिकारी, गैर सरकारी संस्थाएं जो बाल संरक्षण के लिये काम कर रही है, बाल कल्याण समिति, किशोर न्याय बोर्ड, विशेष अदालत का माइक्रो से मॅक्रो स्तर तक इनके बीच समन्वयक होना चाहिए.
सभी तथ्यो और स्पष्टीकरणो को ध्यान मे रखते हुए यह कहा जा सकता है कि बाल संरक्षण और बाल लैंगिक शोषण समस्या को विस्तृत तौर पर समझने की आवश्यकता है. व्यवस्था और हितधारको के साथ काम करने से पहले यह जनना जरूरी है कि इन्हे इस विषय के बारे मे कितनी जनकारी है?, यह किस तरह इन प्रकार के मामलों को सुलझते है? और इस प्रकर की समस्याएं सुलझते समय कौन सी समस्या आती है? इन सभी मुद्दो को समझने के लिए तथा उचित अमल प्रक्रिया के लिए शोध अध्ययन की आवश्यकता है. जिसके निष्कर्ष द्वारा कमी का ज्ञात किया जा सकता है तथा बाल संरक्षण कार्य प्रणाली मे सुधारना लाया जा सकता है.