जो लोग पुरुष और महिला लिंग के दोहरे मापदंड में नहीं समां पाते, क्या उन्हें समाज में इज्जत से रहने का कोई हक नहीं है ? क्या समाज उन्हें व्यक्तिगत, सार्वजिनिक और राजनितिक जगह दे नहीं सकता ?
प्रवाल्लिका कि हत्या १७ जनवरी को हैदराबाद में हुई, जिसके बाद उसके दोस्त को पुलिस ने पूछताछ के नाम पे सताया और धमकाया. पुलिस ने उसे कड़ाके कि ठण्ड में नंगा कर उस पर अत्याचार किये, और आज भी उसकी तबीयत ख़राब है.
प्रवाल्लिका एक दूर दराज गाँव के गरीब घराने से थी. एक ग्रेजुएट होने के बावजूद उसे अपना गुजारा भीख मांग के और अपने शरीर को बेच के करना पड़ता था, सिर्फ इस कारण से कि वो न तो स्त्री थी ना ही पुरुष.
तेलंगाना हिजरा अंतर्लिंग समिति(THITS) ने इस का कड़ा विरोध किया और लोकल कला कॉलेज में प्रदर्शन करके दोषियों को सजा के साथ नालसा निर्णय का सम्मान करने को कहा.
अप्रैल २०१४ को सुप्रीम कोर्ट के नालसा निर्णय में ये कहा था कि अब कोई व्यक्ति खुद ही अपना आप को पुरुष, स्त्री या इसके बाहर का घोषित करके अपने कानूनी प्रमाण बनवा सकता है, जिसमें उसे सामाजिक, राजनितिक और आर्थिक बराबरी संविदान के तहत मिलेगी.
सरकार को हर व्यक्ति और खासकर हिन्जरो को, हर फॉर्म में चाहे वो विद्यालय हों या नौकरी, उनके लिए जगह बनानी होंगी.
अब इस आदेश का पालन करना और लोगों को जागरूक करना सरकार की जिम्मेदारी बनती है. हमारे देश में आज भी हिन्जरो को सही सम्मान नहीं दिया जाता, चाहे वो सरकारी वयवस्था हो या निजी.