छारा समाज पर पुलिस का हमला
26 जुलाई की रात छारा समाज पर हुए हमले की तथ्य खोज ( fact finding) रिपोर्ट
खोज करने वाली टीम : द सभा न्यूज़
संदीप घुसाले :
शेफाली सैनी
विजिट की तारीख
1 अगस्त 2018
26 जुलाई की रात, छारानगर के समुदाय के लिए, बाकी गुजरात वासियों की तरह नहीं थी. कुछ इस तरह भयानक थी की पूरा मोहल्ले का छारा समाज डर से जाग उठा और लोगों की भाग-दौड़ से पुरे मोहल्ले में हंगामा मचा गया था. कुछ देर मैं पता चल गया की, पुलिस छारानगर में तोड़-फोड़ कर रही हैं और लोगों को बिना वजह पीट रही हैं.
आतिश, बुधन थिएटर के साथ जुड़े एक्टर, एक्टिविस्ट और विद्यार्थी भी हैं जो खुद छारा समाज से आते हैं. इनका कहना हैं की, रात को 12.30 को इनके घर के बाहर कुछ कांच टूटने की आवाज से नींद से जाग उठे. जब आतिश घर से रात को बाहर आते हैं, तो देखते हैं की, गली के बहुत सारे लोग रस्ते पे आके खड़े हो गए हैं.
“आतिश: लोगों ने मुझे बताया की छारानगर के दो रहिवासियों का PSI मोरे के साथ झगड़ा हुवा हैं, जिसके बाद PSI मोरे ने बहुत बड़ी पुलिस फोर्स छारानगर में बुला ली. रात एक बजे तक कम से कम २०० पुलिस छारानगर को घेरे हुए थी. मैंने रोक्सी ( जो की जर्नलिस्ट हैं) को फ़ोन कर इसकी खबर दी और रोक्सी के कहने पे मैंने पुलिस कन्ट्रोल रूम को हाथों-हाथ फ़ोन कर खबर दी और उनसे यह हंगामा रोकने को कहा. इसी दौरान मेरे एक करीबी दोस्त ने फ़ोन कर बताया की उसकी कार के विंडो का कांच पुलिस ने तोड़ दिया. इसी समय मेरे चाचा से फ़ोन पर बात हुई तब पता चला की पुलिस का लोकल लोगों की गाड़ी तोड़ते वक्त फोटो निकालते समय पुलिस ने चाचा को बहुत बुरी तरह से मारा है, मैं उनकी घर की तरफ भागा और देखा तो मेरे चाचा जखमी हालत में थे. लेकिन जख्मी हालत में वो निकाले फोटो मीडिया को मोबाइल से भेज रहे थे. उसी समय मुझे पता चला की पुरे छारानगर में पुलिस फ़ैल गयी हैं. मुझे मेरे छोटे भाई का फ़ोन आया जिसने उसने बताया की उसकी चार पैयों की गाड़िया पुलिस ने तोड़ कर तहस-नहस कर दी हैं. यह माहोल देख मैंने और एक बार कन्ट्रोल रूम फोन किया और छारानगर के रहिवासियों की मदत करने की गुहार की, जिसमे पुलिस कंट्रोल रूम से यह बताया की मदत करने वाले पुलिस की गाड़ियाँ पास नहीं हो पा रही हैं, क्यों की छारानगर पे पहले से ही बहुत सारी पुलिस की गाड़िया हैं, इसके बाद मैंने चाचा को अबुलेंस में अस्पताल भेजा. जब मैं अपने घर की तरफ मूडा तब देखा की पुलिस रहिवासियों की गाड़िया तोड़ रही थी. पुलिस ने मेरे उपर (आतिश) भी हमला बोल मुझे मारना शुरू किया साथ ही मेरे कपडे फाडे और मुझे पुलिस की गाड़ी की तरफ खीच के लेकर जा रहे थे. मैं उनको बताता रहा की, “मैं चोर नहीं छात्र हु”, इसी के साथ बुधन थिएटर के साथ मिल थेटर करता हु. पर उन्होंने एक ना सुनी. मैं यह बार बार सवाल पूछता रहा की मुझे अरेस्ट क्यों किया जा रहा हैं, पर जवाब में मुझे बस जोर के लात और घुसे मारे गए और पुरे रस्ते में मुझे मारते हुए लेके गए और पुलिस जीप में भर दिया, जब करीब 2.45.am बजे होंगे. सुबह तक पुलिस ने 29 छारानगर के लोगों को लॉकउप में लाके डाल दिया था. सुबह जब हमने पानी माँगा तो हम 29 लोगों को मिलाके 1 लिटिर का पानी बोतल मिला, जिसको हमने थोडा-थोडा कर आपस में बाँट कर पिया.”
इसी समय के आस-पास, चंद्रभान घांसी, जो छारानगर में एक अपनी छोटीसी चाय की दूकान चलाते हैं, वो अपने घर में नींद में थे, जब उनका दरवाजा जोर बजाया गया, जब चंद्रभान घर से बहार निकले तो दरवाजे पे पुलिस थी, पुलिस ने उन्हें बहार खीच दौड़ने के लिए कहा और और जब दौड़ने लगे तो उन्हें पकड़कर बहुत बुरी तरह मारा जिससे उनके हाथ को अंदरूनी चोट आई. जिसके वजह से उनकी दूकान एक हफ्ते तक बंद रही. यही नहीं अस्पताल का अलग से खर्च भी पड़ा, फिर भी उसी चोट के साथ अब चंद्रभान ने फिर से दूकान खोला, क्यों की घर पे और कोई कमाने वाला नहीं हैं.
कुसुमबेन, उम्र 79, अपने घर पर सो रहे थी, जब पुलिस यह तबाही मचा रही थी, जब पुलिस ने जोर से दरवाजा पिटा दरवाजा खोलने पर पुलिस ने कुसुम बेन और उनकी बेटी को मुक्का मार हमला किया जिसके निशान उनके शरीर ताजा थे और मुह पे चोट आई, यही नहीं बल्कि, कुसुम बेन के घर में घुसकर उनके घर का दरवाजा और अलमारी तोड़ी गयी और गालियाँ दी गयी इस वक्त कोई भी महिला हवालदार साथ में नहीं थी.
जहा पे आम इंसान ना बच सका वहां पे वकील, डाक्टर, और आर्मी अफसर के घर के बाहर की गाड़िया और सामान को भी ना छोड़ा गया, लोग जब अपना सामान बचाने के लिए बाहर निकले तो पुलिस ने उनको भी पिटा. 26 जुलाई की रात कुल मिलाके 29 लोगों को पकड़ पुलिस ने जेल में भर दिया, जिनके उपर कुल मिलाके 11 केसेस लगाये गए, जिसमे दंगा करना, लूट करना, और सरकारी अफसर पे हमला करना जैसे झूटे दावे किये गए, ताकि पुलिस की यह हमले का सच बहार ना आ सके.
पुलिस स्टोरी में, पुलिस ने अवैध दारू पकड़ने के लिए रेड डाली, और जब उनको 2 लोग मिले तो पुलिस उन्हें अरेस्ट करने लगी उन दो लोगो के साथ पुरे छारा समाज ने पुलिस के उपर हमला किया, जिसके चलते PSI मोरे इन्होने पुलिस की और टुकडिया बुलाई और बहुत सारे घरों में रेडे डाली गई.
परन्तु स्थानीय लोग ये स्टोरी को गलत कहते हैं, लोग कहते हैं की लोगों को तब पकड़ा गया जब वो रात को नींद में थे, और लोग इससे अनजान थे. और in लोगों को पुलिस ने दंगे करना और लूट मचाना तथा पुलिस अफसर पर हमला करने जैसे झूटे जुर्म में जेल में डाला हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार इन 29 लोगों का अवैध दारू बनाने के धंदे से कोई भी ताल्लुख नहीं हैं. बल्कि जितने भी लोग अरेस्ट हुवे हैं वह वकील, डाक्टर, निर्देशक, कलाकार, नुक्कड़ नाटक कलाकार हैं. जो छारा समाज के जाने माने लोग हैं. स्थानीय लोगों के नुसार यह घटना का प्लान PSI. मोरे ( जो उस वक्त शराब पीकर अपनी ड्यूटी निभा रहे थे) यादव. और अस्सितात्न कमिश्नर इनकी वजह से हुवा हैं.
फैक्ट फाइंडिंग टीम 1 ऑगस्ट को छारानगर पोहची, और लोगों से परिस्थितियों के बारे में जायजा लिया. समाज के बीच तनाव था जिसमे हर कोई उन 29 लोगों को रिहा करने की कोशिश में जुटे थे. छारानगर पोहचने के बाद पुरे इलाखे में पुलिस का बंदोबस्त था हर गली के नुक्कड़ पर पुलिस का पहरा था. इससे परिस्थियाँ समज आ रही थी.. ,,,,,,,,छारानगर अहमदाबाद में एक छोटी बस्तियों का समूह हैं, जिसमे 2000 के आस पास परिवार रहते हैं. इससे काफी परिवार छारा (नोम्याडिक और डी-नोम्याडिक ट्राइब) समाज से आते हैं. जिसके वजह से भी इसको छारानगर बोला जाता हैं. छारा के उपर जो चोर या फिर गुनाहगार होने का जो लेबल था उसको अपनी पढाई- लिखाई और कला के माध्यम से फाड़ दिया हैं . क्यों की वकीलों की तादात यहाँ बहुत हैं, जर्नलिस्ट, मूवी मेकर, आर्टिस्ट, नुकड़ नाटक और मेहनत कश्त छारा समाज रहता हैं.
……………कुछ देर बाद गली के रस्ते होकर स्कूल के बच्चों की रैली पुलिस थाना जा रही थी, रैली में हर बच्चे के हाथ में सरकार और पुलिस को सवाल कर रहे हैं, पोस्टर थे जिसमे “क्या हम जनम से गुन्हागार हैं” ?, मैं छारा हूँ, मैं रिपोर्टर हूँ, गुनाहगार नहीं जैसे सवाल पोस्टर पर दिखे. इस रैली में 3 साल से 17 साल के बचों ने भाग लिया था और महिलाओं की उपस्थिति सराहने लायक थी………रैली पुलिस थाना पहुचने के बाद, बच्चों ने आगे आकर कुबेरनगर थाने के पुलिस अफसरों को फुल देकर कहाँ की “हम क्रिमिनल नहीं हैं”. वो बचें पुलिस को फुल देकर अपने समाज से जुडा गुनाहगार का पुलिस का खयाली लेबल तोडना चाह रहे थे. फुल देते-देते बचों ने पुलिस अफसरर R.N वीरानी से बातचीत की जिसमे अफसर वीरानी ने पुलिस की एक्शन को उचित बताते हुए बाते की .
कुछ बचों ने फुल देकर सवाल पूछे, जैसे 7 क्लास का छारा समाज का बच्चा पुलिस अफसर अंग्रेजी में से पूछता हैं की
““The Constitution drafted by Dr . B R Ambedkar, which is kept in Delhi, doesn’t give this much authority to anyone that the Police be allowed to make the doctors, advocates handicapped by beating them up. It is not mentioned in the Preamble. Where is it written in the constitution that we are criminals? Show us that page!”
क्या आपको पता है की इंडियन सविंधान के ,प्रिअम्ब्ल के चेरमेन कोण थे?, सर, डाक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर थे. तो सर आप हमको ये बताओ जो preamble दिल्ली में है, वो बहुत बड़ी किताब है, उसमें ऐसी कोई लाइन लिखी हुई है, या फिर आपको अथोरिटी दियी है की पत्रकार और वकील को मारो ? तो वो पन्ना खोल के हमें दिखाओ !”
— भरी सभा में पूछा सवाल
एक आठवी कक्षा के लड़की का फुल देते वक्त: गुहार
छारानगर के लोग जनम जात से गुनाहगार नहीं, कलाकार होते हैं
एक मेडिकल के छात्र (छारा) का सवाल,
“हमको कोई काम नहीं देता क्योंकि हम छारा समाज से आते हैं. सिन्धी और गुजराती लोगों आसानी से काम मिल जायेगा पर छारा को नहीं”.
अमित चावड़ा, गुजरात प्रदेश कांग्रेस प्रेसिडेंट इन्होने छारानगर भेट दी और स्थानीय लोगों के साथ अपना समर्थन जताया, पर कोई बीजेपी पार्टी से विधायक नहीं मिलने आया. और तो और छारा समाज ने पारंपरिकता से कांग्रेस को सपोर्ट किया था और हाली में ही बीजेपी पार्टी का प्रत्यार्शी चुनकर इस वार्ड से गए हैं.
जिस दिन छारानगर वासियों पर हमला हुवा, इस घटना के बाद, 3000 के आस-पास की संख्या के समुदाय ने शांतता पूर्ण रैली निकाल पुलिस की एक्शन को गलत बताया. यह पिछले कुछ दशकों में पहली बार इतनी भारी संख्या में लोग इक्कठा हुए और रैली में शामिल हुए. घटना के दौरान 29 लोगों को अरेस्ट करने के बाद, उनको सरदारनगर पुलिस थाना के लॉक-उप में रखा गया और अगले दिन जज के घर पे प्रस्तुत किया जहाँ पे उनको जज ने अगले ही दिन साबरमती सेंट्रल जेल में भेजने का आर्डर पास किया.
छारा समाज को क्यों टारगेट किया जा रहा?
एक छोटी स्थानीय 2 लोगों की साथ हुवे घटना को 200 पुलिस बुलाकर छारानगर के समाज के परिवार के उपर छोड़ा गया, यह कही ना कही एक छारा समाज के खिलाफ ताकत का असंतुलन संकेत हैं यहाँ ताकत का तीव्र असंतुलन दिखता हैं जो छारानगर वासियों के खिलाफ हैं. इस चीज का बहुत सारे कारणों में से एक कारण यह हैं की एक गुनाहगार की पहचान के साथ जीना जिसे ब्रिटिशों ने 1871 में क्रिमिनल ट्राइब एक्ट 1871 के तहत क्रिमिनल ट्राइब घोषित किया था.
पहले छारा समाज घुमंतू था, एक जगह से दूसरी जगह जाना और अपने डांस और नुक्कड़ कला में माहिर थे. छारा समाज के आज़ादी को और सिमित करने के लिए ब्रिटिश सरकारों ने उनको ओपन जेल में रखा गया. ऐसे कई जेल में से एक सोलापुर जो महाराष्ट्र में हैं तो दूसरा छारानगर के पास था. छारा लोग कहते हैं की 1952 उनको आज़ादी नहीं मिली थी जब की पुरे देश को मिल गयी थी. जब 1952 में नेहरू जी ने सोलापुर जाकर कांटोंवाली वायर तोड़ ओपन जेल से छारा और क्रिमिनल ट्राइब को आजाद किया था. इन्ही छारा समाज को ओपन जेल के बाहर के जमीन पर ही स्थापित किया गया जिसको आज छारानगर कहते हैं. अब छारा समाज एक जगह स्थायी होने से उनके पेट भरने का सहारा डांस करना और कला प्रदर्शन करना बंद हो गया . जिससे यह लोग दारू बनाने के धंदा और चोरी करने लगे क्यों की ना ही कोई इनको काम देता और ना ही कोई इनके उपर विश्वास दिखता. छारा समाज दारू बनाना इसको भी एक कला मानते हैं जिसकी दें उनको उनके पूर्वजोसे मिली . धीरे-धीरे दारू का धंदे से लोगों को गरीबी बाहर निकलने में मदत की. जो लोग आगे बढे और पढ़ लिख गए उन लोगों ने दारू बनाने के धंदे को पीछे छोड़ दिया. पर सारा छारानगर इससे बाहर ना निकल सका क्यों की, कई जगह पे शिक्षा होने के बाद भी कई छाराओं को नोकरी ना देकर भेदभाव उनके समाज के इतिहास को मध्यनजर रखते हुवे किया गया. छारा समाज के बहुत सारे लोग यह बताते हैं की उनको बहुत सारी जगह पर उनको काम नहीं दिया जा रहा हैं. क्यों की छारा समाज के उपर आज भी अविश्वास दिखाया जाता हैं, और शंका जताई जाती हैं की किसी गलत गतिविधियों में शामिल हैं. यह सब हो रहा हैं छारा को आज भी गुनाहगार समजा जा सकता हैं.
बहुत सालों से छारा समाज का पुलिस के साथ बहुत असमान संबंध हैं. जब किसी आस-पास चोरी हो जाती हैं तो बिना वजह छारा लोगो पकड़ कर सवाल किये जाते हैं. कभी-कभी तो पुलिस छारानगर के पास चेक पॉइंट बना के गाड़ियां चेक करती हैं जिसमे अवैध दार, गाड़ी के कागज और चोरी का सामान चेक किया जाता हैं और यह करते वक्त कोई छारा दिखा तो उसकी ज्यादा चेकिंग की जाती हैं. बहुत सालों से छारा समाज गुनाहगारलेबल के साथ जी रहा हैं. और यह चीज इस समाज में बहुत साधारण बन गयी हैं. इसी लेबल को लेकर छारा समाज को पुलिस के साथ बहुत सारे नेगोसिअशन करने पड़ते हैं. इस में से भी कोई परिवार आर्थिक रूप से आगे बढ़ भी जाता भी हैं तोह भी उनसे ऐसे बर्ताव किया जाता हैं जिससे ऐसा लगता हैं की कोई भी उनको बेईज़त कर सकता हैं.
गुजरात राज्य ने दारू बनाने और पिने पर पाबन्दी मोहन करमचंद गाँधी को नमन करने को लगाई हुई हैं. जिसमे गुजरात राज्य ने अपने राज्य के कानून लोगों को दारू पीने से रोकने के लिए और भी सख्त कर दिए. पर इससे समस्या का हल निकल के नहीं आया पर जिस तारीके से दारू बनायीं जाती हैं और पी जाती हैं उससे परिस्थितियां और भी बत्तर हो गयी. इस तरह के पबंदियोंने उन समाज के उपरबहुत बुरा असर किया जो परंपरा से दारू बनाने को अपनी जिंदगी जीने के लिए उपयोग करते थे. हालाँकि इस कानून से एक और नयी परंपरा का जनम हुआ जिससे पुलिस छारा जैसे समाज के उपर प्रभाव डाल कर दारू बनाने वालों की तरफ से बहुत बड़े पैमाने पे घुस लेते हैं..
छारा जाती के साथ लगने वाला लेबल ही, (जो ब्रिटिश सरकारों की देंन हैं), छारा समाज के साथ होने वाला भेदभाव का कारण नहीं बल्कि यह समाज का भारत के हिंदू धर्म की सरंचना के हिसाब से छारा का स्थान निचा माना जाता हैं. .
अब यह सयोंग की बात तो नहीं हैं की, जिन पुलिस अफसर ने छारानगर में 26 की रात हमला किया उसमे से ज्यादातर पुलिस अफसर हिंदू धरम की उची जाती के हैं. तोह यह घटना किसी भी अट्रोसिटी से कम नहीं हैं जो किसी भी उची जाती के समाज ने नीची जात वाले समाज के साथ किया हैं. फिर कैसे कोई बताएगा की , दो व्यक्ति और पुलिस अफसर के बीच का झगडा पुरे छारा समाज के उपर कैसे आ गिरा और मार पिट दिया. छारा समाज के पीड़ित व्यक्ति इस घटना को मोब-लिंचिंग से भी खतरनाक पुलिस-लिंचिंग कहने लगे हैं. जिस टाइप का लिंचिंग पुरे देश में छारा जैसे समाज के साथ हो रहा हैं.
छारा समाज के लाइवलीहुड का एतिहासिक तौर पर अन्यालिसेस करे तो हमको यह समाज में आएगा की, छारा समाज का राज्य के साथ कैसे सबंध हैं. With the onset of capitalism, the motive of the colonizers in third world countries, was almost always to detach the tribes, indigenous populations from the means of production, restrain them from accessing the resources freely and turn them into laborers for industrial or agrarian development.. छारा समाज शुरुवात से ही घुमंतू रहा हैं, जिसके चलते ना उनका खेती के साथ और नाही बड़ी-बड़ी कम्पनियों में लेबर बनने के साथ सम्बन्ध आया. छारा शुरुवात से ही अपना काम करते थे जिनको आज हम व्यवसायी (enterprenur) कहते हैं थे. इसी तरह छारा समाज ने अपना दर-बसर करने के लिए अपने कला का इस्तेमाल किया, जिसमे नाचना, गाना, एक्टिंग, दारू बनाना, और चोरी करने जैसी चीजे इतिहास में शामिल थी ( जिसको इस समाज के लोग उस वक्त एक कला के रूप में देखते थे). जिसमे बहुत सारे पीढ़ीयोने अपना गुजरा किया. यह एक बहुत ही संघर्ष की कहानी है, जो एक समाज ने अपना बचाव और survive करनेके लिए जो उनके पास कला थी उसका इस्तेमाल किया और अब तक टिके हुए हैं. जिस तरह सरकार और समाज उनको गुनाहगार बोलता हैं, वैसे ना देखते हुए हम छारा समाज को हम एक एक बागी के रूप में देख सकते हैं क्यों की जिस तरीके से इन लोगों ने अपनी कला को इस ब्राहम्निकल समाज में शुरुवात से आज भी सभाल कर रखा और उसमे तरक्की करते गए. सरकार और छारा के बीच का यह संघर्ष जिसमे छारा समाज अपनी काला के दम पर अपने पैर पर खड़ा हैं सरकार की बस कटपुतली बनके नहीं रहे. यह संघर्ष अपने आप में इस समाज को महत्पूर्ण रूप देता हैं. जिस तरीके से छारानगर में वकील, कलाकार,सामाजिक कार्यकर्ता उभरे हैं वह लोग अब सरकार के लिए डर बनकर कर रह गए हैं क्यों की यह लोग जो समाज में बहुत तरिक्की और नाम हासिल कर चुके हैं. वो अपने छारा समाज के नयी पीढ़ी को पढ़ने का सन्देश देते हैं आगे बढ़ने का सन्देश देते हैं. लोगो के साथ रहकर उनको इक्कठा करते हैं एक साथ रहकर अन्याय के खिलाफ लडते हैं.
Figure 1
Figure 2
बुधन थिएटर और छारानगर
बुधन थेटर एक संघटन हैं, जो 1998 में स्थापित हुवा और ज्यादातर छारा समाज के तरफ से चलाया जाता हैं, जो पढ़े-लिखे, होशियार और कला में माहिर लोग शामिल हैं. जो छारा समाज की टैलेंट को समजकर आगे बढ़ने में मदत और मार्गदर्शन करते हैं. जिसमे सरकार और समाज के नामी व्यक्ति भी नहीं कर पाए. बुधन थिएटर में छारा महिलाओं का सहभाग काफी सराहने लायक हैं, इसमें महिला कलाकार हैं जो समाज की परम्पराओं को तोड़ अंतरराष्ट्रिय स्थर पर अपनी कला का प्रदर्शन तक कर आये हैं. 26 को जो हमला हुवा था, उसमे छारा समाज के नामचीन व्यक्ति थे, जिसमे बुधन थिएटर के काफी मेम्बर को भी मारा और पिटा गया हैं. इस थिएटर से जुड़े नामचीन व्यक्ति, दक्षिण छारा जिन्होंने समीर नाम की काफी उम्दा फिल्म बनायी जिसको आलोचकों ने भी सराहा. इन्ही के साथ रहकर बहुत सारे छारा समाज के जवान फिम्ल मेकिंग में अपना हाथ अजमा रहे हैं. वो भी किसी मदत के. ऐसे और भी बहुत कलाकार इस थिएटर के जुड़े हैं जो अच्छे सिंगर और डांस करते हैं. छारानगर हमे कुछ बोर्ड दिखे जिसमे छारानगर के कुछ बच्चे टीवी शो के फेमस डांस कॉम्पीटिशन में भाग लिए थे और वोट करने के लिए गुहार लगा रहे थे.
एक सोचने की बात तो यह हैं की सारा पुलिस थाना बुधन थिएटर और उससे जुड़े लोग को जानता था फिर किस लिए इन कलाकार लोगों के उपर अत्याचार किये गए, क्यों उनको बेईज्ज़त कर मारा पिटा गया, यह भी सोचने लायक सवाल हैं.
समाज में NT/ DNT के उपर बढ़ते हुए अत्याचार
NT/ DNT समाज के उपर होने वाले अत्याचार बस इतिहास में नहीं थे यह हल ही में NT/ DNT पे हुयी हिंसा बताती हैं. एक नया तरीका जो हमारा समाज सिखा हैं वह मोब-लिंचिंग जो ना केवल दलित-मुस्लिम के साथ बल्कि NT/DNT के साथ भी हो रहा हैं. लोगों की धर्म,जात,जगह का इस्तेमाल कर अभी की सरकार उनको आपस में भिड़ना चाहती हैं और उनके बीच एक डर पैदा कर रही हैं जो हमारे समाज के लिए काफी खतरनाक हो सकता हैं.
छारानगर के स्थानीय लोगशांति देवी नाम की एक भिक मांगने वाली महिला के बारे में बात कर रहे थे जो DNT समाज से अति हैं. उसको लोगो की भीड़ ने पकड़ कर मारा. हाली ही में महाराष्ट्र के धुले शहर में नाथ गोसावी जात (DNT) के 5 लोगों को गाँव की भीड़ ने इक्कठा हो पिटा और मार दिया. क्यों की समाज मैं यह अफवाए फैलाई गई थी की वह लोग बच्चा चोर हैं. 2017 में भोपाल, गाँधी नगर स्थित इन्द्रमल बाई (पारधी-DNT) पुलिस के अत्याचार की वजह से अपना जीवन ख़तम किया. लगभग दस पहले ऐसी ही एक घटना भोपाल के इसी स्तःल के आस-पास हुई थी. और जम्मू की असीफा के उपर हुए अनगिनत अत्यचार को कौन भूल सकता हैं जो DNT समाज के बक्करवाल जाती से है. यह तोह कुछ गिने चुने घटनाये थी पर इसकी तादात और लिस्ट काफी बड़ी हैं. जिस तारीखे से NT/DNT के उपर अत्याचार हो रहे हैं, वह ये दिखता हैं की किस तरीके से in समाजो को कोई भी सुरक्षा की सुविधाए नहीं हैं. जिनका कोई ठिकाना नहीं, और नाही कोई जमीन और ना ही खेती. बस एक अलग तरीके का जीवन और संस्कृति ले के चलते हैं. जिस तरीके से सरकार और मीडिया इन समाज को लोगों के सामने रखती हैं, वैसे तो यह समाज और भी कमजोर होता जायेगा जो हमारे समाज के विकास के लिए ठीक बात नहीं हैं.
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छारानगर में अभी के स्थिति में हालात
जिन 29 लोगों को बे वजह अरेस्ट कर लिया था, उनमे से 8 लोगों को 10000 की जमानत पे 1 अगस्त 2018 को बेल मिल गई.और उनका स्वागत पुरे समाज ने छारानगर में रैली निकाल किया जिसके लिए बहुत भरी भीड़ जुडी हुई थी. बाकि लोग अभी भी बेल के इंतज़ार में जेल मैं दिन काट रहे हैं यह घटना से भले ही सरकार और समाज के कुछ गलत ताकतोंने इस समाज का मनोबल कम करने का सोचा होगा. पर अब इसे देख छारा समाज अब एक साथ आकर दहाड़ने लगा हैं. न्याय की मांग करने लगा हैं. लोगों में अब एक साथ आकर लड़ने का जज्बा बढ़ रहा हैं. चाहे वो पुलिस का अत्याचार हो या फिर कोई समाज और सरकार हो.छारा समुदाय, अब उन 22 लोगो की रिहाई की कोशिश कर रहा हैं. जिसके लिए काफी भाग-दौड़ और खर्च करने पड़ते हैं.
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Figure 5 आतिश बेल के बाद अपने साथियों के साथ ख़ुशी जाहिर करते हुए