लीडिया थोमस
विद्यार्थी टाटा सामाजिक विज्ञानं संसथान , मुंबई
कुर्ला पूर्व में ,कसाईवाडा जिसे कुरैशी नगर से भी जाना जाता है, वो अनेक खटीक समुदाय का घर है, जिनमें से अधिकतर लोग मुंबई के वधशाला में काम करते हैं. राष्ट्रपति के द्वारा इस २० साल पुराने बिल पर मंजूरी के उपरांत २ मार्च से हजारों काम करने वाले बेरोजगार हो गए हैं. गौ हत्या पे तो पहले ही प्रतिबन्ध था , अब बैल और बछड़े पर भी प्रतिबंध लग गया है. बहुत सारे लोग जो इस वयवसाय से जुडे हुए हैं , उनकी हालत पहले से ही खस्ता थी, जहाँ उन्हें पानी बिजली मिलना दुष्वार था, अब जब परिवार के पुरुष के पास काम नहीं रहा तब उन्हें रोज के घर के खर्चे निकालने में भी दिक्कत हो रही है.
सुल्ताना कुरैशी अपने सास के साथ रहती हैं, जिन्हें कैंसर है. वो पिछले दस दिनों से दवाई नहीं ले रही हैं. “ पिछले एक महीने से सरकार हमारी सुन नहीं रही है. हमने क्या गलती की जिसका भुगतान हमारे पेट से लिया जा रहा है? ये काम हमारे मर्द अरसों से करते आ रहे हैं. अगर ये कुछ नया काम होता तो हम आसानी से बदल लेते.” ये इन महिलाओं के लिए भी सच है. इनमें से बहुत सारी काम नहीं करती और अपने पति के पगार से ही घर चलाती हैं. ये अरसो से चले आ रहा है. इनके पास कोई दूसरा रोजगार का उपाय नहीं है क्यूंकि इनके पास अनुभव की कमी है.
शम्मी कुरैशी , २५ साल की गृहणी का कहना है -” हमारी औरतें काम नहीं करतीं . वो घर से बहार बहुत कम निकलती हैं . हम अपने पुरुषों से ही जीते हैं. “ पर अब इन महिलाओं का चार दिवारी में रहना मुश्किल हो जायेगा, कारण मौजूदा हालत इनके पतियों और बेटों की है, शायद इसी वजह से वो बात करना चाहती हैं कि वो किस तरह से संघर्ष कर रही हैं. महिलाओं ने मीडिया द्वारा कम ध्यान देने पर भी दुःख जायर किया जबकि उनका समुदाय काफी बड़ा है. इन महिलाओं के लिए अपने बच्चों के खाने का खर्च और बूढी महिलों के लिए दवाइयों का खर्च इस वक़्त निकालना ज्यादा जरूरी है.
यास्मीन कुरैशी, जिनके पति सलीम , वधशाला में काम करते थे, का एक मानसिक रूप में विकलांग १९ साल का बेटा है, जिसे दिल की बीमारी भी है . फैसल , उनका बेटा जो की बात नहीं कर सकता , हमेशा खाने के लिया रोता रहता है. कुछ परिवारों ने अपने बच्चों को स्कूल से भी निकाल लिया है क्यूंकि वो अब फीस नहीं दे पा रहे.
वे काफी संघर्षों से पानी और बिजली का बिल दे पा रहें हैं, और उन्हें वापस इन सुविधाओं को लेने के लिये गैरकानूनी तरीकों से खूब पैसे ऐठे जा रहे हैं. इन महिलाओं ने एक स्वर में ये कहा कि सरकार केवल कह रही है , पर करती कुछ नहीं है.
हाजी बशीर कुरैशी, जो कि कुरैशी समुदाय की लीडर हैं, उन्होंने इस बात को रेखांकित किया की जितना भी ये फैसला राजनैतिक हो, ये केवल मुसलमानों को नहीं बल्कि ३ करोड़ हिन्दू किसानों को भी प्रभावित करेगा, जो अपने बुढे जानवर को बेच कर नए और युवा जानवर खरीदते हैं. धारावी में अनेक नौजवान श्रमिक हैं जो कि चमड़े के वय्पार से जुड़े हैं, वो मुसलमान नहीं हैं, वो भी बेरोजगार हो गए हैं. बहुत बड़ी संख्या हैं उन लोगों कि जो कि इस फैसले से प्रभावित हुए हैं. उन्होने इस खतरे पर भी जोर डाला जो कि इतने सारे लोगों के बेरोजगार होने पर होगा, इससे अपराध और असामाजिक ताकतों को बढ़ावा मिल सकता है.” लोग परेशानी में सजा के बारे में नहीं सोचते “.
सरल तौर में समझा जाए तो , बीफ का धंधा किसान के आधार पर शुरू होता है, जो कि अपने बूढ़े जानवरों को बेच कर युवा जानवर खरीदता है. वधशाला में धंधा करने वाला अपने लिए मजदूर रखता है जो काटने का काम करते हैं. जो काम की चीजें हैं वो उन्ही उध्योगों में भेज दिया जाता हिया जैसे हड्डी, खून. ज्यादातर मॉस निर्यात करने वाले कंपनियों में जाता है. संपाडा नवी मुंबई में, ऐसी अनेक कंपनियां हैं जैसे अल्लाना , अल कबीर और अल्तमस जो कि निर्यात करती हैं. मजदूर करीबन ३०० से 350 हर फैक्ट्री में हिं, जो की कटने से लेके पैकिंग और सफाई का काम करते हैं. कुछ महीनों से ये सारे मजदूर घर में बठे हुए हैं, क्यूंकि कंपनियों में कोई काम नहीं है. साहबों का कहना है कि जब काम आयेगा तो बुला लेंगे.
बहुत से महिलाएं जो इन कंपनियों में काम करती हैं, वो ही एकमात्र परिवार में कमाने वाली हैं. मुमताज़ एक विधवा हैं, और उनके अपने तीन बच्चे हैं. सबरुनिसा भी विह्वा हैं, जो खुद के लिए और अपने दो बेटियों के लिये कमाती थी. उन्हें अब पता नहीं है वो कहाँ जाएँगी, पिछले महीनो का किराया देना अभी बाकी है.
पृथ्वी और प्रताप अपने पिता के साथ ट्रांसपोर्ट विभाग में हैं. इनका काम है जानवरों को वधशाला में पहुचाने का. पर ये सरल काम में भी उन्हें दर्दनाक अनुभव दिया है. पिछले ३ से ४ महीनों में उन्हें गुंडों ने पीटा जिनका कहना था कि वो बजरंग दल से थे. उन्हें उनके नाम भी पता हैं जिन्होंने वार किया था , लेकिन वो इस बात को बढ़ावा नहीं देना चाहते. पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से भी कोई फायदा नहीं , क्यूंकि पुलिस भी इनसे डरती है.
अनीता चवन, जिनके पति और दो बेटे ड्राईवर हैं इन वधशाला ले जाने वाले गाड़ियों के , मुझसे पूछा -” अगर ये धर्म की बात होती तो क्या वेगादी रोक के , बस जानवर को जाने देते ? उन्हें किसी को जो कि मेहनत करके कमा रहा है उसे मरना जरूरी था क्या ? ये कौन सा भगवन है और कानून है जो कि इन्हें ये सब करने की इजाजत देता है ? “
बजाय इसके कि वो जानवरों को बचाए , २५ से ३० लोग मिलके ड्राईवर को गाडी से निकाल कर उसका फ़ोन और पर्स चुरा लें.
ख़ैर जो भी हो
“पर हम भी उनके विश्वास का आदर करते हैं . वधशाला में गाय कई सालों से नहीं कटती. ये सब झूट है . सब इनके नाटक हैं. “
( संवाद- अभिषेक )