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ओला, उबेर और मानसिकता: गूगले हो क्या !

ओला, उबेर और मानसिकता: गूगले हो क्या !
ओला, उबेर और मानसिकता: गूगले हो क्या !
ओला, उबेर और मानसिकता: गूगले हो क्या !
फोटो : गमन फिल्म से फारूक शेख, टैक्सी ड्राईवर के रोल में. ओला, उबेर और मानसिकता: गूगले हो क्या !

प्रिंट अंक: पेज ३,  फ़रवरी १-१५ २०१८

“काली पीली थी, है, रहेगी, बहुत आये और गए, देखते रह्ये…
हमारा सबसे पुराना यूनियन है. जॉर्ज पेर्नान्देस वाला. हाँ . शरद राव था. अब उसका बेटा चलाता है. हम नहीं जानते उसका नाम.
अरे जब सेंट्रो आई थी, फ़िएट के बदले, तब भी लोग ऐसे हे दौड़े थे. कुछ दिन का मामला है.
कला धन तो नहीं आया, लेकिन ये ओला उबेर कुबेर कहीं का कहीं लगायें हैं. ऐसे भी झूट बोल के लोगों को बेवकूफ बनाने का धंधा अपना नहीं है.
अपना यूनियन कोई काम का नहीं है. साल का पैसा देते हैं बस. यहाँ मुंबई में लड़ने का टाइम किसके पास है. बस दौड़ो.
अपने को गुलामी नहीं करनी. अपना खून जले और २५-२७% से कोई और मजे करे. जितना मिलता है ठीक है. अपने हिसाब से रहते हैं. “                                                  

 मुंबई के टैक्सी और ऑटो ड्राईवर

विश्व भर में उबेर के खिलाफ प्रदर्शन
दुनिया भर से टैक्सी चालकों ने उबेर का विरोध किया है, जो उन्हें अनुचित और अनियमित प्रतिस्पर्धा के रूप में देखते है. लंदन के परिवहन प्रमुखों ने हाल में ही निजी भाड़े के वाहनों (पीएचवी) पर नियंत्रण कसने की योजना की, घोषणा की, जो कि उबेर जैसी ऐप आधारित सवारी-भेंट वाली फर्मों को मार सकता है. शहर के प्रसिद्ध काले टैक्सी के ड्राइवरों ने तर्क दिया है कि उबर ने स्थानीय लाइसेंसिंग और सुरक्षा कानूनों को छोड़ दिया है और अनुचित प्रतिस्पर्धा में है. उन्होंने कई उच्च-प्रोफाइल विरोध प्रदर्शन किए हैं जिनमें धीमे प्रदर्शन शामिल हैं, जो लंदन के केंद्र में ट्रैफ़िक को ठहरा दिया था.

9 सितंबर, 2015 को, सेऊ, साओ पाउलो, ब्राजील के पड़ोस में डिपार्टमेंट के चैम्बर के बाहर टैक्सी चालकों ने देश में उबर आवेदन के इस्तेमाल के खिलाफ प्रदर्शन किया. प्रदर्शन टैक्सी यूनियनों के ब्राजील संघ द्वारा बुलाया गया था. सैकड़ों इटली टैक्सी चालकों ने उबेरपीओप, एक स्मार्टफोन एप्लिकेशन-आधारित परिवहन नेटवर्क और टैक्सी कंपनी के पक्ष में एक कानून प्रस्ताव के विरोध में रोम में सड़क पर आये, जो आमतौर पर एक टैक्सी चलाने के लिए विशेष लाइसेंस के बिना चालकों को रोजगार देता है.

10 सितंबर 2015 को ब्रिस्बेन, क्वींसलैंड, ऑस्ट्रेलिया में टैक्सी चालक विद्रोह में भाग लेते हैं और उबेर राइड साझाकरण सेवा के नियमन की कमी के विरोध में प्रदर्शन करते है. 16 सितंबर, 2015 को ब्रुसेल्स के केंद्रीय ब्रसेल्स में ऑनलाइन सवारी-साझा करने वाली कंपनी उबर के खिलाफ विरोध के दौरान पूरे यूरोप के , लाइन से टैक्सी ड्राइवर सड़क पर आते हैं. सितंबर 24, 2015 को पोलैंड की राजधानी वारसॉ के केंद्र में सड़कों को अवरुद्ध करके, निजी तौर पर किराया कैरियर्स का विरोध करने के लिए टैक्सी ड्राइवरों द्वारा एक लंबी मार्च आयोजित किया गया था.

उबेर, अफ्रीका के अपने सबसे बड़े बाजारों में से एक नैरोबी में कुछ बाधाओं का सामना कर रहा है. टैक्सी ड्राइवरों के ग्राहकों को डरा देने की उम्मीद कर रहे टैक्सी चालकों के विरोध और हमलों के कई महीनों बाद, कंपनी अब अपने खुद के उबेर चालकों से हड़ताल का सामना कर रही है. नैरोबी के विरोधियों ने महत्वपूर्ण बयान के साथ धरना के संकेत दिए, “हमें हमारे देश में उबेर के दास नहीं होना है.”

भारत में बेंगलुरु, दिल्ली, उदैपुर, भुबनेश्वर, मुंबई करीब-करीब हर शहर, टैक्सी ड्राईवर का प्रदर्शन देख चुके हैं, और ये पुराने ड्राईवर नहीं, ओला और उबेर के ड्राईवर भी इसमें शामिल हैं.

जब एक सार्वजिनिक वयवस्था, निजी हो जाये, जब आपका टैक्सी ड्राईवर रोबोट की तरह काम करने लगे, तो समझ लीजिये बेड़ा गर्क हो गया, आपका और आपके शहर का. अगर कोई टैक्सी ड्राईवर आपको बैठने से मना करता है, तो उसके कई कारण हो सकते हैं. उसे उसके घर का काम करना है, वो थक गया है, उसे दूसरी ओर जाना है. उसका मना करना उसके इंसान होना से और उसकी मानव प्रवृति से जुड़ा है. लेकिन जब यह इंसान स्मार्ट फोन से जुड़ जाता है, तो केवल उसकी कमाई नहीं बल्कि वो खुद भी मशीनी हो जाता है.

चाय की दूकान पर आपको ओला उबेर के ड्राईवर गिनती करते, बुदबुदाते मिल जायेंगे. आज का कितना करना है कि बोनस मिलेगा. कितना ई. एम. आई रह गया है. जो पहले से दुसरे का गाड़ी चलाते थे, उनके साथ-साथ अब बहुत सारे नए गुलामी करने वाले जुड़ गए. बस स्केल का फर्क है. गाड़ी में ए.सी. है, और बैंक में कर्जा अलग. अब मानसिक स्वतंत्रता जी.डी.पी. से जुड़ता तो कैलकुलेशन अलग होता. और स्मार्ट की परिभाषा भी अलग.

जो डाटा १५ से २५ साल सड़कों का चक्कर लगा के एक ऑटो और टैक्सी ड्राईवर ने जमा किया, अपने मेहनत से, दिमाग में, वो गूगल, और स्मार्टफोन के एप्स बटोर रहे हैं. प्रोफेसर से लेकर स्टूडेंट तक ऑटो और टैक्सी का तजुर्बा का हवाला देता है. आलसी पत्रकार भी, कि फलाना शहर में ये टैक्सी वाले ने क्या कहा. ये २०-२५ साल की खेती है, लाइब्रेरी है और ज्ञान. जो लोग फ्री में लेकर, उन्ही की वाट लगा रहे.

ग्राहक भी बहुत बदल गए हैं. ग्राहक लोग आजकल गूगल कर-कर के काम करने लगे हैं. पर खुशकिस्मती से इन डिजिटलों की संख्या कम है, सड़क पर. आज भी सड़क पर लोग हैं, जो बात करते हैं, एक दुसरे से पूछते हैं. क्या हाल बा ? और एक अलग लोग हैं, जो कि सारा सवाल मुंह झुकाए, हाथ लब-लबाये करते रहते हैं. ऐसे भी लोग हैं, जिनसे कुछ पूछो तो गूगला जाते हैं. ये कौन से लोग हैं, जो सड़क पर उतर कर बात भी नहीं करना चाहते और घर बैठे-बैठे अपना काम निकालना चाहते हैं ? ये क्या सिर्फ इनकी सहूलियत है, या वो बात करना अपने तौहीन समझते हैं ? या उन्हें डर लगता है कि बात करने से, तमाम धन दौलत और डिग्रियों के बावजूद, उन्हें टैक्सी वाले से दुनियादारी कम पता है, और कहीं ये टैक्सी ड्राईवर जान न जाये, कि वो तकनीकी बुडबक हैं ?

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