विभिन्न कॉलेजों से छात्र एक्शन और जागरूकता समूह (ए ए जी) नामक एक समूह के गठन से सामाजिक मुद्दों की दिशा में काम कर रहे हैं। इस समूह के छात्रों ने ठाणे महानगरपालिका में आरटीआई दायर की थी। जिससे उन्हें महानगरपालिका की काली करतूतो का पता लगाया जिसका उन्होंने संवाददाता सम्मलेन के जरिए २३ जनुअरी को पर्दाफाश किया। छात्रों द्वारा पाई गई भ्रस्ट गतिविधियों का छोटा सा उल्लेख:
1. आरटीआई के आधार पर टीएमसी में सफाई कर्मचारी और घंटागाड़ी श्रमिकों के रूप में 1282 मजदूर कार्यरत है।लेकिन वित्तीय वर्ष 2013-14 और 2012-13 के लिए बोनस अभिलेखों की प्रतियां के अनुसार बोनस 1800 से अधिक मज़दूरों को दिया गया था। इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है जनता के पैसे टीएमसी के भ्रष्ट अधिकारियों और ठेकेदारों द्वारा खाया जा रहा है, जो 450 से अधिक फर्जी श्रमिकों के नाम पर बर्बाद किया है आज महानगरपालिका में काम करने वाले मज़दूर की तनख्या २९० रुपया है। इस तरह ४५० लोगों का एक दिन का वेतन 450×290 = रु 1,30,५०० रूपए होता है जो की रोजाना भ्रस्ट अधिकारीयों की जेब में चला जाता है। हम 300 दिनों के लिए गणना करे तो इस 3,91,50,००० पैसे से अधिक रुपये चला जाता है सालाना नकली मज़दूरों पर व्यर्थ किया जाता है।
2. टीएमसी ने अपनी भ्रष्ट गतिविधियों को छुपाने के लिए दोहरे नकली रिकार्ड्स का सहारा लिया हुआ है। सौभाग्य से समहू के लोगो को दोनों रिकार्ड्स ही हाथ लग गए। इन रिकार्ड्स के मुताबिक हर मज़दूर को एक महीने में निर्धारित वेतन से १००० रुपए कम दिए गए थे।
3. टीएमसी से पाए गए दस्तावेज दर्शाते है की मज़दूरों को निर्धारित किमान वेतन से कम वेतन दिया गया था। हर महीने मज़दूरों के वेतन से कम से कम एक हज़ार रुपए खाए गए थे। जो की एक साल में १२,००० होता है अगर हम १४०० मज़दूरों (मूल अभिलेखों से श्रमिकों की कम संख्या पर विचार) पर देखे तो पता चलता है हर साल १,६८,००,००० रुपए मज़दूरों के वेतन से खाया गया था।
4. टीएमसी और ठेकेदारों के बीच हस्ताक्षरित अनुबंध के अनुसार, श्रमिकों को लेवी के रूप में उनकी मजदूरी का 46% मिलना चाहिए। इस 46% लेवी में, पीएफ, ईएसआई, सुरक्षा उपकरण, ग्रेच्युटी और बोनस शामिल किए गए हैं। लेकिन आज तक टीएमसी ने किसी भी मज़दूर को ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया है। रेनकोट के अलावा कोई भी अन्य सुरक्षा उपकरण श्रमिकों को प्रदान नहीं किया जाता। और यह पूरा पैसा ठेकेदारों और टीएमसी के भ्रस्ट अधिकारियों द्वारा खाया जा रहा है। कई ठेकेदारों ने कानून के अनुसार मजदूरों के खातों में भविष्य निधि योगदान जमा नहीं किया है। कई मजदूरों के खातों में ठेकेदारों ने सालाना जमा किया जा करने के लिए वास्तविक राशि से रुपए 9000-1000 कम जमा किया है। वर्तमान में मज़दूरों की तनख्या से ९५० रुपए के आसपास पैसा भविष्य निर्व्हा निधि के तोर पर मज़दूरों की जेब से काटा जाता है परन्तु मज़दूरों के अकाउंट में इसका आधा पैसा भी जमा नहीं होता।
5. बोनस रिकॉर्ड में महानगरपालिका के अधिकारीयों के परिवार वालों का नाम शामिल है। हर साल ठेकेदार उनके ऑफिस में काम करने वाले मैनेजर की तनख्या भी महानगरपालिका से मज़दूरों के नाम से ऐंठते है। कही कही तो नकली लोगों को सफाई मज़दूरों से दुगुना बोनस दिया गया है। जो की १५,००० तक बोनस दिया गया है जो की स्थाई कर्मचारियों से भी ज्यादा है। इस तरह सफाई के नाम पर लाखों रुपए भ्रस्ट अधिकारीयों द्वारा बिना डकार लिए खा लिया जाता है।
6. 2008 में टीएमसी ने श्रमिकों को सालाना २१ दिनों की भरपागरी छुट्टियां देने का निर्णय लिया था। परन्तु आज तक एक भी मज़दूर इस निर्णय का लाभ नहीं उठा सका। इसके ठीक उलट जो पैसा मज़दूरों का मिलना चाहिए था वो अधिकारी लोग ठेकेदारों के साथ मिलकर खा बैठे। अगर हम साथ साल के इस पैसे का हिसाब लगाते है तो इसका आंकड़ा ५ करोड़ को पार कर जाता है। एक दिन का पगार Rs 246 २१ दिन का कुल पैसा = २४६X21= ४१६६, सात साल का कुल पैसा = 4166 X7 = 36,162, सभी मज़दूरों का ७ साल का बकाया = रुपये 6,14,75400 ये सभी भ्रष्टाचार गरीब सफाई मज़दूरों की मेहनत की कमाई में सेंध मार कर किया गया है। इन मज़दूरों ने सालो से खुद गंदगी में उतरकर देश की जनता को एक साफ़ सुथरा तथा स्वच्छ वातावरण दिया है। परन्तु हमारी सरकार ने उन्हें सभी सुविधाओं से वंचित रखा। ऊपर से भ्रस्ट अधिकारीयों ने उन्हें गरीबी तथा भुखमरी के अँधेरी खाई में धकेल दिया।