पहला द सभा का प्रकाशन लोक साहिर अन्ना भाव साठे को समर्पित है.
अन्ना भाव साठे सांगली जिला के दलित मातंग समुदाय से थे. अपनी जाति और ग़रीबी के कारण वो बचपन में अपने पढाई नहीं कर पाए.
अन्नाभाव मुंबई में दो चीजों की ओर आकर्षित हुए – एक अलग राजनीतिक संगठन था और दूसरा मूक फिल्में. फिल्मों और विज्ञापनों के पोस्टर जो गली गली में थे, उनसे उन्होंने अपने आप को पढाया.
अपने कैरियर एक मिल मजदूर के रूप में शुरू किया, फिर मुंबई के तेज जीवन और धरना, बैठकों, सत्याग्रह और विरोध प्रदर्शन की रोमांचक राजनीतिक जीवन का अनुभव करने के बाद, वोे एक तमाशा मंडली में शामिल हो गए। अन्नाभाव की तेज आवाज, याद करने के लिए अपनी क्षमता, हारमोनियम, तबला, ढोलकी, बुलबुल की तरह विभिन्न उपकरणों खेल में अपने कौशल, तमाशा की दुनिया में उन्हें स्टार बना दिया. क्यूंकि खुद वो बहुत कामों में मजदूरी किये थे इसलिए उनकी बातें और सोच हमेशा समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचती थी.
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन, संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन और गोवा मुक्ति आंदोलन के दौरान सामाजिक जागरण की ओर काफी योगदान दिया। कलाकार के रूप में हर कार्यक्रम और विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। उनकी लावणी, पोवाडा लोक कला की पृष्ठभूमि थी और सड़क उनके साहित्य के लिए खेलता है।
1945 में साप्ताहिक लोकयुद्ध के लिए एक पत्रकार के रूप में काम करते हुए वह बेहद लोकप्रिय बने. आम आदमी के दुख के बारे में विशेष रूप से लेखन एक लेखक के रूप में अन्न्भाव की अद्भुत सफलता के पीछे कारण है।
आज के समय जहाँ सरकार कलाकारों से लेकर हर वो स्वतंत्रता के मंजर पर प्रतिबन्ध लगाने पे तुली हैं, अन्नाभाव की लोक तमाशा एक मार्गदर्शक के रूप में नजर आती है. उम्मीद है , उनके सड़क की साहित्य और कला इस प्रजातंत्र को बेहतर करती रहेगी.