Mon. Dec 23rd, 2024

लिंग, जुर्म और शिक्षा का सम्बंध

A world where women are not respected.
By Sakshi Gupta

शिक्षा एक प्रगतिशील समाज का मूल है. शिक्षा एक ऐसी चीज़ है जिसके बिना इंसान एक जानवर या प्राणी ही रह जाता है। शिक्षा जिसे इंग्लिश में एजुकेशन कहते हैं, जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि इसी से मानव का विकास होता है, जिससे वो अपना कर्तव्य का पालन करना सिखाता है। एजुकेशन इंसान को अपने वातावरण के साथ परिवर्तित करना सिखाता है। एजुकेशन के माध्यम से लोगों को ये शिक्षा मिलती है क्या ग़लत है और क्या सही। कुछ ग़लत काम ऐसे होते हैं जिनकी सज़ा मिलनी ज़रूरी होती है, ऐसे ग़लत काम जिनकी सबको जानकारी नहीं कि वो ग़लत है। यही सीखने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है, ताकि लोगों को ये समझ आए कि क्या सजा मिलती है।

भारत में दुनिया की सबसे बड़ी यूथ पापुलेशन है – 60 क्रोर लोग 25 उमर की वर्ष के नीचे है और 28% पापुलेशन 14 की उम्र के नीचे। ये इंडिया के लिए एक बहुत बड़ा प्लस पोईँत हैं क्योंकि इस यूथ पॉपुलेशन को अपना ह्यूमन रिसोर्स बना के, इंडिया प्रगति की राह chal सकता है। भारत अभी भी एक डिवेलपिंग कंट्री है जिसमें ग़रीबी अभी भी बड़ी संख्या में मौजूद है। ऐसी ही स्थिति में इंडिया को इस बात पर ध्यान रखना है की वो अपने यूथ को आवश्यकता के अनुसार शिक्षा दे जिससे की वो अपनी इकनॉमिक ग्रोथ पे ध्यान दे सके और उसे आगे भी ले चलें।

वेस्ट इंडिया में गुजरात अपना एजुकेशन चार हिस्से में बातटा है जिसमें प्राइमरी, अपर प्राइमरी , सेकेंड्री और हायर सेकेंडरी आता है. गुजरात एजुकेशन डेवलपमेंट इंडेक्स पर नौ नवंबर में प्रदान करता है जो हर स्टेट का प्रदर्शन देखता है एजुकेशन में। इस स्टेट के पढ़ने की अयोग्यता ग्रामीण हिस्सों में 62% है और शहरों में 89% है। पर गुजरात गवर्नमेंट अपने खर्चों में से सिर्फ़ 14.4% शिक्षा की तरफ़ डालती है, जो इंडिया के बाक़ी सारे स्टेट्स के सामने बोहोत कम है।
दूसरी तरफ़ केरेला, एक छोटा सा स्टेट, साउथ वेस्ट इंडिया में भारत की स्थिति से काफ़ी अलग है. केरेला में पूरे देश की सबसे हाई लिटरेसी रेट -96.8% है और ये ही नहीं उसे कुछ साल पहले एक फुल्ली लिटरेट स्टेट का दर्जा दिया गया था। केरेला एक ऐसा स्टेट है जिसने अपना ध्यान और ख़र्चा एजुकेशन, लिटरेसी और वेल्फेयर पे ज़्यादा दिया है, जिसकी वजह से आज, केरेला में प्राइवेट स्कूल से ज़्यादा गवर्नमेंट स्कूल चलती है। 58.5% बच्चे सरकारी स्कूल मई दाखिल है जिसको अगर प्राइवट स्कूल से कम्पेर करे, जाहा सिर्फ़ 34.3% बच्चे दाखिल हुए है, तो ये पर्सेंट में काफ़ी अंतर नज़र आता है।
भारत के नोर्थ ईस्ट भाग में, नागालैंड, जो देश का सबसे छोटा स्टेट है, पर एक ऐसा स्टेट जाहा लिटरेसी रेट बाक़ी स्टेट्स से काफ़ी ज़्यादा है। नागालैंड मई लिटरेसी रेट 80.11% है, जिस्मे लड़कों का रेट 83.29% है और लड़कियों का 76.69% है। नागालैंड मई शिक्षा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, जिस्मे सिर्फ़ बच्चों की ही नहीं, टीचर की भी पढ़ाई उतनी ही आवश्यक है।

अगर किसी देश में कोई बड़ा बदलाव लाना है तो, सबसे पहले उसके शिक्षा को बदलते है। जुलाई के महीने में, भारत सरकार ने नैशनल एजुकेशन पॉलिसी २०२० निकाली क़रीब 34 साल बाद। ये NEP काफ़ी सारे ऐसे बदलाव लाती हैं जो बदलते समय के साथ लाने ज़रूरी थे। ये पॉलिसी बहुत सारे ऐसे बदलाव लागू करेगी जिससे इंडिया का भविष्य बनेगा और जिसमें ध्यान मार्क्स से ज़्यादा बच्चों की अंडरस्टैंडिंग पे रहेगा। कुछ बदलाव जो इस पॉलिसी के आने से होंगे वो है:

१) शिक्षा सब बच्चों के लिए 18 की उम्र तक फ़्री करदी जाएगी, जिससे कि ड्रॉप आउट कम हो।
२) १०+२ के पढ़ाई के स्ट्रक्चर को बदल के अब ५+३+३+४ बना दिया जाएगा ताकि उमर अनुसार विकास पे ध्यान दिया जा सके।
३) स्टूडेंट को रीजनल भाषा में पांचवीं कक्षा तक सिखाया जाएगा ताकि समझना आसान रहे। इंग्लिश को तब तक सिर्फ़ एक सब्जेक्ट की तरह सिखाया जाएगा
४) हायर एजूकेशन में स्ट्रीम्ज़ का जो बैरियर था उसे निकाल दिया जाएगा। स्टूडेंट्स को अपनी पसंद के हिसाब से सब्जेक्ट्स जो करने मिलेगा।
५) यूनिवर्सिटी और कॉलेजिस में अब मल्टिपल एग्ज़िट ऑप्शन होगा। स्टूडेंट्स अगर ड्रॉप आउट करे तो उनका क्रेडिट स्कोर अकैडमिक बैंक ऑफ़ क्रेडिट में जमा हो जाएगा। इसके बाद अगर उन्हें वापस पढ़ाई करनी हो तो उनके लिए एडमिशन वापस लेना आसान रहेगा।
इस पॉलिसी के ज़रिए भारत में जो जेंडर इक्वालिटी की माँग है, वो पूरी करने की कोशिश करी जाएगी। हर बच्चे के पास शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है, चाहे लड़का हो या लड़की। पर जेंडर बाइयस, यानी की लड़का लड़की और उनके लिंग के पक्ष पर उन्मे अंतर करना, अभी भी भारत में 1 बहुत बड़ी समस्या है। लड़कियों को पढ़ाईके इतने बड़े और अच्छे अवसर नहीं मिलते जितने लड़कों को दिए जाते हैं, क्योंकि लड़कियों से यह उम्मीद की जाती है की वो घर पे रह के काम देखें और लड़के पैसे कमा के लाए। ये ही बातें बच्चों की किताब में दिखाई जाती है, जिसमें लड़के हँसते खेलते दिखाए जाते हैं और लड़कियाँ घर का काम करती हुई। इंटरनेशनल जर्नल ओफ़ पॉप्युलेशन रिसर्च के नाते इंडियन परिवाद अपनी बेटियों के खाने और पढ़ाई से इतना ख़र्चा नहीं करती जितना अपने बेटों के करती है ये समझके कि वो बेटी तो पराया धन है।

भारत में लड़कों की शिक्षा को ज़्यादा मायने दिया जाता है। लेकिन फिर भी लड़कियों पे जो जुल्म होते हैं वो कम नहीं हुए। लड़कियों का रेप, दहेज़ के नाम पे मर्डर, ऐसिड अटैक्स, अपहरण, और तो और गर्ल चाइल्ड का जन्म होते ही मार डालना आज भी भारत में बड़ी संख्या में पाया जाता है। और ये क्राइम से ज़्यादातर नवंबर में लडकों के हाथों से ही किए जाते हैं। NCRB ये दिए गए रिकॉर्ड्स दिखाता है कि भारत में:
– ३२.६& क्राइम्ज़ ‘पति या उसके रिश्तेदार के हाथों’ होते है।’
– २५% क्राइम्ज़ होते है ‘औरत की इज़्ज़त ख़राब करने के लिए हमला करना’
– रेप ११% की संख्या में।
– इनहि मई से, ये सारे जुल्म ७६% क्राइम्ज़ लोअर कास्ट के ऊपर होते है।

भारत में ऐव्रिज रिपोर्टेड केस प्रति १ लाख है ६.३। दिल्ली में यही रेट २२.५ प्रति १ लाख है, सिक्किम में २२.५ और वही, तमिल नाडु में जो इंडिया का एक हाइली रिट्रीट स्टेट है वहाँ एक प्रति लाख से भी कम रेप केसेज़ पाए जाते हैं। लाइव मिंट की एक रिपोर्ट बताता है की इंडिया में ९९% केसेस अभी भी उनरेपोर्टेड़ जाते हैं ये शर्म से की लोग क्या बोलेंगे। यही रिपोर्ट यह भी बताती है कि कम्प्लेन फ़ाइल करना इन स्टेट्स में कम नज़र आता है जहाँ फ़ीमेल लिटरेसी कम है, जैसे की उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड। IJEIS की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, बिहार में ६२.६% औरतें घरेलू हिंसा का शिकार बनी है, जबकि गोवा मई केवल १७% औरतें ने इसका सामला किया। मेट्रो सिटीज़ में, औरतों का जीवन बाक़ी से बहटर है। दिल्ली में १६.३% औरत हिंसा का शिकार बनी और मुंबई में १९.५% जो चेन्नई और कोलकाता से बहटर है, जाहा ४०.६% और २६.७% हिंसा का शिकार बनी।

कुछ ही दिन पहले उत्तर प्रदेश के हाथरस गाँव में १९ साल की दलित औरत का चार ठाकुर लड़कों ने गैंगरेप किया, उसकी जीब तक काट दी, और इस सबके बाद उसका स्पाइनलकॉर्ड भी तोड़ दिया। इस हालात में लड़की की माँ ने उसको पाया,जहाँ से उसे हॉस्पिटल लेके जाया गया। चार दिन तक उसे कोई इलाज नहीं मिला, ये बोलके की लड़की नाटक कर रही है। इस केस में साफ़ नज़र आता है की लिंग श्रेणी और जहाँ हाथ का अपराध से लेना देना होता है।
ऐसा ही एक केस, 2014 का, UP के कटरा गाँव में, जिसमें दो बाल उमर की दलित बहनों का उनके मालिक ने रेप किया, इस कारण कि उन्होंने हिम्मत की अपनी सैलरी तीन रुपये से बढ़ाने की। उसे उच्च जाति के आदमी से ये हज़म ना हुआ की एक दलित ने उससे किसी चीज़ की माँग कर दी। उन्न दो लड़कियों का अपहरण किया गया, जिसके बाद उनका गैंग रेप किया और फिर उन्हें पेड़ से लटका दिया। इस्स तरह की हरकत सिर्फ़ औरतों को नियंत्रण मे लाने की लिए ही नहीं की जाती, पर जाती की रचना का बनाए रखने के लिए भी की जाती है।

इसी तरह के हज़ारों कास्ट बेसड क्राइम भारत में पाएँ जाते हैं, SC और ST के खिलाफ़। 2019 में, दलित और SC के ख़िलाफ़ किए गए जुर्म ७% से बढ़े और ST के ख़िलाफ़ किए गए और 26% से बड़े है। इन्ही में से,भारत के सबसे ज़्यादा कास्ट बेस्ड क्राईम में, राजस्थान में 554 रेप केसेज़ है जाहा औरत SC की है, उत्तर प्रदेश में 537 और फिर, बिहार में 510 केसिस। पर दलित युवा में उठी थी आशा ने उनकी ज़िंदगी सुधारी है लेकिन इस कारण उनके ख़िलाफ़ होने वाले जुड़े लोग भी उतने ही बड़े है क्योंकि अभी भी लोगों से हज़म नहीं होता की दलित भी समाज के सदस्य हैं।

क्राइम एक ऐसी चीज़ है जिसे कभी ख़त्म नहीं किया जा सकता। पर उसे कम ज़रूर किया जा सकता है, एजुकेशन के ज़रिए से। एजुकेशन के ज़रिए से लड़कों और लड़कियों दोनों को समझ और शिक्षा मिलती है कि क्या ग़लत है और क्या सही। नई नैशनल एजुकेशन पॉलिसी बोहोत सारे बदलाव लाती है जिन की ज़रूरत सालों से थी। इस पॉलिसी के आने से, इंडिया का फ़्यूचर और एजुकेशन दोनों बदलेगा, नई उम्मीद देगा। पर फिर भी बोहोत सारी ऐसी चीज़ें अभी भी है जिस पर इस पॉलिसी ने ध्यान नहीं दिया।
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सेक्स अभी भी इंडिया में एक ऐसा विषय है जिसके बारे में लोग अभी भी बात करने से घबराते हैं या शरमाते हैं, या तो चुप रहने में ही समझदारी समझते हैं। इस विषय को अभी भी एक ढाल के पीछे छुपा के रखा गया है। हमारी नई पॉलिसी में सेक्स एजुकेशन, यानी की यौन शिक्षा, के बारे में कुछ नहीं लिखा गया है ना ही इस विषय की तरफ़ किसी भी प्रकार के क़दम लिए गए है। इंडिया में हज़ारों ऐसे केसिस होते हैं जिनमें बाल उम्र की लड़कियाँ प्रेगनेंट हो जाती है और जिनमें उन्हें अबॉर्शन का ऑप्शन नहीं मिलता। ये एक बड़ी ही डराने वाली स्थिति होती है जिसकी वजह से ऐसे बच्चों का भविष्य ख़तरे में आ जाता है। इंडिया जैसे देश में सेक्स एजुकेशन की बहूत ज़रूरत है। इसकी ज़रूरत न केवल युवा गर्भवती रोकने के लिए ही नहीं, मगर बढ़ते रेप केसेस को रोकने के लिए भी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। लोगों को अभी तक सेक्स का इम्पोर्टेंस नहीं समझ में आता, इसे सिर्फ़ प्लेजर एक्टिविटी समझा जाता है। इंडिया की इतनी बड़ी आबादी को कंट्रोल में लाने के लिए, यहाँ के रेप केसेस कम करने के लिए, प्रेगनेंसी टालने के लिए, और तो और प्रटेक्शन का इस्तेमाल करने के लिए सेक्स एजुकेशन काफ़ी महत्वपूर्ण है। पर इसका अभी भी कोई ज़िक्र नहीं किया गया है। जिस देश में इस विषय में बात और चर्चा करने की ज़रूरत है, जहाँ सेक्स एजुकेशनबहु बहुत ज़रूरी है, उस जगह इसकी मौजूदगी न होना बड़ी ही शर्मनाक बात है।

एजुकेशन दोनों लिंग में बराबरी में होना इसलिए ज़रूरी है ताकि लड़कों को पता रहे कि सीमा क्या है और क्या सोच सही है, और लड़कियों को पता रहे कि उनके अधिकार क्या है और उनके लिए सही क्या है। यह जानकारी उन्हें शिक्षा के माध्यम से मिलेगी, जिससे क्राइम रेट में बदलाव आएगा और औरतों के लिए इक्वालिटी खड़ी होगी। इस तरह के घिनौने क्राइम जिनमें औरतों और लड़कियों पे अत्याचार और बलात्कार हो, उन्हें मिटाने और कम करने के लिए सिर्फ़ लो और पनिशमेंट से कुछ नहीं होगा। सरकार को शिक्षा केमाध्यम से बदलाव लाना पड़ेगा। नैतिक शिक्षा यानी की मोरल एजुकेशन और सेक्स एजुकेशन की आवश्यकता है ताकि बच्चों और बूढ़ों को जानकारी मिले की जो हो रहा है वो सही नहीं।

नई एजुकेशन पॉलिसी के माध्यम सेएजुकेशन सुधरेगी लेकिन सोच नहीं।सोच बदलनेके लिए कुछ आवश्यक विषयडालने ज़रूरीहै।इस तरह वही पुरानी सोच लेकर चलते रहे तो देश आगे बदलेगा, लोग नहीं.

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