मुंबई के 75,000 ग़रीबो के घर तोड़े गए थे, 2004-05 में, वह स्थिति आज भी आँखो के सामने है | चूल्हे क्या, बच्चे भी रस्ते पर आ गए थे और, कहां बढ़े, कहां बीमार, इंसान कुत्तो जैसे गंदे नालो के किनारे लेटे मिलते थे |
करीबन 44 बस्तियो की यह हालात देखकर, देश में बढती हुई शहरी गरीबी की आबादी को आवास का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा और विकास में सहभाग एवं विकास के लाभो में हिस्सा पाने के लिए सं घर्ष का रास्ता सुनिश्चित करना ही पड़ा |
घर बचाओ घर बनाओ की सं गठित शक्ति उसी परिप्रेक्ष में खड़ी हुई और बहुत सी बस्तियो को उनका ‘अवकाश’ और ‘आवास’ देने में सफल रही | हजारों गरीबो ने खड़ा किया अपना ‘एल्गार’ और मांग नही, संकल्प लेकर उस वक़्त के कांग्रेस शासन के, कांग्रेस का पूर्व घोषणा–पत्र की मार्ग दर्शिता मार्गरिेट अलवा और सोनिया गांधी जी के सामने भी उनके घर जाकर सवाल खड़े किये | हर जगह, हर बार बात–चीत हुई, आश्वासन मिले | फिर भी रास् पते र उतारकर सं घर्ष करना ही पड़ा और पाया कि लाठियां खाने के बाद ढाई महीने का लम्बा आंदोलन अपरिहार्य था | एक बच्ची का देहंद मानो शहादत थी |
आज़ाद मैदान में घर बांधकर, कभी मं त्रालय के द्वार पर खड़े होकर और फिर गोलीबार मेंदो बार उपवास करते हुए आंदोलन ने उठाये सवाल…गैर बराबरी पर ! ठोस मुद्दे थे, एस.आर.ए. में भ्रष्टाचार के शहरी सीलिग कानून के तहत तीस हज़ार लेकर ज़मीन मुं बई में उपलब्ध होकर भी शासन ने क्यों नही ली और 40 पैसे / एकड़ से हीरानंदानी बिल्डर को दी तो गरीबो को क्यों नही ? मुफ्त घ क्यों र की मांग भी न करने वाले, हाथ – मेहनत के साथ पेट पालने वाले ,एक घर या जमीन का दो गज टुकड़ा भी खरीद नही पाने वाले गरीब , इकले – दुकले नही तो बस्ती – समाज की इकाई मानकर घर बनाने, खुद को बसाने को तैयार होकर भी उन्हें शासन का साथ क्यों नही ? गृह क्यों निर्माण का दावा और योजनायें तो बिल्डरो को करोडो रुपय का मुनाफा देनेवाली साबित हो रही थी, तो फिर अपने ही घर तले की जमीन पर हमें खुद का घर खुद बनाने की मं जूरी और सहूलियत क्यों नही क्यों देता शासन?
इन तमाम सवालो के साथ–साथ विकल्प भी सामने रखते हुए आंदोलन ने सं वाद जारी रखा | न के वल राज्य शासन से बल्कि के न्द्रीय मं त्रालय से भी | ‘स्लम फ्री सिटी’, ‘झोपड़–पट्टी मुक्त शहर की सं कल्पना साकार हो तो कै से?’ इस पर हमारे मुद्दे, प्रस्ताव, टिप्पणियो को हमने प्रस्तुत किया | मुं बई में करोडो लोगों को घर देना संभव है….बस ज़रुरातानुसार दिया जाए….सीलिग की ज़मीन उपयोग में लाये….लीज पर करीबन मुफ्त दी गयी ज़मीनो से शासन फण्ड एक्लीट करे–यही थी बुनियाद !
राजीव आवास योजना में हमारे कई मुद्दे मं ज़ूर हुए….उस पर केंद्र व राज्य के मं त्री, राजनेता, विकासक और हम मिलकर समेलन हुआ | हमने पहला प्रस्ताव रखा | अधकारियो ने स् ं थान का सर्वेक्षण किया | इनमे सूची, सामाजिक सर्वेक्षण रिपोर्ट सब कु छ बनाकर दिया | म्हाडा, महानगर पालिका आयुक्त सबने ‘सब्र’ की सलाह दी | बार– बार चर्चा हुई…हमने ‘मं डाला’ के पथदर्शी (पायलट) योजना को वास्तव में उतारने का आग्रह रखा | प्लान पर बहस हुई | हमने तेवर–जं गल छोड़कर ही ज़मीन चाहिए | हमे एक भी पेड़ न काटना है ना ही बर्बाद करना है | घर खुद रहने के लिए ही बांधगे |
आज तक घर नही मिला ‘मंडाला’ के 3,200 परिवारो को | राजीव आवास योजना का मुद्दा उछाला फिर लोक–सभा के चुनाव में | सबने दावा किया…वे ही देंगे घर गरीबो को | शासन बदला और राजीव आवास योजना ही खटाई में पड़ गयी | हमने के न्द्रीय मं त्री, मुख्यमं त्री से लेकर अधिकारियो तक सभी को सभी कागजा ददेकर विनती की….के वल इस एक नमूना योजना को मं ज़ूरी दीजिये | हमारी बस्ती ‘अस्तित्व’ में नही तो सुर्वेक्षण में ही छोड़ा गया |
हमारा सवाल….’रा.आ.यो.’ पर प्रस्ताव क्यों नही क्यों ? 2009 को आधार मानकर दिल्ली की बस्तियो को बसाया….हमे क्यों नही क्यों ? नयी सरकार की योजना निश्चित नही….2022 के पहले घर देने का आश्वासन नही ? हमें आवास का अधिकार चाहिए | गरीब श्रमिक, बूढ़े , बच्चे, महिलाओ को सर पर छप्पर मिले | यह एक सं वैधानिक अधिकार है |
संयुक्त राष्ट्र संघ के कई नीति निर्देशको पर भारत सरकार की स्वारी है | मंडाला के कई निवासियो में कई दलित, कई आदिवासी, अल्पसंख्यक और करीबन सभी श्रमिक है | इसीलिए 26 मई के रोज़ आँखो के सामने पड़ी ज़मीन पर केवल 10 X 15 फीट के टुकड़े पर बसने के पहले छत बनायेंगे तीन हज़ार परिवार |
कायम गुंडो का, भ्रष्ताचारियों का साथ देने वाले शासक–प्रशासन, पुलिस भी, आशा है इस बार मंडाला के गरीबो का साथ देंगे | आह्वाहन है, महाराष्ट्र की सरकार को और संवेदनशील समाज कार्यकर्ता, आम नागरिको को !