“मैंने कई बार सोचा कि आत्महत्या कर लूं, पर मरती तो हजारो लड़कियां, रोज हैं. जिस रावण ने एक औरत को उठाया, उसका पुतला आज भी लोग फूकते हैं, मेरे साथ भी ऐसे कई रावणों ने अत्याचार किया, मैंने उसका जवाब दिया.”- फूलन देवी
भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने ये बात दो बार कम से कम तो कही कि जो वीर है, शक्तिशाली है, वही शान्ति की बात कर सकता है. एक बार लदाख में, चीन से सेनिकों के झड़प के बाद, भारतीय आर्मी को संबोधित करते हुए और दूसरी मरतबा राम मंदिर के पूजा पर.
क्या है इसका मतलब? क्या जो शक्तिशाली नहीं है, वो अशांति की बात करेगा ? या शक्तिशाली ही शान्ति की बात कर सकता है ताकि वही शक्ति शाली बना रहे. या बात करने और व्यवहार में लाने में भी फर्क हो सकता है ? फूलन देवी के जीवन पर एक नजर डालते हैं, कि कब किसने वीरता दिखाई, और शान्ति की बात किसने की ?
नीम पेड़ के ठंडी छाँव में, यमुना किनारे रहने वाली, मल्लाह समाज की फूलन, कैसे दुर्गा उपासक से बौद्ध धर्म की अनुयायी बनीं ? जिंदगी भर फर्जी मर्दानगी के बीच लडते-लड़ते, वीरों की गोली मिली या कायरों की ?
अगर ये कहा जाये कि चम्बल नदी कोटा से कोलकाता जाती है, फिर बंगलादेश होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिलती है और यमुना और गंगा हिमालय से आकर चम्बल में मिलती है तो? किसने चम्बल को अभिशापित किया और गंगा को पवित्र? चम्बल की बेटी जालौन, उरई शहर नदी किनारे पैदा हुई थी और उसी चम्बल में जिसमें गंगा यमुना आकर मिली है, जलाई गयी, मिर्ज़ापुर के घाट पर.
ये लेख की श्रंखला का पहला अंक है. आगे अंक में चम्बल से मिर्ज़ापुर के पानी और कानून, शासन और जूनून के साथ-साथ, उनके साथ रहने वालों की इंटरव्यू भी प्रकाशित की जाएगी.
पार्ट १ : परिचय
फूलन देवी का जन्म बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश राज्य में जालोन जिले में हुआ था. १० अगस्त १९६३. लाल मिट्टी वाला, यमुना के किनारे गुड़हा का पुरवा नाम का गांव था. इस साल विनोद साहनी जो गोंडा से हैं, वहां जालौन में फूलन के गाँव जाकर, तीन-चार महीना बिताये, और फूलन देवी के जन्मदिन के अवसर पर उनकी प्रतिमा, मूला देवी फूलन की मां द्वारा स्थापित कराया.
विनोद साहनी उन युवा में से हैं जो फूलन देवी के संघर्ष से प्रेरित हैं, और अपने समाज के इतिहास को संजो कर रखना चाहते हैं.
फूलों के एक दिवस के दिन फूलन देवी का जन्म हुआ था, जिसके कारण उनका नाम फूलन रखा गया. उनकी बड़ी बहन का नाम रुक्मिणी और छोटी बहन का नाम रामकली और मुन्नी और सबसे छोटे भाई का नाम शिव नारायण. उनका घर मिट्टी का था और छत पुवाल की. दो रूम था उनके लिए और एक गायों के लिए. घर में खिड़की, दरवाजे नहीं थे, और कोई डिजाईन भी नहीं था बाहर वाली दरवाजे में. घर में इसी कारण हमेशा ठंडा और अँधेरा रहता था. तीन खाट थी. दो कमरे में और एक बाहर. फूलन को मिट्टी की खुशबू बहुत पसंद थी, वो नदी किनारे से लाल कीचड़ इकठ्ठा करके खा लेते थीं. इसी मिट्टी से खेती होता था, दीवारों का प्लास्टर भी. गोबर से गौएठा वो और उनकी बहने अपनी मा के साथ दीवार पर बनाती थी, खाना बनाने के लिए. रुक्मिणी चार साल बड़ी थीं, फूलन से. इनके पास दो गाय थीं. फूलन जब नो साल की थी तब से गाय को चराने ले जाना, कुँए से पानी लाना और घर के काम करती थीं. उन्हें पेशाब करने थोड़ी दुर खेत में जाना होता था, जहाँ पहुँचने के लिए उन्हें अपने चाचा बिहारी के बड़े घर के बगल से होकर गुजरना पड़ता था. बिहारी उन्हें हमेशा डांटता और मारता था. कभी हाथों से कभी डंडे से.
बिहारी का घर सीमेंट, इंटों से बना था, जिसमें दो माले के साथ बालकनी भी थी. और दरवाजे की डिजाईन राजाओं जैसी. उनके घर के अन्दर ही कुँए थे, ताकि उनके बीवियों को बाहर न जाना पड़े, और लाइन में इन्तेजार न करना पड़े पानी भरने के लिए.
फूलन को यह समझ नहीं आ रहा था ऐसा क्यों है? उनकी मां और पिताजी उनकी इस हालात को भगवान की ख्वाहिश हमेशा बताते थे. फूलन सोचती थी कि भगवान है कौन जिन्होंने ऐसा किया और कभी वह हमसे मिलेगी जरूर पूछेंगे कि क्यों बिहारी के पास दो मंजिला मकान है, गेहूं उगाने के लिए खेत है, आम के पेड़ हैं, इतनी सारी गाय भैंस है? फूलन को दाल और आम खाने का बहुत दिल करता था लेकिन उनके घर में हमेशा केवल आलू ही होते थे. कभी-कभी रोटी पर मूला देवी घी लगा दी थी इसके लिए उनके पिता को किसी अमीर के घर दिन भर काम करना होता था कभी-कभी तो पूरा दिन केवल मटर खाते हुए ही बीत जाता था. खाने में हमेशा पिताजी को पहले खाना दिया जाता था और जो खाना बनाता था उसे सबसे लास्ट में, आखिर में यानी उस समय रुकमणी को. एक बार फूलन को प्रधान की मालिश के लिए बुलाया था और फूलन उनके घर में आमों को देख कर एक आम खाने के लिए मांगी थी जिसके कारण प्रधान ने गुस्से से उसे बहुत तेज तमाचा मार दिया था. प्रधान को ये बर्दाश्त नहीं हुआ कि एक लड़की उससे भी आम कैसे मान सकती है. बचपन से फूलन को अपनी खूबसूरती और रंग को लेकर चिंता थी क्योंकि रुकमणी का रंग भी उनसे हल्का था पर काम के मामले में फूलन जैसा कोई नहीं था. बाकी लड़कियों के मुकाबले वह पेड़ में छलांग लगा सकती थी, तेज दौड़ सकती थी, नदी में तैर सकती थी, घास हसिया से काट सकती थी, जानवरों को चारा दे सकती थी, भारी सामान उठा सकती थी, पानी कुँए से और नदी से सर पर ला सकती थी. फूलन को लगता था वो इसलिए ये सब कर सकती है क्यूंकि उसके अंदर गुस्सा है, खाने को तो कुछ नहीं था.
फिर जब फूलन की चौथी बहन हुई, तो उसको ज्यादा फूलन ने ही पाला पोसा. लड़की होने के कारण मूला देवी उसका पालन पोषण में ध्यान नहीं देती थी और घर में इतना होता भी नहीं था कि एक और लड़की को वह पाल सके पर शायद लड़का होता तो बात अलग होती.
फूलन के दादा मान फुले दो भाई थे. जिनकी ३७ एकड जमीन थी. मान फुले के दो बेटे थे देवीदीन और बिहारी. और उनका भाई का लड़का यानि भतीजा इन्दरजित. चाचा बिहारी और फूलन के पिता के एक थे, फूले, लेकिन माताएं अलग. बिहारी के पास इसलिए ज्यादा पैसा था क्योंकि उन्होंने फूलन की पिता को उनके हिस्से का जमीन और जानवर नहीं दिया. फिर जो भी उनके पिता कमाते थे, बढई का काम, खेत में, और घर बनाने का काम करते थे. उनका सारा पैसा कोर्ट में केस लड़ने में जाता था. कालपी के कोर्ट में वो केस जीत चुके थे लेकिन बिहारी और भी बड़े कोर्ट में जाकर लड़ने लगा, उरई से. वहां जाने के लिए पूरा 1 दिन चलना पड़ता था और हमेशा यही पता चलता था कि और रुपए चाहिए वकील को देने के लिए. दिन भर उनके पिता यही बडबडाते रहते थे. बिहारी, मल्लाह तो था लेकिन ठाकुरों की तरह व्यवहार उनके साथ करता था. बिहारी के दोस्त पंचायत में भी थे, जो देवीदीन को सलाह देते थे कि तुम अपने पैसे अपनी बेटियों की दहेज के लिए बचा के रखना चाहिए ना कि केस करने के लिए.
दहेज़ का इंतजाम करने के लिए देवीदीन ने अपने जमीन पर एक बहुत पुराने और मोटे नीम के पेड़ को काटकर बेचने का सोचा था. लेकिन बिहारी के बेटे मैयादीन ने धोखे से वो काटकर ले गया. उस समय देवीदीन और मूला देवी गाँव में नहीं थे. जब फूलन को पता चला तो वो अकेले ही रोकने पहुच गयी. जाते हुए बैल की नाक पकड़ ली और मैयादीन को फूलन को ऊपर से ही मरना पड़ा जाने के लिए.
फूलन देवी की शादी मात्र ११ वर्ष में की गयी थी पुट्टी लाल से जो कि महेशपुर गाँव से था. फूलन अपने ससुर से शिकायत करती थी कि उसे वापस घर ले जाया जाये. पर उन्होंने उसे गौ शाला में बंद कर दिया था. उनके पति और ससुर ने कहा था कि घर में कोई काम करने को चाहिए, फूलन को यहाँ रहने दो. उसका पति विधुर था, पुट्टी लाल. जो उसके साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाना चाहता था. ये करीब १९७४ की बात है, जब पुट्टी लाल जबरदस्ती फूलन को अपने गाँव ब्याह कर ले आया था, जबकि फूलन के माता पिता चाहते थे कि कम से कम १४ साल के बाद विदाई हो. अनेक जुल्म मार पिट झेलने के बाद फूलन वापस अपने मायके रहने आ गयी.
१९७८ में मैयादीन के घर डकेती हुई थी, जिसका इल्जाम उसने फूलन पर लगा दिया था. फूलन को पुलिस ने तीन दिन तक थाना के बाहर पेड़ में बाँध कर रखा. एक महिना तक पुलिस ने उनका शोषण किया, मारा. कचड़े, और चूहों के साथ जेल में कोने में सडती रहीं वो. इनमें से कई पुलिस वाले मैयादीन के दोस्त थे, और दरोगा यादव था. फूलन के घर वालों ने ठाकुर जयकरण सिंह के सहारे २५००० रूपए देकर जमानत कराइ. ठाकुर की नियत में भी खोट था, वो फूलन को घर में रखकर कर काम करवाना चाहता था. फूलन वापस आई, तो फिर बाबु गुज्जर उसे उठा कर ले गया. विक्रम मल्लाह इसी गैंग में था. सावन दुई की शाम, जुलाई में बाबू गुज्जर उन्हें ले गया, और ७२ घंटे तक उनके सार मार पिटाई की, शोषण किया. तीसरे दिन विक्रम मल्लाह ने बाबू गुज्जर को गोली मार दिया. विक्रम मल्लाह और फूलन देवी को एक दुसरे से प्यार हो गया.
विक्रम मल्लाह के बारें में खुशवंत सिंह बताते हैं, कि उनके लम्बे बाल थे, और फूलन को बेहद प्यार करते थे. फूलन को फ़िल्मी गाने का बहुत शौक था, और इसलिए विक्रम ने उन्हें रेडियो, कैसेट, और रिकॉर्डर ला दिया था. गाँव के पुराने गानों में एक प्रचलित था, कि अगर मारना है तो बीस मारो, एक नहीं, बीस मारोगी तो नाम होगा, एक मारने पर, गुनेह्गर, हत्यारा कहलाई जाओगी.
फूलन ने विक्रम के प्यार में एक रबर स्टम्प भी बनवाया था.
फूलन देवी | बागियों की रानी | विक्रम मल्लाह का प्यार ( बागियों का राजा )
फूलन को भगवान और अंदरूनी इंस्टिंक्ट पर बहुत भरोसा था. लूट के पहले ये बाद में वो दुर्गा मंदिर जरूर जाते, जो कि सुनसान लोगों की नजर से दूर हो.
लाला श्री राम ने फिर विक्रम को गोली मार दी, क्यूंकि विक्रम नेने बाबु गुज्जर को मारा था. और फूलन को बेहमई के एक खंडहर में ले आया. ये गाँव ठाकुरों का गाँव था. हर शाम ठाकुर अपने मर्दानगी दिखाने आते थे, और फूलन का बलात्कार करते थे. ये सिलसिला २३ दिन तक चला. २३ दिन बाद, श्री राम ने उनको कमरे से बाहर निकला और मर्दानगी की एक और कसर औरत से पानी मंगवाना जो बाकी रह गया था, वो उन्होंने उनसे उस सामुदायिक कुआँ, से लाने को कहा. उनके शरीर पर जो कम्बल था, वो खींच कर उन्होंने वहां के समाज को नंगा कर दिया. उन पर हँसा और थूका गया, गाँव के लोग ये सब होते हुए देख रहे थे.
लोधी और पाल ने फूलन को वहां से छुड़ाया. फूलन फिर वहां एक फक्कड़ बाबा से मिली. जिनका नाम तिवारी था. फक्कड़ बाबा ने सुलह कराने की कोशिश की फूलन और श्री राम के बीच में और फूलन को बन्दुक दिया. धीरे धीरे फूलन ने अपना गैंग बनाया. मान सिंह के साथ.
१७ महीने बाद, फूलन वापस आई. १४ फरवरी १९८१ में बेहमई गाँव में. और उसी रास्ते में कुँए के पास जो नदी की तरफ जात है, वहां एक एक ठाकुर को पहचान कर बदला लिया. वो श्री राम को भी मारने आई थी लेकिन वो वहां नहीं था. २२ लोग मारे गए थे. पूरे राज्य में सनसनी फैल गयी. पालिक फूलन को पकड़ नहीं पा रही थी. वी.पी सिंह जो उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद ठाकुरों ने कर्रेब के मल्लाह गाँव आस्था में कई लोगों को मार डाला था, बदला लेने के नाम पर. राजेंद्र चतुर्वेदी ने जो मध्य प्रदेश के भिंड में इंस्पेक्टर थे, उन्होने इंदिरा गाँधी और अर्जुन सिंह के इशारे पर एक साल तक फूलन से सरेंडर करने की बात की और विश्वास में उन्हें लिया.
फरवरी १९८३, .३१५ मौसेर कंधो पर, कमर पर हिलते हुए, एक लम्बी खंजर बेल्ट में घुसाए, २५० फीट के झाड़ियों के बीच से फूलन देवी जा रहीं थी. राजेंद्र चतुर्वेदी भी उनके साथ था, भिंड जिले का पुलिस इंस्पेक्टर,. 6 मील दूर पुलिस बटालियन इन्तेजार कर रही थी. केवल अर्जुन सिंह को खबर थी. चार साल घनी झाड़ियों में फूलन देवी को हो गए थे. ३० किडनैपिंग, मर्डर और २२ लोग की बेहमई में हत्या, का इल्जाम था उनके सर. इसी सर पर पट्टी बांधे,चांदी का कड़ा पहने, .३१५ रायफल, दुर्गा कि तस्वीर, अपने खाकी वर्दी, के सीने वाली जेब में लिए, गाँधी और दुर्गा देवी के तस्वीर के समक्ष उन्होने अपने हथ्यार डाले.
जातिवादी मीडिया, जिसका पैमाना ख़ूबसूरती और न्याय का अलग था, उनके गले के नीचे ये बात उतर नहीं रही थी, कि जिस औरत को वो दस्यु सुंदरी, खतरनाक, और रोबिन हुड बता रहे थे, उनके लिए ५ फीट की, चपटी नाक वाली, नेपाली जैसे दिखने वाली होगी.
कहना तो ये होगा कि भारत के सरकार ने सरेंडर किया था, फूलन के सामने. सरेंडर की फूलन देवी की शर्ते: किसी को भी फँसी न हो, आठ साल की सजा से ज्यादा न हो, अच्छे जेल में रखा जाये, मध्य प्रदेश में सरेंडर हो, कभी उत्तर प्रदेश न भेजा जाये, स्पेशल कोर्ट में सुनवाई हो, चचेरे भाई मैयुदीन ने जो जमीन हथियाई है वो उनके पिताजी को वापस मिले, भाई को सरकारी नौकरी मिले, परिवार को मध्य प्रदेश में सरकारी जमीन पर बसाया जाये, और साथ में उनकी गाय और बकरी को भी.
१९८४ में इंदिरा गाँधी के मौत के बाद जेल में बाकी कैदी फूलन को चिढ़ा रहे थे कि अब तो तुम्हारी मा भी मर गयी, कौन बचाएगा तुम्हे. फूलन ने जेल में रह कर जेल की स्थितियों के खिलाफ भगत सिंह की तरह कई बार आवाज उठाई और कैदियों के साथ व्यव्हार और जेल की साफ़ सफाई का मुद्दा भी उठाया. इसके लिए उन्होने दो बार भूख हड़ताल भी की.
जब वो जेल में थी तब उनसे कई विदेशी मिलने आते थे, फिल्म के निर्माता भी. माला सेन ने यहीं आकर उनसे मिलकर उनकी ऑटोबायोग्राफी लिखी जिसपर बाद में बैंडिट क्वीन फिल्म बनी. राजीव गाँधी जब प्रधान मंत्री तो उन्होने राजेश खन्ना को कांग्रेस में लाया और उनके कहने पर ही राजेश खन्ना और डिंपल कपाड़िया भी ग्वालियर जेल में फूलन देवी से मिलने जाया करते थे.
१९८९ में बोफोर स्कैम हुआ और गाँधी परिवार और बच्चन परिवार के बीच में रंजिश पैदा हुई. वीर सिंघवी हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकार लिखते हैं कि ये सब वी.पी सिंह का कराया धराया था. जो इलाहाबाद के होने के कारण अमिताभ को वहां बढने नहीं देना चाहते थे. इस समय राजेश खन्ना और अमिताभ के बीच में कोल्ड वार चल रहा था. एक तरफ लाल कृष्ण अडवाणी राम मंदिर का मुद्दा लेकर चल रहे थे, और दिल्ली विधान सभा में १९९१ का चुनाव उन्होने लड़ा. अडवाणी का रथ रोकने के लिए राजीव गाँधी ने राजेश खन्ना को चुनाव लड़ा दिया. जिसमें बाद में अडवाणी १५०० वोट से जीते लेकिन फिर दुबारा चुनाव करना पड़ा. राजेश खन्ना ने धांधली का आरोप लगा दिया था. उस तरफ कांशी राम ने इसी चुनाव में फूलन देवी को, जेल से पेपर में दस्तखत करवा कर निर्दलीय लडवा दिया था, इसी सीट पर जिसमें फूलन देवी को ७५० करीब वोट मिले थे.
फिर १९९३ में फूलन देवी तिहाड़ जेल चली गयी जहाँ कि इंस्पेक्टर किरण बेदी थी. किरण बेदी ने उन्हें दिलासा दिया था कि घबराओ मत इतनी दिनों से तुम्हारा कोर्ट में सुनवाई नहीं हुआ, कानून ज्यादा दिन ऐसा नहीं कर सकता, तुम छुट जाओगी. सारे गैंग के लोग जेल से छुट गए, आठ साल के अन्दर. सारे उत्त्तर प्रदेश में जाकर केस लड़ें. कोई गवाह उनके सामने नहीं आया. फूलन को पता था कि वो मारी जाएगी अगर उत्तर प्रदेश गयी तो. इंदिरा गाँधी मर चुकी थी, जिन्होंने उनकी सारी शर्तें मानी थी, और अर्जुन सिंह पंजाब चले गए थे. फूलन ने कहा कि उनके पास पैसे नहीं थे कि वो केस लड़ सके, वकील कर सके. और उनके बिरादरी के नेता भी नहीं थे कहीं, जो उनकी बात रखे, जबकि उनके गैंग में जो भी गुज्जर, ठाकुर और यादव थे, उनकी जान पहचान, बिरादरी वाले सत्ता में थे.
फरवरी १९९४ में, मुलायम सिंह यादव ने बेहमई में केस वापस लेने की घोषणा की बेगम हजरत महल पार्क में. इस रैली में मल्लाह समाज की हजारों की भीड़ मौजूद थी. फिर फूलन देवी जेल से बाहर आयीं. और उमेद सिंह कश्यप से विवाह किया. १९९५ में फूलन और उमेद सिंह कश्यप ने दीक्षाभूमि में बौध धर्म स्वीकार किया. दिल्ली में फूलन देवी का घर तीन मंजिला था, चीत्रंजन पार्क के पास. दुर्गा, और बुद्ध की तस्वीर एक ही दीवार पर थी, गेंदे के फूल और अगरबत्ती से महकता था उनका हाल. टी.वी के ऊपर जीसस की तस्वीर, और एक दिवार पर बाबा साहेब अम्बेडकर की बड़ी तस्वीर थी. उनके यहाँ एक कुत्ता भी था जिसका नाम जैकी था. सोने की चूड़ियाँ और झुमके पहनने लगी थी फूलन देवी.
१९९६ में भारत में जातिवादी मीडिया की अलग स्थिति थी. ११९६ में हर दिन एक नया इस्तीफा, और इन सब के बीच ‘मिर्जापुर की गाँधी’ के रूप में फूलन देवी की रैली हुई. और मई में वो जीत गयीं. १९९६ में लालू प्रसाद यादव का फूलन देवी के साथ गाँधी मैदान, पटना में बड़ी रैली की, जिसमें लाखों की भीड़ उमड़ी.
लोक सभा 26 Jul 2000 में फूलन देवी का लोक सभा का भाषण-
श्रीमती फूलन देवी (मिर्जापुर) : अध्यक्ष जी, मिर्जापुर जिले में जब मैं अपने जिला-अधिकारी से मिलने के लिए टाइम लेती हूं और जब मिलने जाती हूं तो वे अपने चपरासी से कहलवा देते हैं कि साहब क्षेत्र में निकले हुए हैं। लगता है कि जिला अधिकारी बहुत बड़े नेता हैं। अगर मैं जबरदस्ती अंदर जाती हूं तो पीछे के दरवाजे से बाहर निकल जाते हैं और कहलवा देते हैं कि डी.एम. साहब नहीं हैं। …( व्यवधान) डरते नहीं हैं बहुत ज्यादा चतुर हैं। भारतीय जनता पार्टी की सरकार को मक्खन लगाते हैं और कहते हैं कि तुमसे मिलूंगा तो मेरा ट्रांसफर हो जायेगा।13.00 hrs. वह कहते हैं कि यदि मैं आपसे मिलूंगा तो मेरा ट्रांसफर हो जाएगा। जिलाधिकारी मेरे कहने से कोई भी काम नहीं करते। मैंने पहले भी सदन में यह मामला उठा कर निवेदन किया था और लिखा था कि मुझे सरकारी वाहन उपलब्ध नहीं कराया गया है। जब मैंने उनसे इस बारे में निवेदन किया तो उन्होंने मुझे अपमानित किया और कहा कि आप सरकारी गाड़ी लोक सभा अध्यक्ष से लीजिए।
श्रीमती फूलन देवी: मैं जिस विभाग को पैसा देने के बारे में कहती हूं तो जिलाधिकारी कहते हैं कि यह विभाग भ्रष्ट है। मैं जब ११वीं लोक सभा की एम.पी. थी, उस समय एक बार सांसद नधि का पैसा दिया गया था। हमारे यहां के आदिवासी और बनवासी पचास वर्षों से उपेक्षित हैं। वे तीन-चार किलोमीटर दूर जंगलों से पानी लाते हैं। मैंने गांवों में पहली बार हैंडपंप लगा कर दिया। जल निगम वाले माफिया गिरोह के हैं। मुझे उनके बारे में पहले ऐसी जानकारी नहीं थी। मैंने उन्हें पैसा दे दिया। जल निगम के अधिकारियों और ठेकेदारों ने दो-दो हजार रुपए लेकर उन लोगों के घरों में हैंडपंप लगा दिए जिन के यहां भैंस और बकरियां थी। मैंने जिन लोगों के यहां हैंडपंप लगाने के लिए सिफारिश की थी, उनके यहां हैंडपंप नहीं लगाया गया। परसों जिलाधिकारी ने मुझे कहा कि आप जाइए, आप एम.पी. हैं तो एम.पी. बन कर रहिए, हमें आदेश मत दीजिए, मैं जिस विभाग को पैसा दूंगा, वही विभाग काम करवाएगा। गरीब जनता जो हमें वोट देती है हमें उन्हें पानी, बिजली मुहैय्या कराएं या बड़े-बड़े माफिया लोगों को ये सब मुहैय्या कराएं। मैं विनती करती हूं कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को दंडित किया जाए और उनसे पूछा जाए कि वह एक एम.पी. को मिलने से क्यों कतराते हैं और उनसे क्यों दूर भागते हैं? इसके अलावा १९९८-९९ और २००० का एम.पी. एल.ए.डी. का पैसा दिल्ली में रुका पड़ा है। जिलाधिकारी प्रोजैक्ट बना कर भेज नहीं रहे हैं। वह हम से मिलते नहीं हैं और गलत बोली बोलते हैं। मैं विनती करती हूं कि ऐसे जिलाधिकारी को दंडित किया जाए।..
फूलन देवी मिर्जापुर के स्थानीय मुद्दों को बराबर उठा रहीं थी. उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा था.
२००१ में फूलन देवी को दिल्ली में गोली मार के हत्या कर दी गयी. इस समय दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अजय राज शर्मा थे. आज हैं रिटायर्ड आई. पी.एस. अफसर, अजय राज शर्मा. इनकी पोस्टिंग चंबल क्षेत्र में हुई थी 1970 में. उस समय पूरा और झुरी का गैंग वहां पर सक्रिय था. हाल ही में उन्होंने करण थापर के साथ एक साक्षात्कार में, द वायर मीडिया चैनल पर टिप्पणी की, कि अगर वह दिल्ली के पुलिस कमिश्नर होते तो अनुराग ठाकुर और कपिल मिश्रा को गिरफ्तार कर लेते। उन्होंने मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल के दौरान एक उदाहरण दिया, जब उन्होंने कैबिनेट मंत्री के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज कर दिया था। वह मिर्जापुर के रहने वाले हैं। और चंबल के पास अपनी पहली पोस्टिंग में, उन्होंने १९७० में फूला और झूरी गैंग को मारकर अपने साथी सुबरदार की हत्या का बदला लिया। बाद में उन्होंने गोरखपुर में प्रकाश शुक्ला की इन्कोउन्टर कर दी, जिसे कल्याण सिंह को मारने के लिए सुपारी दी गई थी। उन्होंने एस.टी.एफ शुरू किया, विशेष कार्य बल, यू.पी में. बाद में वह दिल्ली के कमिश्नर थे, जहां उन्होंने हांसी क्रोनिए भ्रष्टाचार, संसद हमले के मामले, फूलन देवी की हत्या के मामले २००१ को संभाला। उन्होंने पुलिस अधिकारी के रूप में अपनी यात्रा पर इस साल बीटिंग थे बुलेट किताब लिखी।
आज कफील खान जेल से बाहर आकर कह रहे हैं, कि मैं शुक्र गुजार हूँ उत्तर प्रदेश एस टी ऍफ़ का की उन्होंने मुझे विकास दुबे कीई तरह एनकाउंटर नहीं किया, मुंबई से लाते वक़्त. उत्तर प्रदेश में ठोको की नीती अपनाने वाली पुलिस व्यवस्था का बीज तो अजय राज शर्मा ने ही बोया था.
अजय राज शर्मा की जांच के बाद शेर सिंह राणा की गिरफ़्तारी हुई और वो तिहाड़ जेल में २००४ से भाग भी गए. भागे तो भागे २००६ में वापस कोल्कता में पकड़ा भी गए. वो कह रहें हैं कि इस दौरान उन्होंने पृथ्वी राज चौहान की अस्थियाँ कंधार, अफ़ग़ानिस्तान से लेकर वो आये हैं, जो उनके मुताबिक भारत के आखिरी हिन्दू राजा थे. इसका उन्होने विडियो भी ऑनलाइन डाला है, कंधार जाने का. क्षत्रिय समाज ने उन्हें बहुत सम्मान दिया. कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा दी पर वो बेल में जेल से बाहर हैं. और यहाँ तक की फूलन देवी की छोटी बहिन, मुन्नी देवी उनके साथ खड़ी नजर आ रहीं हैं. आपने संबित पात्रा को जयचंद बुदबुदाते टेलीविज़न पर सुना होगा, जिन्हें कुछ लोग गद्दार कहते हैं, और जिनकी बेटी चौहान साहब ले गए थे. अब इतिहास में चलेंगे अगले अंक में.
फिलहाल फूलन देवी की बड़ी बहन रुक्मणी सपा में हैं, छोटी बहन शेर सिंह राणा से जुड़ी हुई हैं, छोट भाई ग्वालियर में पुलिस की नौकरी कर रहा है, और माँ गाँव में आखिरी समय गुजार रहीं हैं. पर क्यूँ इस साल सपा अध्यक्ष, अखिलेश यादव ने फूलन देवी की पूर्णय तिथि पर फूलन देवी का विडियो ट्वीट किया और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लल्लू ने भी उनके बारें में लिखा. क्या इसलिए कि मल्लाह समाज की जनसँख्या और वोट उत्तर प्रदेश की राजनीति में और भारत देश की राजनीति में बहुत महत्व रखता है? या सही में उनको कद्र है फूलन देवी की ? फूलन देवी की छोटी बहन मुन्नी देवी, जो फूलन देवी के पति उमेद सिंह कश्यप पर २००१ से आज तक हत्या का इल्जाम लगा रही हैं, उन्हें टिकट भी नहीं देते.
उनकी हत्या पर सारी पार्टियाँ खामोश हैं. फूलन सिंह राजपूत होती तो शायद अभी तक गोस्वामी साहब रिपब्लिक भारत पर भारत क्या चाहता है, बोलकर चला देते. ख़ैर ये बात अलग है कि फूलन के गैंग के सदस्य, उन्हें फूलन सिंह ही कहते थे. उनकी वीरता और मर्दानगी के कारण. ये सिंह होना, क्षत्रिय होना, या राजा होना और वीर होना एक बात नहीं है. पेड़ के पीछे से तीर पीठ पर चलाना या मेहँदी रंग की मारुती से किसी को छुप कर गोली मारना, किसी भी धर्म और कर्म से वीरता का लक्षण नहीं हो सकता.
अमिताभ बच्चन (श्रीवास्तव) को तो कम से कम कुछ कहना चहिये था, आखिर उनकी कंपनी अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड ने १९९६ में बैंडिट क्वीन मूवी की रिलीज़ और मार्केटिंग कर खूब कमाया था. जिस जज ने फूलन देवी को पेरोल दी थी, उनके बेटे संतोष ने बताया, कि फूलन देवी अमिताभ बच्चन को अच्छा आदमी नहीं समझती थी, पैसों और नियत को लेकर. और इंदिरा गाँधी के पोते पोती को तो उनके वचन की इज्जत नहीं है? फूलन देवी के सामने जब भारत की सरकार ने सरेंडर किया था १९८३ में, तो इंदिरा गाँधी और अर्जुन सिंह ने सारी शर्त मान ली थी.
अगर आज बोलांगीर, ओडिशा से मजदूर १००० किलो मीटर दूर चेन्नई सिर्फ इसलिए जा रहा है की अपनी बहनों की शादी के दहेज़ का इन्तेजाम कर सके तो लानत है, ऐसे दहेज़ विरोधी कानून पर और २०२० में सुप्रीम कोर्ट की बात पर, की औरतों को जमीन जायदाद में बराबर का हक होना चाहिए. ये दिखावटी कानून को अमल में लाना, व्यवहार में लाना बहुत जरूरी है.
आज एक फूलन जिन्दा नहीं है, लेकिन अनेक फूलन देवी पैदा हो चुकी हैं. उनको न्याय दिलाना हर औरत को न्याय दिलाने के बराबर है, जिसे आज तक दहेज़ के नाम पर बेचा जाता है, और अपनी ही जमीन पर भाई हक नहीं देता है. उनको न्याय दिलाना भारत इतिहास में सबसे बड़ी गलती सुधारना है, जब १९५० में बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर की बात कांग्रेस ने नहीं मानी थी, हिन्दू कोड संशोधन बिल पर, और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. इस बिल में उन्होंने औरतों को जमीन पर बराबर हक देने की बात की थी.
—अगले अंक में जारी