मेरा जन्म वेस्ट बंगाल में हुआ। पापा की सर्विस लगने के बाद हम धनबाद आ गए। पापा का जन्म आजमगढ़ में हुआ। पढ़ाई-लिखाई सब धनबाद में हुई।मेरे बड़े पापा जो कि आजमगढ़ में ही रहते थे उन्होंने इकलौता और धनी लड़का देखकर 1992 में नौवीं कक्षा में ही मेरी शादी करवा दी।
1996 में पापा ने छोटे भाई को भी टाटा के अंडर सर्विस में लगा दिया और 1998 में रिटायर होकर पापा आजमगढ़ वापस आ गए। आज के समय मेरे भाई की तनख्वाह 90000 है।
आजमगढ़ बहुत अच्छी जगह है वहां का रहन सहन खानपान और लोग भी बहुत अच्छे हैं। एक ही अवगुण है की अगर कोई औरत मां बाप के मरने के बाद मायके जाकर रहना चाहे तो उसके भाई-भाभी उसको स्वीकार नहीं करते। अगर उसका पति मर जाएं तो उसकी जिंदगी नरक बन जाती है।
शादी के बाद मुझे बहुत तकलीफ झेलनी पड़ी। मैं शहर से जब आजमगढ़ गांव में शादी के बाद गई तो ससुराल में जाकर अपने आप को एडजस्ट नहीं कर पाई। कभी मैं खाना जला देती तो कभी कुछ काम नहीं कर पाती।मेरे पड़ोस वाले भी बहुत बोलते थे इन चीजों को लेकर और मैंने अपने आप को सुधारने की भी बहुत कोशिश की । मेरी सांस का देहांत हो गया था। ससुर और मेरे पति दोनों मुझे बहुत मारते पीटते और मेरा शोषण करते।
मैंने पापा को बोला कि मुझे वापस ले जाइए मुझे यहां नहीं रहना है। हमारे यहां वेस्ट बंगाल में परंपरा है कि लड़की की शादी के बाद वह मायके वापस नहीं जा सकती हैं। लोगों का मानना है कि अगर लड़की की डोली निकल जाए तो उसकी अर्थी भी फिर उसके पति के घर से ही जानी चाहिए।
पापा ने कहा तुम्हारा यही भाग्य है और तुम्हें अपने भाग्य के हिसाब से अपना जीवन जीना है महिलाओं का धर्म होता है पति की सेवा करना और दुख सहना।
जब मैं छोटी बच्ची थी। टाटा ट्रस्ट में ही केंद्र होता था जहां पर मैं नृत्य की कक्षाएं लेती थी। मैंने धनबाद में जो कि पहले बिहार का हिस्सा था अब झारखंड में आ गया है, आदिवासी महिलाओं के साथ भी बहुत काम किया। जब मैं सातवीं आठवीं कक्षा में थी तब मैं वहां बहुत जानी जाती थी और मुझे अपने काम के लिए बहुत तारीफ भी मिलती थी। मेरा मन वहां बस गया था। शादी करने से पहले बड़े पापा ने मेरी नृत्य कृष्ण कक्षाओं को लेकर पापा को कहा की क्या तुम अपनी लड़की को नचनिया बनाना चाहते हो। इसी तरीके से सब लोगों से भी दबाव बना और मेरी शादी हो गई।
ससुराल में दुख मिलने के बाद मैंने ठान लिया था कि मुझे अब वापस ससुराल नहीं जाना है।
मेरे पापा ने 5 ग्रंथ पड़े हैं फिर भी हमारे घर में लड़कियों को कभी बराबर दर्जा नहीं मिलता था यहां तक की बराबर खाने को भी नहीं मिलता था।
पूरा खाना ना मिलने की वजह से हमारा शारीरिक विकास भी नहीं हो पाया। मछली और प्याज जैसी जरूरतमंद चीजें हमें कभी खाने को नहीं मिली जबकि यह सब मेरे भाई को मिलता था। मैं हमेशा भाई के खाने से चुरा कर खाती थी या उसको बहला के साथ में मिलकर ही खा लेती थी।
काफी बार ऐसा हुआ कि मुझे जब ससुराल मार पड़ती तो मैं मायके वापस चली आती। मेरा बार-बार मायके वापस आ जाना पापा को पसंद नहीं था उन्होंने मुझे साफ-साफ शब्दों में बोल दिया था कि ससुराल ही तुम्हारा घर है तुम चाहे वहां मर जाओ पर यहां वापस मत आना।
जब मेरी किशोरावस्था आई और मेरे शरीर में बदलाव आने लगे, उस समय मेरे पति के साथ कुछ संबंध नहीं थे। यहां तक कि उन्होंने हमारी सुहागरात भी नहीं मनाई थी। जो उस समय मुझे साथ और कनेक्शंस की जरूरत थी वह मुझे कभी मिला ही नहीं। मेरे और मेरे पति के बीच में कोई रिश्ता था ही नहीं ना मासिक ना शारीरिक। जब काफी वर्षों बाद रिश्तेदारों और पड़ोस वालों को इस बात के बारे में पता चला तो उन्होंने मुझे सिखाने की कोशिश करी कि तुम अपने पति के साथ जबरदस्ती करो और कुछ संबंध बनाओ। पर मेरे पति का गांव में ही एक औरत के साथ संबंध था वह औरत उनकी चाची थी।
मुझे रेडियो सुनने का बहुत शौक था, मैंने पापा से बात की और अपने लिए एक रेडियो मंगवाया। उस समय रेडियो पर आकाशवाणी चैनल पर महाराष्ट्र से एक सखी सहेली प्रोग्राम आता था, वहीं से मुझे प्रेरणा मिली कुछ करने की, वहीं से मेरी हिम्मत बंदी और समझ भी पैदा हुई।
एक बार की बात है मेरे पति ने मुझे इतना मारा कि मेरे कान का पर्दा फट गया। मैं मायके वापस गई और मेरे पापा ने मुझे मेरे भाई के साथ जो कि धनबाद में रहता था इलाज के लिए भेज दिया।
क्योंकि उस समय आजमगढ़ में अच्छे डॉक्टर नहीं थे। धनबाद में मुझे मेरी पुरानी दोस्त माला मिली।
जब उसे मेरी स्थिति के बारे में पता चला तो उसने मुझे कहा ” छोड़ दे सारी जिंदगी किसी के लिए यह मुनासिब नहीं है किसी आदमी के लिए।” उसने मुझे बताया कि प्रेम से बढ़कर भी बहुत काम है।
जिंदगी में सब कुछ प्रेम ही नहीं है। उसने मुझे कहा कि अपने लिए भी जीना सीखो। पहले तुम सबको हंसाती थी नौटंकी करती थी वापस लाओ अपना जज्बा।
माला ने हीं मुझे दोबारा जिंदा करने का काम किया।
जब मैं वापस आजमगढ़ पापा के पास लौटी तो उन्होंने मुझे कहां तुम्हारे यहां से लेटर आया है अपने घर वापस जाओ। इस बार में जिद पर अड़ गई और मैंने वापस जाने से मना कर दिया और मुकदमे की बात की। 1992 से 1998 मैं वहां रही और फिर वहां से निकल गई। मुकदमा लड़ने के लिए पैसे कहां से आएंगे यह अगला सवाल था।
मैं उससे इस समय सिलाई करती थी। घर घर जाकर मैं 10,5,2 जितने पैसे सिलाई से मिलते हैं और फिर उसी से मुकदमा लड़ रही थे। मैंने मुकदमा इसलिए किया था चाहे तो वह मुझे मेरा हक दे, मेंटेनेंस दे या मेरे साथ ढंग से रहे और मारना पीटना बंद करें।
एक बार की बात है कोर्ट में एक मुस्लिम औरत बाहर बैठ कर रो रही थी क्योंकि उसका मुकदमा दर्ज नहीं किया जा रहा था। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह इसे लड़ सके। मैं उसके पास गई उससे पूछा और बोला कि मैं तुम्हारे साथ चलती हूं। मैं मौलाना से मिली और मैंने पूछा कि क्या मुस्लिम द्धर्म के तहत औरतों पर जुल्म करना सही है। मैंने पंचायत करवाई और भरी सभा में पूछा कि आप लोग तलाक बोलकर एक लड़की को छोड़ देते हैं उसके साथ गलत व्यवहार करते हैं क्या एक औरत होना जुल्म है या दुर्भाग्य। अगर औरत नहीं पैदा होती तो आप लोग कहां से आएंगे। मैंने उस औरत को भी समझा कर उसके घर भेजा आज भी वह अपने घर सुख से रह रही है और यही मेरी शुरुआत थी
मैंने अपनी पढ़ाई दोबारा से शुरू करी आजमगढ़ से, स्कूल पूरा किया और फिर एलएलबी। जब भी मैं कोर्ट जाती मुझे बहुत बुरा लगता क्योंकि आसपास औरतें हमेशा दुख में बैठी रहती थी। उस समय मैंने भी वकील बनने का फैसला किया था। और यह बताते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है कि आज मैं 600 महिलाओं को न्याय दिला चुकी हूं। कुछ 300 से 400 लड़कियों को जो अपना स्कूल छोड़ चुकी थी वापस स्कूल में दाखिला करा चुकी हूं।
24 जुलाई 2015 में अखिलेश जी ने मुझे रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित किया। मुझे ऐसा लगता है कि औरतों के साथ दोहरा व्यवहार हो रहा है। हर नेता हाई कोर्ट में, सुप्रीम कोर्ट में बोलता है कि महिलाओं का सशक्तिकरण चल रहा है पर ऐसा कुछ भी नहीं है। मैं नहीं बोलती हूं कि
औरतों को समान दर्जा मिलता है। अगर आजमगढ़ में 22 ब्लॉक है। समान दर्जा देने का मतलब है कि 11 पुरुष और 11 महिला B.D.O. पर ऐसा नहीं है।
सब महिलाएं स्ट्रगल करती है और जो भी वह कम आती है अपने क्षेत्र में वह उनकी खुद की मेहनत होती हैं।
मैं अपने पापा के साथ रहती थी तो मेरे पति मुझे सिर्फ मेंटेनेंस का खर्चा देते थे। पति की जमीन में हिस्सा सिर्फ पति के मरने के बाद ही एक औरत को मिलता है। मेंटेनेंस में ही पूरी जिंदगी निकल जाती है। अगर देखा जाए तो महिलाओं को हर जगह आगे कर दिया जाता है, मुसीबतों में, कोर्ट कचहरी में पर आज भी फैसले लेने का काम पुरुष का ही है और यह अवसर औरतों को नहीं मिलता है। कुछ समय बाद जब मैंने पापा की प्रॉपर्टी में समान हक के लिए मुकदमा डाला तो मेरे पति ने रिपोर्ट डाली और मुझे खुद को पालने के लिए सक्षम दिखा दिया जिससे मेरी मेंटेनेंस भी बंद हो गई। इसके समय पीछे हट गई क्योंकि अगर मैं इसके स्कूल अर्थी तो मैं समाज के विकास में मदद नहीं कर पाती।
राजभर समाज में अगर में मजदूरों की बात करूं तो वह लोग जितना भी कमाते हैं उसमें से 75 % दारू पर उड़ाते हैं और बाकी जो बचता है 25 % उसमें ना तो बच्चों की पढ़ाई पूरी हो पाती है और बीवी भी फिर घर के खर्चे के लिए बोलती हैं। उनका शोषण किया जाता है उनको मारा पीटा जाता है।
अगर मैं पढ़े-लिखे वर्ग की बात करूं तो जरूरी नहीं है पढ़ने लिखने का मतलब समझदार होना। अगर उन लोगों की बीवी उन्हें बाहर जाने को बोलती है कुछ काम करने को बोलती है तो फिर से बात शोषण पर आकर ही रुक जाती हो
मुझे नहीं लगता कि महिलाओं को महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में भी कुछ खास दर्जा दिया गया है 2005 में कांग्रेस ने तीन कानून बनाए थे
1. बेटी का बाप की प्रॉपर्टी में समान अधिकार चाहे वह कुंवारी हो या फिर शादी श्रद्धा।
2. बाल श्रम के खिलाफ एक नियम बनाया गया था
और तीसरा था डोमेस्टिक वायलेंस यानी कि घर के अंदर होने वाली हिंसा।
पत्नी पति के घर में रहकर भी डॉमेस्टिक वायलेंस का केस लड़ सकती थी। 30 तारीख 2011 की बात है मेरी सुनवाई चल रही थी। मैंने किस 2005 में दर्ज किया था और 6 साल से मेरा केस चल रहा था। राधा कुंड वहां की महिला जज थी और उनके पास मेरी फाइल रखी थी। वह फैसला नहीं दे रही थी काफी समय हो गया था। मैंने उनको जाकर कहा कि मुझे मेरे घर भेजा जाए। मेरे पापा कहते हैं कि तेरा घर ससुराल है मेरे पति कहते हैं कि तेरा घर माई के हैं। अगर कहीं इस देश में मेरा घर है तो मुझे वहां भेजा जाए और अगर आप लोग मुझे नहीं भेजेंगे तो मैं यही आत्महत्या कर लूंगी। मैडम ने मुझे डांटा और 3 महीने ससुराल जाकर रहने को कहा जहां मुझे सुरक्षा देने का भी वादा किया। मेरे पति ने मुझे स्वीकार नहीं किया और मैं वापस मायके आ गई।
2013 तक मैंने एलएलबी की पर पापा के मरने के बाद मैं अपना आखिरी सेमेस्टर पूरा नहीं कर पाई। मैंने बहुत सारी किताबें पढ़ी है मेल महिलाओं से संबंधित धाराएं पड़ी है ताकि महिलाओं का जहा जिधर भी अधिकार है उन्हें मिले। भारत में कानून है पर वह बहुत ही दुर्बल है।
मुझे अच्छे से याद है एक दिन सुबह सुबह मैं और पापा जून के महीने में बस से कोर्ट में जा रहे थे। मैंने पापा से ₹10 मांगे क्योंकि मुझे बहुत प्यास लगी थी और पापा ने मुझे मना कर दिया। उस समय मैं कुछ बोल नहीं सकती थी पर हां मन में यह सोचती थी की लड़के को ही दिल से घर पर लोग वंश मानते हैं। जब तक पापा रहे मैंने ही उनकी देखभाल की उनके कपड़े लेकर भी मैंने ही दिए उनका मनपसंद खाना खिलाना और मम्मी की देखभाल करना। मेरे भाई के पास उनको देखने के लिए भी समय नहीं था। मुझे बहुत खुशी होती है कि अगर आदमी के अंदर इच्छा हो तो मैं अपनी तकदीर को बदल सकता है। बड़ी बहन जो कि 50 साल की है और विधवा है उनकी 9 साल की उम्र में शादी हो गई थी। वह भी हमारे साथ ही रहती हैं और उनकी पापा ने दूसरी शादी नहीं की।
पापा के मरने के बाद भाई ने हमें घर से निकाला तो मैंने प्रॉपर्टी के लिए मुकदमा किया। आजमगढ़ में मुझे कोई भी ऐसा काबिल वकील नहीं मिला जिसने बोला कि हां मैं आपको आपका अधिकार दिलवा दूंगा। सबने बहाने लगाएं। आखिर में मैंने मम्मी से जाकर बात की कि आप लोगों ने मेरी दूसरी शादी नहीं करवाई अब भाई ने भी हमारा घर छीन लिया है जिस समाज हमें जीने नहीं देगा। इसके बाद मम्मी ने अपनी जमीन मेरे नाम रजिस्टर करवाई।
30 मार्च 2018 होली का दिन था। राजभर समाज की एक लड़की जो कि बनिया लड़की से प्रेम करती थी वह लड़का उसका ऑपरेशन करा कर फिर दूसरी शादी करने जा रहा था। मैंने उसे पकड़ा और उससे बात की उसे धमकाया की गन्ने का रस तुम निकालो और जो छिलके हैं वह कोई और साफ करें। क्या तुमने एक औरत को वस्तु बनाकर रखा है। मैंने उसको डराया धमकाया और आखिर में उसकी शादी उस लड़की से करवाई।
जब मैं वापस घर लौटे तो मेरे भाई ने मुझ पर 379 के तहत मुकदमा कर दिया कि मैंने अपने घर से अपनी मां के जवाहरात चुराए हैं। दूसरा 402 का मुकदमा किया कि मैंने अपनी मां को नजरबंद कर दिया है और इसके साथ काफी और मुकदमे लगे। मैंने पुलिस को बोला कि आप मुझे सिर्फ जभी गिरफ्तार कर सकते हैं जब आप चोरी का माल बरामद करें। पूरी इन्वेस्टिगेशन के बाद सिर्फ रिपोर्ट आई क्योंकि मैंने कोई अपराध किया ही नहीं था। मैं कमजोर नहीं थी और मुझे कोई सजा नहीं मिली।
हर साल 8 मार्च को मैप जेल जाकर जिन महिलाओं को अंदर बंद किया जाता है उनकी कॉपी देखने का काम करती हूं और लगभग 50 परसेंट ऐसे कह दी है जिन्होंने कुछ अपराधी नहीं किया है। मेरे पापा के पास दो घर और चार किले थे। वह बट नहीं पाए हम तीनों बहन भाइयों में। पहली बात तो यह कोई वकील मेरा केस लेने के लिए तैयार ही नहीं था। दूसरी बात यह है कि अगर कोई लड़की अपने पापा किस अमीन पर अधिकार लेती है तो उसका मायके से संबंध उड़ जाता है। मेरे केस में ऐसा कुछ नहीं है। भाई बहन का कितना ही प्यार हो कोई भी भाई फिर भी अपनी जमीन का बंटवारा नहीं कर सकता। जब दो भाई खून का रिश्ता तोड़ देते हैं तो बहन को देना तो फिर भी एक सवाल पैदा करते हैं।
कुछ लोगों ने यह भी कहा है मुझे कि लड़की पराया धन होती है। मैंने हमेशा पूछा है कि आप पहले मुझे धन की परिभाषा बताइए। धन जीवित है या जीवित है। चलती फिरती प्रगति की देन को, एक जीवित औरत को अगर आप वस्तु बोल रहे हैं तो आप उसको बिल्कुल ही मार डाल रहे हैं और अगर वह वस्तु है जीवित नहीं है तो वह स्त्रियां भी नहीं है। स्मृति पाटिल और असरानी की एक फिल्म है आखिर क्यों। उसमें एक गाना है “कोमल है कमजोर नहीं शक्ति का नाम ही नारी है
जगजीवन देने वाली मौत भी तुम से हारी है”
मैं कहती हूं कितनी भी भारत में कानून बन जाए पर जो जेंडर गैप है यह भारत में कभी भी खत्म नहीं होगा।
मैंने बहुत दुख झेला है मायके में भी और ससुराल में भी। मैं 3-3 दिन तक बिना खाने के सोई हूं। जितना मुझे लोग थकाते, चैलेंज करते उतना ही मेरे अंदर शक्ति आती लड़ने की। उर्दू का जो दर्द है उसको देखकर मुझे लगा कि एक समूह बनाया जाए स्वयं सहायता समूह जो कि उनके दुख को आगे रखेगा। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि आज मेरा समूह 3000 औरतों को उनका हक दिला चुका है।
हम सोशल प्रेशर भी बनाते हैं और कानून की भी मदद लेते हैं। अभी कुछ दिन पहले एक बच्चा मेरे पास भाग कर आया और उसने मुझे कहा कि बुआ बचा लीजिए मेरी मम्मी को मेरे पापा मार डालेंगे। मैं वहां गई मैंने उनको समझाया, डाटा और बोला कि आप अपना घर बर्बाद मत कीजिए। अपनी पत्नी को सम्मान दीजिए और प्यार से रखिए। जब मैंने उस औरत को देखा तो मुझे बहुत ही बुरा लगा। उसे झाड़ू से मार मार कर झाड़ू तोड़ दी गई थी और उसके ज्यादातर कपड़े यहां तक कि ब्लाउज भी फाड़ दिया था। मैंने उसे खाना बना कर खिलाया और कुछ देर बाद उसके भाई-बहन आकर उसे वापस ले गए । वह आदमी 10 दिनों बाद आया उसने मेरे साथ मारपीट किया और कहा कि अगर तुम नहीं होती तो मैं अपनी पत्नी को मार कर ही संतुष्टि पा लेता। आज मुझे जो पुलिस के चक्कर काटने पड़ रहे हैं मुझे इतना कुछ झेलना नहीं पड़ता। उसकी मारने की धमकी देने के बाद मैंने पुलिस को बुलाया 354 और 330 के मुकदमे से मैंने उसको अंदर करवाया। अक्षर में कोई भी महिला जब पुलिस के पास जाती है तो वह उसे डांट कर भगा देते हैं। वह महिला अगर हमारे पास आती है तो हम पुलिस के पास जाते हैं जब हम कानून की भाषा में उनसे बात करते हैं और हमारी टीम जाती है तो है मुकदमा लेने के लिए तैयार हो जाते हैंएक बार की बात है मैं वापस घर जा रही थी।
महिलाओं के मुकदमे में काफी तकलीफ झेलनी पड़ती है इसीलिए पूरा एक नेटवर्क बनाना पड़ता है लोगों का महिलाओं का और वकीलों का। मेरे पास बहुत सारे केस आते हैं कभी 25 कभी 10 तुम्हें और मेरी टीम उन पर पूरा मन लगाकर काम करते हैं और उनका उनको हक दिलाते हैं। मेरे साथ दोनों पुरुष और महिला वकील जुड़े हैं। ₹50 प्रति सुनवाई हम वकील को उसकी मेहनत का जब आते हैं उससे ज्यादा नहीं। चाहे पति करोड़पति हो या फिर भिखारी उसको मेंटेनेंस देनी ही पड़ती है। मेंटेनेंस देखने देने के लिए यह देखा जाता है कि औरत के पास कोई नाबालिक है या घरवालों उसके साथ हैं। यह सब बातों को सोच कर फिर एक औरत को मेंटेनेंस मिलती है।काफी बार पुरुष वकील महिलाओं को मनाने की कोशिश करते हैं मेंटेनेंस कम करवाने के लिए। जैसे ही कोर्ट में फाइल जाती है उसके बाद हम हमेशा लड़ते हैं कि जितने भी पैसे उसको मिल रहे हैं वह बढ़ सके। 2013 में मुझे एक पत्रिका का ऑफर आया था 1 साल तक मैंने उसको टाला पर जनवरी में 2014 को संपादक दो लोगों के साथ मेरे घर आ गया। मैंने अपना प्रस्ताव रखा कि मैं आपकी पत्रिका में जब भी काम करूंगी जब आप मुझे संपादक बनाएंगे। तीन-चार दिन बाद वह मेरी शर्त को मान गए परंतु उन्होंने बोला कि आपको मैं 10 मिनट देता हूं आप मुझे कुछ लिखकर दिखाएं। उसी समय मेरे पास एक रेप का केस आया था मैंने लिखा
नारी तेरी क्या लाचारी है
तू मौका मई तू दयावान
फिर भी तू किस किस्मत की मारी है
नारी तेरी क्या लाचारी है
रात के अंधेरे में
तू अकेले कहीं आ जा नहीं सकती
ना डर जानवर का ना डर भूत का
फिर किस डर कि तु मारी है
नारी तेरी क्या लाचारी है
उन्होंने पड़ा और उन्होंने कहा कि मैं आपको संपादक का पद दे रहा हूं। 1 साल के लिए मैंने उस पत्रिका में काम किया। उसके बाद में नालंदा गई जो कि पहाड़ी इलाका है बिहार में। वहां औरतों के साथ बहुत शोषण होता है जो कि जंगल से लकड़ी खट्टा करके लाती है। वह औरतें राजवंशी होती हैं जो कि राजभर समाज के अंदर ही आती है। वहां मैंने पत्रिका का प्रसार किया उनके बारे में लिखा।
पर महिलाओं की सफलता पुरुषों को हजम नहीं होती। जब भी मैं वहां की महिलाओं की मुश्किलों के बारे में छपती थी तो उन लोगों को अच्छा नहीं लगता था। उस मैगजीन की कंपोजिंग भी मैं करती थी। मैंने उन लोगों की पत्रिका छोड़ दी क्योंकि मैं दूसरे के आंगन में नहीं बल्कि खुद के आंगन में फल लगाना चाहती थी और उस पर ही काम करना चाहती थी। मैंने जब छोड़ा उसके बाद उनकी मैगजीन बंद हो गई।
मैं आजमगढ़ शहर में रहती हूं और अब मेरी मम्मी को क्वारंटाइन की वजह से मैंने घर भेज दिया है। मम्मी को डायबिटीज, थाइरोइड जैसी बिमारी है
कमेंट बाजी की भी काफी दिक्कत है हमारे देश में। औरतों को या लड़कियों को बहुत छेड़ा जाता है। एक बार की बात है मैं वापस घर जा रही थी। मैंने एक ऑटो वाले को बोला कि मुझे आप इस जगह छोड़ दीजिए। जैसे ही मैं ऑटो में बैठी उसने मुझसे कहा कि अगर मैं आपको उठा ले जाऊं तो आप क्या करेंगी। मैंने उसे कहा कि अगर तुम्हारी औकात और अगर तुम्हें इतनी हिम्मत है तो मुझे ले जाकर दिखाओ। मुझे एसपी सर का फोन आया और उन्होंने मुझसे फाइल की बात की औरतों के केसेस की बारे में बात की, वह सब बात ऑटो वाले ने सुनी और उसने जब मुझे घर छोड़ा तो मैंने उसे थप्पड़ मारा और उससे पूछा क्या तुम्हारे घर वालों ने तुम्हें संस्कार नहीं दिए हैं, तुम्हारी अभी इतनी उम्र नहीं हुई है कि तुम मुझे उठा सको।
आज काफी सारी ऐसी महिलाएं हैं जो काबिल है और उन्हें आगे नहीं आने दिया जाता है। मेरे पास काफी सारी औरतों के केस जाए हैं शादी के बाद घर वाले भी उनको नौकरी नहीं करने देते हैं। जो नौकरी करती हैं उनके साथ भी शोषण किया जाता है। एक औरत जिसका पति फौज में है और जो खुद एक प्राइमरी स्कूल की हेडमास्टर है उसका पति उसका शोषण करता है। जब यह केस मेरे पास आया तो मैंने उस पति से पूछा आप देश के रक्षक हैं आप मां की इज्जत करते हैं और इसी बीच अगर आप अपनी पत्नी का शोषण कर रहे हैं तो आप कहीं ना कहीं बहुत ज्यादा गलत है। अगर मैं इसकी कंप्लेन करूं तो आपकी नौकरी भी जा सकती हैं। डराने धमकाने के बाद मैंने उनको समझाया भी। कोरोना के चक्कर में हिंसा के मामले अब बढ़ रहे हैं मेरे पास काफी केस आते हैं। क्योंकि अब मजदूर लोग वापस आ रहे हैं घर पर जिसकी वजह से हिंसा बढ़ रही है।मेरे काम में इस पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है क्योंकि मैं अपना सारा काम अपने ऑफिस से करती हूं।तुम्हें महिलाओं को अब भी इंसाफ दिलाने में लगी हूं। क्वॉरेंटाइन के चलते ही हिंसा के मामले और भी ज्यादा आ रहे हैं मेरे पास।
पहले मैं नहीं बताती थी किसी को कि मैं राजभर समाज से हूं जैसे जैसे लोग मुझ से जुड़ते गए सोशल मीडिया पर व्हाट्सएप ग्रुप पर उन्हें पता लगता गया और मेरे साथ बहुत सारे लोग जुड़ते गए। ज्यादातर इन ग्रुप में पुरुष है। जब भी हमारे समाज में कुछ प्रशंसा की बात आती है तो लोग एक ही नारा लगाते हैं जय सुहेलदेव। मैं हमेशा बोलती हूं उनसे बात करती हूं कि जय बनड़ी देवी भी बोलिए। वह हमारे समाज की एक महिला है जैसे सुहेलदेव का नाम आता है वैसे ही उनका नाम भी आना चाहिए।
अभी एक केस आया था। एक राजभर समाज का लड़का और एक लड़की चुप चुप के मिलते हैं। जब यह बात लड़की के घर वालों को पता चली तो उन्होंने लड़कों के घरवालों के साथ मिलकर उस लड़के की हत्या करवा दी। वाराणसी से ग्रुप पर एक आदमी का मैसेज आया और उन्होंने लिखा कि वह लड़की भी हमारे समाज के लिए कलंक है गंदगी फैला रही है उसे भी मार देना चाहिए। इस समय मैंने ग्रुप पर लिखा की वह लोग लड़की के घरवाले पहले ही एक मुकदमे से अंदर चले गए हैं और अगर वह दूसरा मर्डर करेंगे तो उनका बाहर निकलने का कोई मतलब नहीं बनता। हाई कोर्ट से फिर उनको इजाजत नहीं मिलेगी। आप सिर्फ एक आदमी की नहीं काफी आदमियों की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। वैसे बातें होती रहती है पर जब भी मैं कुछ बोलती हूं इन ग्रुप्स में जिनमें सिर्फ पुरुष होते हैं तो पूरा ग्रुप चुप हो जाता है।
एक केस ऐसा भी है जिसने मेरे बीच और काफी लोगों के बीच तनाव बना दिया जो लोग मिलते मिलते थे प्रणाम करते थे उन्होंने मेरे से रिश्ता तोड़ लिया। एक नाबालिक लड़की थी 17 साल की। वह बर्तन धोती होती और पड़ोस मैं एक राजबर समाज की औरत दारू बेचती थी। जब लोग दारू के लिए उससे ग्लास मांगते तो वह मना कर देते। एक दिन उस औरत के पति ने जब उस लड़की से ग्लास मांगा तो उसने उसके मुंह पर पानी फेंक दिया। वह उसे उठाकर ले गया और उसे दारू की मदद से जिंदा जलवा दिया गया। बसपा की सरकार थी और पैसे देकर के पुलिस बयान लिखने को तैयार नहीं थी।
मैंने पूछा कि जब लड़की मर जाएगी तो क्या तब बयान लिखेंगे आप। एसडीओ साहब आए बहुत मुश्किल से उस लड़की का बयान दिया गया और बयान देने के बाद लड़की मर गई। उस औरत को जेल में से छुड़वाने की कोशिश की गई इस बहाने से कि उसका एक छोटा बच्चा है। उस औरत के पति ने भी मुझे पैसे देकर बहलाने की कोशिश की पर मैं नहीं मानी और मैं अडी रही। काफी बार मुझ पर दबाव डाला जाता है पार्टी के नाम पर जातिवाद के नाम पर पर मैं कभी भी इन चीजों को बीच में नहीं आने देती।
मेरे पति अभ आजमगढ़ में ही है। वह गलत संबंध में उन्होंने अपनी सारी प्रॉपर्टी खराब कर दी है बेच डाली है। लोगों से पैसे मांग कर वह दारू पीते हैं।मुझे अच्छे से याद है उन्होंने मुझे एक बार बोला था कि मैं तुम्हें ऐसी ठोकर दूंगा कि तुम जिंदगी में कभी उधर नहीं पाओगी और तुम्हें तन पर कपड़े पहनने के लिए भी भीख मांगने पड़ेगी। जब मुझे 2015 में रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो अखबार में पहले पेज पर मेरा नाम आया और सब ने मेरी बहुत तारीफ की। काफी लोगों ने मुझसे दोबारा बात करने की प्रयास किया और मेरी जिंदगी में वापस आने का भी प्रयास किया। पर मैं अड़ी रही।
मैं अपने पति के नाम से अभी भी इसलिए ही जुड़ी हूं क्योंकि मेरे ससुर ने मुझ से वचन लिया था कि मैं कभी चौखट छोड़कर नहीं जाऊंगी और दूसरी शादी नहीं करूंगी । मैंने उन्हें जवाब दिया था कि मैं ना तो कभी आपके लड़के से मोहब्बत करूंगी ना नफरत ना मैं उसको देखना पसंद करूंगी और ना मैं कभी उसको परेशान करूंगी। मैं इस घर में नहीं रह सकती पर हां मैं दूसरी शादी नहीं करूंगी क्योंकि मुझे इस समाज में मरने के बाद भी जिंदा रहना है।