आज हर कोई अपने आप मे एक स्वतंत्र पत्रकार है। हर किसी का राजनीति से लगाव भी आम हो चला हैं । होना भी चाहिए। आखिर हम रोटी भी राजनीति की ही खाते है। बीते दिनों देश के पाँच राज्यों में चुनाव हुए,नतीजे आए और नई सरकारें बनी। जिसमें से एक सरकार की तो कैबिनेट मीटिंग भी हो गयी, यानि किया गया वादा निभा देने जैसा मामला सामने आया है। जिसकी आलोचना और प्रशंसा दोनों ही तीव्र गति से हो रही हैं । कई मीडिया शोधार्थियों के लिए यह शोध विषय से कम नहीं हैं ।
महाराष्ट्र के विदर्भ में पारा 45 को पार करने को उतावला है। उधर उत्तर प्रदेश के किसानों का बैंक लोन योगी सरकार ने माफ़ कर दिया है । किसान राहत की सांस लेने ही वाले थे की विपक्षी कर्ज माफी का काला सच अपने बयानों से सामने रखने लगे। फिलहाल योगी सरकार का विपक्ष को कोई करारा जवाब अब तक दिया गया नहीं दिखा है।
जाहीर है किसानों की मूलभूत समस्याएँ खेती से संबन्धित ही होती है। खेती के लिए ऋण मुख्य मसला होता है। । एनसीआरबी की इस रिपोर्ट को देखें तो पता चलता है की साल 2014 में 12,360 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने खुदकुशी की। ये संख्या 2015 में और बढ़कर 12,602 हो गई। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ा यह भी स्पष्ट करता है कि किसान आत्महत्याओं में 42% की बढ़ोतरी हुई है और आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में सामने आए है । महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक का दूसरा नंबर आता है। कर्नाटक में साल 2015 में 1,569 किसानों ने आत्महत्या कर ली। तेलंगाना (1400), मध्य प्रदेश (1290), छत्तीसगढ़ (954), आंध्र प्रदेश (916) और तमिलनाडु (606) भी इसमें शामिल है। एनसीआरबी अपने रिपोर्ट में किसानों और खेतों में काम करने वाले मजदूरों की आत्महत्या का कारण कर्ज, कंगाली, और खेती से जुड़ी दिक्कतें बताता है।बैंको से आसानी से ऋण देने संबंधी कई विज्ञापन हमें देखने को मिलते है लेकिन इन मौतों के साथ तुलना करके देखेंगे तो उन दावों का खोखला ही पाएंगे ।
यहाँ गौरतलब यह है कि जिस प्रकार पाँच राज्यों के चुनाव को ध्यान में रखकर चुनावी घोषणा पत्र जारी किया गया और चुनी जाने वाली सरकार ने इसे पूरा करने हेतु निर्णय भी लिया है तो वहीं नंबर एक पर चल रहे महाराष्ट्र पर फड़नवीस सरकार मौन क्यो है ?
क्या महाराष्ट्र और अन्य प्रदेशों में किसानी और मजदूरी से होने वाली आत्महत्या पर रोकने के लिए केंद्र सरकार को प्रयास नहीं करने चाहिए ? ध्यान रहें इस गर्मी में पारा जितना चढ़ता है, किसान उतना ही परेशान और मजबूर होता है। महाराष्ट्र में तो पानी कि कमी किसानों कि समस्या को बढ़ाने में एक और अवयव के रूप में काम करती है।
किसानों का पारा भी इन दिनों अपने उच्च स्तर पर है इसीलिए बीते 6 अप्रैल को सेवाग्राम स्टेशन पर पृथक विदर्भ कि मांग पर रेल रोको अभियान चलाया गया जिसमे हजारों की संख्या किसान और मजदूर शामिल रहें थे । गौरतलब है कि विदर्भ में ही अकेले, महाराष्ट्र में हुई आत्महत्या की 70 फीसदी संख्या होती हैं ।