मूतने का चस्का द सभा, February 12, 2016May 7, 2017 मनीष बरोनिया पसीने से तेल बना के, चमड़ी की बाती कर ली, और जला के खुद को हमने जिंदगी बसर कर ली….. किवाड़े, खिड़कियाँ, और दीवारे नहीं है, सब खुला पड़ा है, कोई चौकीदारें नहीं है… यूँ बेखबर से, कुछ ढूँढने मत आया करो, मेरा परिवार सोता है, इस फूटपाथ…