धारा १४४ का इस्तेमाल पहली बार भारत में अंग्रेजो द्वारा १८६१ में किया गया था, जो कि आज़ाद भारत में १९७३ को कानूनी रूप में ढला. इसका उस समय भी इस्तेमाल आज़ादी की मांग को लेकर संगठित होने वाले लोगों के खिलाफ किया जाता था, ताकि अंग्रेजी हुकूमत बरक़रार रहे.
Category: मुद्दा
बांद्रा कलेक्टर ऑफिस मुंबई : मातंग समाज का प्रदर्शन
२८ दिसम्बर ,२०१५ को मातंग समाज ने बांद्रा कलेक्टर ऑफिस के सामने शांतिपूर्वक धरना दिया और अपनी मांगे रखीं.
बाँध नहीं विकास चाहिए, नदी दिवस का यही आगाज़
उत्तराखंड में गंगा के मायके अलकनंदा घाटी से विष्णुगाड पीपलकोटी बाँध प्रभावितों ने अंतर्राष्ट्रीय जगत को ये संदेश दिया है कि नदियों के जीवन […]
‘भटके विमुक्त जनजातियों’ के अच्छे दिन कब आयेंगे ?
सन् १९०० में ब्रिटिशों ने हिनुस्तान में छोटी-बड़ी संस्थानों (राज्य) को हटाकर अपनी हुकूमत कायम की. उस दौरान किसान, आदिवासी, भटके विमुक्त जनजाति और पिछड़े वर्गों को बड़े पैमाने पर सताया गया. उसके परिणाम सवरूप अंग्रेजों के खिलाफ १८५७ के उठाव में बिरसा मुंडा, तांत्या भील और उमाजी नायक के नेतृतव में विद्रोह उमड़ा. लेकिन अंग्रेजों के द्वारा इन आवाजों को दबाया गया.
क्रांतिगुरू लहुजी सालवे- मातंग समाज
संतोष थोराट भारत के प्रथम, क्रांतिगुरू लहुजी सालवे जन्म: १४ नवंबर १७९४ निर्वाण: १७ फरवरी १८८१ थोर समाजसुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले इनके गुरू, क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले इनके […]
देवनार डंपिंग ग्राउंड की आग
हारून शैख़ यहाँ पे प्रदुषण और गन्दी हवा से तकलीफ कई किस्म की है, लेकिन आदमी बोलता है न की इतना वक़्त है इंसान के […]
इब्तेदा : रविश कुमार टाटा सामाजिक विज्ञानं संस्थान में मीडिया और सरकार पर बुल्बुलाते हुए
खुली हुई खिड़कियाँ है बस दिमाग बंद है आँखें भभक रही है और जुबां लहेक रही है एक टीवी है और शोर भरी शांति है […]
रोहित वेमुला की हत्या : शिक्षण संस्थाओं में लोकतांत्रिक समतामूलक माहौल का आभाव
जैनबहादुर आज के इस आधुनिक लोकतांत्रिक सभ्य समाज में रहते हुए हमारे सामने कभी कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती है या फिर घटा दी जाती […]
मूतने का चस्का
मनीष बरोनिया पसीने से तेल बना के, चमड़ी की बाती कर ली, और जला के खुद को हमने जिंदगी बसर कर ली….. किवाड़े, खिड़कियाँ, और […]
रोहित के लिए एक हो रहा हिंदुस्तान !
दि.२७/०१/२०१६ को ‘जस्टिस फॉर रोहित वेमूला- जॉइंट एक्शन कमिटी’ और ‘इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल फोरम’ द्वारा एक पत्र्कार सभा का मराठी पत्र्कार भवन में आयोजन किया गया.
धारावी में राष्ट्र स्वयं सेवक संघ की गुंडागर्दी : मारने के बाद दिया नारा ‘बाबा साहेब अम्बेडकर की जय, जय श्री राम’ का
मुंबई २४.०१.२०१६ : आज शाम सात बजे के आस पास रोहित वेमुला के संस्थानिक हत्या के विरोध में जा रही रैली पर राष्ट्र सवयम सेवक […]
मालदा हिंसा : एक अपराधिक घटना राज्य के खिलाफ
मालदा की हिंसा, हिंदुओं के खिलाफ नहीं थी। वह केवल पैगम्बर साहब के खिलाफ दिए गए एक वक्तव्य का विरोध करने के लिए इकट्ठा हुई भीड़ का नियंत्रण से बाहर हो जाना था।
संदूक यादें, लम्हें और आशाओं की – फ्रीडम थिएटर फिलिस्तीन !
५ जनवरी २०१६ को मुंबई विद्यापीठ द्वारा भारत फिलिस्तीन सांस्कृतिक कर्यक्रम का आयोजन किया गया.इस कार्यक्रम में जन नाट्य मंच(नयीदिल्ली) और फ्रीडम थिएटर फिलिस्तीन द्वारा एक नाटक प्रस्तुत किया गया.
है तमाशा ये क्या ! १ अगस्त : अण्णाभाऊ साठे जयंती
जहाँ आज की मीडिया प्रजातान्त्रिक हुकूमत के सामने रेंगती हुई पाई जाती है, जो किसी के शमशान की यात्रा को या तो अनेक रंगों से […]
संघर्ष के ४० साल : पहुँच गए आजाद मैदान मुंबई
महाराष्ट्र के अमरावती शहर में कुछ बड़े इलाको में से एक है बिछु टेकडी. इसमें एकता नगर, तट्टा कॉलोनी, जेल क्वार्टर, सागर नगर, वित्ताभाती परिसर, आंबेडकर पुतला परिसर, नजूल आदि भाग आता है. पिछले ४० सालों से यहाँ के लोग अपने मुलभुत मांगो और हक के लिए लड़ रहे है.
लेंडी बांध प्रभावित ५ दिन चलकर पहुंचे आजाद मैदान
२८ दिसम्बर २०१५ को लेंडी बांध प्रभावित क्षेत्र के लोगो की पैदल यात्रा ५ दिन के बाद आजाद मैदान पहुंची. श्रीमती रजनी पांढरे (अध्यक्ष) और […]
मंडाला के हज़ारो बेघरो का आवास सत्याग्रह क्यों?
मुंबई के 75,000 ग़रीबो के घर तोड़े गए थे, 2004-05 में, वह स्थिति आज भी आँखो के सामने है | चूल्हे क्या, बच्चे भी रस्ते पर आ गए थे और, कहां बढ़े, कहां बीमार, इंसान कुत्तो जैसे गंदे नालो के किनारे लेटे मिलते थे |
दाढ़ी : घर :: मीडिया : सरकार
दिल्ली के दिल कनौट प्लेस में 25 जनवरी, 2010 का वो दिन भुलाये नहीं भूलता, जब मुझे बगल में बैठे एक पुलिसवाले ने मानो आतंकवादी […]
राजीव आवास योजना- संतोष थोराट
साल 2004 में, ४५ श्रम बस्तियों को मुंबई में तोडा गया था, जिसके उपरांत घर बचाओ घर बनाओ का नारा लगाते हुए एक आन्दोलन खड़ा […]
इट्स अ मैन’स वर्ल्ड (ये संसार पुरुष-निर्मित और केन्द्रित है)
अमरीकी गायक और संगीतग्य जेम्स ब्राउन का 1966 में गाया गया प्रसिद्ध गाना “इट्स अ मैन’स वर्ल्ड” (ये संसार पुरुष-निर्मित और केन्द्रित है) आज भी अपनी प्रासंगिकता बरक़रार रखता है. कारण, चाहे भारत हो या पश्चिमी देश, या दुनिया का कोई भी कोना—ये दुनिया और समाज पुरुष केन्द्रित ही है!
गाय तो कटती ही नहीं : ये सब इनके नाटक हैं
लीडिया थोमस विद्यार्थी टाटा सामाजिक विज्ञानं संसथान , मुंबई कुर्ला पूर्व में ,कसाईवाडा जिसे कुरैशी नगर से भी जाना जाता है, वो अनेक खटीक समुदाय […]
वाराणसी: नुक्कड़ नाटक और पंचायत चुनाव
गाँवों में आगामी पंचायत चुनाव की सरगर्मियाँ अभी से बढ़ गयी हैं। गली नुक्कड़ चौराहों पर अभी से पंचायत चुनाव में ताल ठोकने वाले भावी […]
प्रवाल्लिका केस: हिन्जरो के लिए न्याय
जो लोग पुरुष और महिला लिंग के दोहरे मापदंड में नहीं समां पाते, क्या उन्हें समाज में इज्जत से रहने का कोई हक नहीं है […]
जो दिखता है वो बिकता है
“कौन कमबख्त जानकारी देने के लिए छापता है ? हम तो छापते हैं कि विज्ञापन होने पाए, आवाज़ पैसे की आप तक, और गैर जरूरी […]
आग: मुंबई के विद्यार्थिओं ने किया ठाणे महानगरपालिका का पर्दाफाश
विभिन्न कॉलेजों से छात्र एक्शन और जागरूकता समूह (ए ए जी) नामक एक समूह के गठन से सामाजिक मुद्दों की दिशा में काम कर रहे हैं। इस समूह के छात्रों ने ठाणे महानगरपालिका में आरटीआई दायर की थी। जिससे उन्हें महानगरपालिका की काली करतूतो का पता लगाया जिसका उन्होंने संवाददाता सम्मलेन के जरिए २३ जनुअरी को पर्दाफाश किया।
महिला पत्रकारिता और मीडिया की दादागिरी
मैं नवी मुंबई में रहती हूँ. कुछ समय पहले में एक नामी अंग्रेजी अखबार में काम करती थी. गर्भावस्था के बाद मेरा बच्चा ऑपरेशन से […]
सरकार हमसे डरती है, ट्विटर और फेसबुक को आगे करती है
जन आंदोलनों का नारा सरकार हम से डरती है पुलिस को आगे करती है, शायद कुछ दिनों में बदल जाए. आजकल सरकार के प्रतिनिधि […]