बैसवारा क्षेत्र के रायबरेली और आसपास के इलाकों में ज़मीन की माप के हिसाब से इस क्षेत्र में सीमांत किसानों की संख्या अच्छी-खासी है। सीमांत किसान वो हैं जिनके पास 2.5 एकड़ भूमि या 1 हेक्टेयर से कम है। उनमे से कुछ गांव में रहकर खेती करते हैं और कुछ…
Category: भारत
युवाओं का नाट्य समूह करेगा समाज में फैली अराजकता का पर्दा फ़ाश …
नाट्य प्रयोग : ‘WARNING’ (वॅर्निंग) नाट्य की भाषा : हिंदी विषय : भारतीय समाज मे हो रहे अन्याय के खिलाफ हमारा अगला क़दम । विवरण : युवा ग्रूप, वर्धा प्रस्तूत कर रहा है एक अनोखा नाट्य प्रयोग जिसका नाम है वार्निंग- अगर अब भी नहीं जागे तो बहूत देर हो…
लैंगिक हिंसा, बैरागड़ भोपाल: मीडिया और पुलिस की लीपापोती
मधु धुर्वे लैंगिक हिंसा हाल ही में हमारे भोपाल शहर में बच्चों के साथ यौन शोषण जैसी दो गंभीर घटना घटी है. बैरागड़ शासकीय शाला के आवासीय कार्यक्रम में 6 से 11 वर्ष के छोटे लड़के थे. 24 से ज़्यादा ड्राप आउट हुए बच्चों ने अपने परिजनों से बताया की…
ओबीसी, आरक्षण और वर्तमान शैक्षणिक स्थिति
मनीष जैसल हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा में मीडिया / फिल्म विषय पर पी-एच.डी कर रहें हैं अपनी बात शुरू करने से पहले गोरख पांडे को उनकी इस कविता की पंक्तियों के साथ याद करना आवश्यक हो जाता है जिनमे वो कहते है कि… वो डरते है किस बात से डरते…
युवास्था और उत्तर प्रदेश के युवा
युवास्था जीवन का एक महत्वपूर्ण समय माना जाता है. यह समय बचपन और समझदारी के बीच का ब्रिज होता है. पढाई पूरी होने के बाद नौकरी मिलने या न मिलने के मध्य यह समय युवा अलग-अलग तरीको से बिताते हैं. समय की प्रचुरता को अपनी समझ, सोच और संपर्क के…
एक यूरोपियन महिला का भारत में सफ़र
फ्रंचेस्का बेनेल्ली, एक इटालियन पर्यटक भारत में कई अच्छे लोग हैं जिन पर भरोसा कर दोस्ती की जा सकती लेकिन जो गले पड़ने लग जाए उनसे परहेज़ करने में हे समझदारी है. मेरी अन्दर की महिला पर्यटक को इस अतुल्य देश के शोर गुल , खूबसूरती और भीने इन्सानीयत भरे…
रुलाता है तेरा नज़ारा ऐ हिंदोस्ता मुझ को
शेख मोइन नईम राजनीती विज्ञान विभाग, T.Y.B.A, जलगाँव “सारे जहा से अच्छा हिंदोस्ता हमारा हम बुलबुले है इसकी ये गुलसिता हमारा” “मेरा भारत महान” ये नारा हम बचपन से सुनते आ रह है मगर अखबारों के आईने में भारत की जो तस्वीर उभर रही है,उसे देख कर खून के आंसू रोने…
लातूर में पानी पर धारा – १४४
धारा १४४ का इस्तेमाल पहली बार भारत में अंग्रेजो द्वारा १८६१ में किया गया था, जो कि आज़ाद भारत में १९७३ को कानूनी रूप में ढला. इसका उस समय भी इस्तेमाल आज़ादी की मांग को लेकर संगठित होने वाले लोगों के खिलाफ किया जाता था, ताकि अंग्रेजी हुकूमत बरक़रार रहे.
बांद्रा कलेक्टर ऑफिस मुंबई : मातंग समाज का प्रदर्शन
२८ दिसम्बर ,२०१५ को मातंग समाज ने बांद्रा कलेक्टर ऑफिस के सामने शांतिपूर्वक धरना दिया और अपनी मांगे रखीं.
‘भटके विमुक्त जनजातियों’ के अच्छे दिन कब आयेंगे ?
सन् १९०० में ब्रिटिशों ने हिनुस्तान में छोटी-बड़ी संस्थानों (राज्य) को हटाकर अपनी हुकूमत कायम की. उस दौरान किसान, आदिवासी, भटके विमुक्त जनजाति और पिछड़े वर्गों को बड़े पैमाने पर सताया गया. उसके परिणाम सवरूप अंग्रेजों के खिलाफ १८५७ के उठाव में बिरसा मुंडा, तांत्या भील और उमाजी नायक के नेतृतव में विद्रोह उमड़ा. लेकिन अंग्रेजों के द्वारा इन आवाजों को दबाया गया.
देश vs भक्त
विशाल भरद्वाज आज कल टी.वी पे आप लोग काफी सारे डिबेट देख रहे होंगे, काफी सारे डिबेट्स में स्टूडेंट से संबंधित विषयों पे चर्चा किया जा रहा है. इन में से अधिकतर न्यूज़ चैनल के एंकरों ने स्टूडेंट मूवमेंट को देश हित में न होने का दावा करते हुए उन्हें राष्ट्र…
क्रांतिगुरू लहुजी सालवे- मातंग समाज
संतोष थोराट भारत के प्रथम, क्रांतिगुरू लहुजी सालवे जन्म: १४ नवंबर १७९४ निर्वाण: १७ फरवरी १८८१ थोर समाजसुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले इनके गुरू, क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले इनके अंगरक्षक, महात्मा ज्योतिबा फुले- क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले इन्होने देश में लडकियो के लिए, दलित, आदिवासी, ओबीसी,मुस्लिम समाज के लिए सर्वप्रथम स्कुल सुरू करके शिक्षा देने का…
देवनार डंपिंग ग्राउंड की आग
हारून शैख़ यहाँ पे प्रदुषण और गन्दी हवा से तकलीफ कई किस्म की है, लेकिन आदमी बोलता है न की इतना वक़्त है इंसान के पास की सीना खुख्राए. खांसी हो रही है. कहीं चला जाये. किसी आदमी को नोर्मली खांसी भी होती है तो वो बड़े से बड़े डॉक्टर के…
विकास की जुमलेबाजी के बीच राम मंदिर का राग
जयन्त जिज्ञासु आज मुल्क जिस स्थिति से गुज़र रहा है, वहाँ क्षणिक सियासी फायदे के लिए इंसानियत को दाँव पर लगाने वाले सियासतदाँ सबसे बड़े देशद्रोही हैं।लोकतंत्र में चुनावी तंत्र की कमज़ोरियों का लाभ उठाकर सत्तासीन होने वाले लोग जब ये भूल जाते हैं कि जम्हूरियत जुमलेबाजी से नहीं चला…
इब्तेदा : रविश कुमार टाटा सामाजिक विज्ञानं संस्थान में मीडिया और सरकार पर बुल्बुलाते हुए
खुली हुई खिड़कियाँ है बस दिमाग बंद है आँखें भभक रही है और जुबां लहेक रही है एक टीवी है और शोर भरी शांति है वो जो सब के बीच बैठा है, तूफ़ान पैदा करता है सवालों से नावों को हिला दुला देता है ३दी होती हमारी कल्पनाओं में रोमांच…
रोहित वेमुला की हत्या : शिक्षण संस्थाओं में लोकतांत्रिक समतामूलक माहौल का आभाव
जैनबहादुर आज के इस आधुनिक लोकतांत्रिक सभ्य समाज में रहते हुए हमारे सामने कभी कभी ऐसी घटनाएँ घट जाती है या फिर घटा दी जाती है जो हमे यह सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या हम एक सभ्य लोकतांत्रिक समाज में ही रहते है? ऐसी घटना जिसका परिणाम…
हरिशंकर परसाई : खुशी है कि ‘कोटे’ से कुछ ज्यादा ही हरिजन मारे गए- गाँधी या गोडसे
यह चिट्ठी महात्मा मोहनदास करमचंद गाँधी को पहुंचे. महात्माजी, मैं न संसद-सदस्य हूँ, न विधायक, न मंत्री, न नेता. इनमें से कोई कलंक मेरे ऊपर नहीं है. मुझमें कोई ऐसा राजनीतिक ऐब नहीं है कि आपकी जय बोलूं. मुझे कोई भी पद नहीं चाहिये कि राजघाट जाऊँ. मैंने आपकी समाधि…
रोहित के लिए एक हो रहा हिंदुस्तान !
दि.२७/०१/२०१६ को ‘जस्टिस फॉर रोहित वेमूला- जॉइंट एक्शन कमिटी’ और ‘इंडियन मुस्लिम इंटेलेक्चुअल फोरम’ द्वारा एक पत्र्कार सभा का मराठी पत्र्कार भवन में आयोजन किया गया.
धारावी में राष्ट्र स्वयं सेवक संघ की गुंडागर्दी : मारने के बाद दिया नारा ‘बाबा साहेब अम्बेडकर की जय, जय श्री राम’ का
मुंबई २४.०१.२०१६ : आज शाम सात बजे के आस पास रोहित वेमुला के संस्थानिक हत्या के विरोध में जा रही रैली पर राष्ट्र सवयम सेवक के कार्यकर्ताओं ने मारा पीटी की. करीबन ५०० लोग , जिसमें अनेक विध्यार्थी भी थे, पर पत्थर फेके गए, लाठी से मारा गया, लोहे की…
गरीबों के त्यौहार और नया साल
त्यौहार , बड़ा ही जोशीला और उमंग भरा है ये शब्द । कहते और लिखते ही मन में खुशियों के भाव आने लगते है । पर किसके आपके या मेरे ?
है तमाशा ये क्या ! १ अगस्त : अण्णाभाऊ साठे जयंती
जहाँ आज की मीडिया प्रजातान्त्रिक हुकूमत के सामने रेंगती हुई पाई जाती है, जो किसी के शमशान की यात्रा को या तो अनेक रंगों से सबोरती है या अपना कैमरों में ही कफ़न लगा देती है, वो समय जहाँ सरकार कलाकारों से लेकर हर वो स्वतंत्रता के मंजर पर प्रतिबन्ध लगाने…
मंडाला के हज़ारो बेघरो का आवास सत्याग्रह क्यों?
मुंबई के 75,000 ग़रीबो के घर तोड़े गए थे, 2004-05 में, वह स्थिति आज भी आँखो के सामने है | चूल्हे क्या, बच्चे भी रस्ते पर आ गए थे और, कहां बढ़े, कहां बीमार, इंसान कुत्तो जैसे गंदे नालो के किनारे लेटे मिलते थे |
मोदी / ओबामा = नमो / गूंतानामो
भारत और अमेरिका का प्रजातंत्र कुछ मायनो में मिलता है, जिनमें एक तो यही है कि अपने आँगन की आजादी को कुचल के, उसे देश की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की सुरक्षा का नाम देना. नजरबन्द में मणिपुर की इरोम शर्मीला, अमेरिका की जेल गूंतानामो खाड़ी और विकि् लीक्स…
चूने वाला प्रजातंत्र
हमारे भारत की आर्थिक निति बहुत हद तक एक इफ़ेक्ट का अनुसरण करती है जिसका नाम है चूने वाला इफ़ेक्ट. इसके हिसाब से दुनिया के अनेक प्रजातंत्र चल रहे हैं , जिनको भारत भी कई मायनो में मानने लगा है.
दाढ़ी : घर :: मीडिया : सरकार
दिल्ली के दिल कनौट प्लेस में 25 जनवरी, 2010 का वो दिन भुलाये नहीं भूलता, जब मुझे बगल में बैठे एक पुलिसवाले ने मानो आतंकवादी घोषित कर ही दिया था, सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं अपने साथ लद्दाख के एक होटल का कार्ड लेकर चल रहा था. जम्मू और कश्मीर में…
बाल संरक्षण की आवश्यकता
राकेश प्रजापति भारत विश्व के लगभग १९ प्रतिशत बच्चों का घर है. राष्ट्र की जनसंख्या के एक तिहाई से भी अधिक, लगभग ४४० मिलियन बच्चे१८ वर्ष की आयु से कम है. बच्चों…
राजीव आवास योजना- संतोष थोराट
साल 2004 में, ४५ श्रम बस्तियों को मुंबई में तोडा गया था, जिसके उपरांत घर बचाओ घर बनाओ का नारा लगाते हुए एक आन्दोलन खड़ा हुआ. इस आन्दोलन का सीधा नेतृतव टाटा सामजिक विज्ञानं संसथान के सैम्प्रीत सिंह ने किया और राष्ट्रीय जन आंदोलोन के समन्वय की मेधा पाटकर ने…
ओबामा टीम में दो भारतीय: काल पेन्न और फ्रैंक इस्लाम
काल पेन्न ओबामा टीम के साथ भारत दौरे पर आये थे. हर मौके का बहुत ही सुन्दर फोटो निकाला, गार्डन से ले के राष्ट पति भवन तक. उनके ट्वीट के हिसाब से ये पता लगा कि उनके पिता १९६७ में मात्र ५०० रुपए और बहुत सारी उम्मीदों के साथ अमेरिका…
गाय कटे या न कटे , मुद्दा ये नहीं है , मुद्दा है लाखों लोगों के रोजगार का. गाय तो पहले से हीे नहीं कटती, अब कट रही है राजनीति
महाराष्ट्र में ही नहीं पुरे भारत में पहले से ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गाय की हत्या पर पाबन्दी लगी हुई है। क्योंकि ये भारत के एक समाज वर्ग की भावनाओ से जुड़ा हुआ है। और इसका हमारे देश का हर समाज पूरी तरह से समर्थन करता है जिसका उदाहरण एशिया के सबसे बड़े कत्तलखाने में (जो की मुंबई के देवनार में है) देख कर लगाया जा सकता है। इस कत्तलखाने में आजतक एक भी गाय को नहीं काटा गया। यहाँ पर केवल उन्ही बैलों को काटा जाता है जो कि किसी भी रूप में कृषि में प्रयोग में नहीं लाये जा सकते।
जो दिखता है वो बिकता है
“कौन कमबख्त जानकारी देने के लिए छापता है ? हम तो छापते हैं कि विज्ञापन होने पाए, आवाज़ पैसे की आप तक, और गैर जरूरी साजो सामान की चाह जुबान पर पानी से भी पहले आवे.. जब सोच भी देखने, सुनने से विकसित होती है, तो हम सुनायेंगे और हम…
सरकार हमसे डरती है, ट्विटर और फेसबुक को आगे करती है
जन आंदोलनों का नारा सरकार हम से डरती है पुलिस को आगे करती है, शायद कुछ दिनों में बदल जाए. आजकल सरकार के प्रतिनिधि और मीडिया जगत के लोग, फेसबुक और ट्विटर से ही ज्यादा काम चला रहें हैं. कहतें हैं कि ट्रेंडिंग करो , # लगा के. और…
अण्णा भाऊ साठे
पहला द सभा का प्रकाशन लोक साहिर अन्ना भाव साठे को समर्पित है. अन्ना भाव साठे सांगली जिला के दलित मातंग समुदाय से थे. अपनी जाति और ग़रीबी के कारण वो बचपन में अपने पढाई नहीं कर पाए. अन्नाभाव मुंबई में दो चीजों की ओर आकर्षित हुए – एक अलग…